" एक ओर हम देष के समस्त अदिवासी भाईयों को एक सूत्र में बांधकर आदिवासियों पर हो रहे अन्याय अत्याचार पर चर्चा कर उससे निपटने के रास्ते निकालने का प्रयास कर रहे है । राश्टीय स्तर की समस्याओं पर एक सोच विचार और व्यवहार लाने की कोशिष में हैं ं वहीं हमारे कुछ नवजवानो में आदिवासी षब्द के पीछे पडकर अंग्रेजी भाशा में परिभाशित कर यू0एन0ओ0 के दिये नाम पर विवाद की स्थिति पैदा कर रहे हैं जो अच्छी बात नहीं हैं, हम अभी षब्द के पीछे ना भागें व्यवहार में हम क्या हैं, इस पर चिंतन करें । व्यवहार अपने आप षब्द को अपने अनुरूप ढाल लेगा । यदि हम केवल षब्द के पीछे भागे तो लक्ष्य के पहले क्षेत्रवाद जातिवाद में उलझकर आदिवासियों के समग्र मिषन को रोकने का काम करते हैं । गोंडवाना हमारी राश्टीयता है लेकिन हमारा राश्ट अभी गोंडवाना नहीं बना है । गोंडवाना राश्ट में जाति और उपजाति में लम्बे समय से बंटे होने के बावजूद राश्ट के मूलनिवासियों में जाति से उपर उठकर कम से कम वर्गचेतना पैदा हुई, यह भी मूलनिवासी समाज के आगे आने के लिये एक रास्ता है । यही वर्गचेतना आगे चलकर समाज के राश्टीयता का मार्ग प्रष्स्त करेगी । इसलिये आज के विशम परिस्थितियों में जब हम पर लगातार सांस्कृतिक धार्मिक हमला हो रहा है हमें मूलनिवासी समाज में सांस्कृतिक धार्मिक सामाजिक रूप से एक सोच विचार व्यवहार की आवष्यकता है । षब्द यदि व्यवहार में अडचन पैदा कर रहा है तो इसे किनारे करके संगठित वर्गचेतना के लिये काम किया जाय ।"
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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