"मध्यप्रदेश मे दिवारी पन्डुम"
मध्यप्रदेश मे दिवारी पन्डुम सान्सक्रतिक एकता का परिचय देता है । अमावस की पूर्व सन्ध्या मे ग्राम के सम्मानित लोग,भुमका/बैगा एवम् कोपा(अहीर) ग्राम के खीला मुठवा मे जाकर गोन्गो करते है जिसमे विशेष पौधा मेमेरी(बन तुलसी) लरन्घा (विशेष बरीक बीज वाला खाद्य) दाल ,कोहका(भिलवा पत्ता) सहित कुछ जडी बूटी की डाल एवम् पत्तो को गोन्गो उपरान्त कोपाल की लाठी मे सहेजकर बान्धा जाता है । गोनगो सम्पन्न होने के बाद बैगा तुर्रा बजाकर गोन्गो सम्पन्न होने का सन्केत देता है मान्दर/म्रदन्ग की थाप के साथ कोपा गान्व के गाय,बैल,बछडो के स्वस्थ कामना के गीत (बिरहा) गाकर उस दिन से अपनी बान्सुरी के स्वर निकालना आरंभ करता है । उधर सभी ग्रामवासी अपने अपने अपने घरों के मवेशीयो के ,अपने देवी दिवाला के दरवाजे खोल देते हैं ( वर्तमान समय में बैगा और कोपा के आने पर) खीलामुठवा में गोन्गो करने वाली टीम गाते बजाते ग्राम के एक छोर के घर से लाठी मे बन्धे औषधि जिसे छाहुर कहा जाता है । कोपा द्वारा उस घर के सयानी गाय या बैल की आदतों का वर्णन करते हुए विशेष आशीर्वाद गीत गाकर गाय बैल कोठार में "ए हाही,ए हाही ऐसे शब्दों का उच्चारण करता हुआ कोठार के अन्दर तक जाता है घर का मुखिया दीप और हल्दी चावल का टीका गोन्गो टीम को लगाकर यथाशक्ति नगद राशि उपहार में देता है कोपा अपनी छाहुर से उस घर के पेन स्थान को उस छाहुर से ऐ हाही कहकर हवा देता है । यह गोन्गो टीम प्रत्येक घर मे रात भर बारी से उपहार लेते ,आशिर्वाद देते है । इसी मौके पर गोन्ड जनजाति मे विशेष गोत्र के परिवार जन्गो और लिन्गो अर्थात गुरुवा और गान्गो दाई की स्थापना की जाती है ऐसे घर का मुखिया अपने पुरुष परिवार के साथ सभी घरो मे जाते है और उनसे चावल तथा नगद उपहार लेते है । इस तरह ग्राम सहित घरो के पेन स्थापना एवम् जागरण की ही रात है दिवारी !जो पूर्णिमा को छाहुर सहित गुरुवा गान्गो के विसर्जन के साथ सम्पन्न होती है । दिवारी में शक्ति जागरण से लेकर विसर्जन के बीच मडई जतरा का आयोजन किया जाता है ।जिसमे समस्त समुदाय गुरुवा गान्गो के मिलाप का आयोजन देखने और अपने सगा सम्बन्धियो से मिलते है ।(मन्डल जिला के सन्दर्भ में )
मध्यप्रदेश मे दिवारी पन्डुम सान्सक्रतिक एकता का परिचय देता है । अमावस की पूर्व सन्ध्या मे ग्राम के सम्मानित लोग,भुमका/बैगा एवम् कोपा(अहीर) ग्राम के खीला मुठवा मे जाकर गोन्गो करते है जिसमे विशेष पौधा मेमेरी(बन तुलसी) लरन्घा (विशेष बरीक बीज वाला खाद्य) दाल ,कोहका(भिलवा पत्ता) सहित कुछ जडी बूटी की डाल एवम् पत्तो को गोन्गो उपरान्त कोपाल की लाठी मे सहेजकर बान्धा जाता है । गोनगो सम्पन्न होने के बाद बैगा तुर्रा बजाकर गोन्गो सम्पन्न होने का सन्केत देता है मान्दर/म्रदन्ग की थाप के साथ कोपा गान्व के गाय,बैल,बछडो के स्वस्थ कामना के गीत (बिरहा) गाकर उस दिन से अपनी बान्सुरी के स्वर निकालना आरंभ करता है । उधर सभी ग्रामवासी अपने अपने अपने घरों के मवेशीयो के ,अपने देवी दिवाला के दरवाजे खोल देते हैं ( वर्तमान समय में बैगा और कोपा के आने पर) खीलामुठवा में गोन्गो करने वाली टीम गाते बजाते ग्राम के एक छोर के घर से लाठी मे बन्धे औषधि जिसे छाहुर कहा जाता है । कोपा द्वारा उस घर के सयानी गाय या बैल की आदतों का वर्णन करते हुए विशेष आशीर्वाद गीत गाकर गाय बैल कोठार में "ए हाही,ए हाही ऐसे शब्दों का उच्चारण करता हुआ कोठार के अन्दर तक जाता है घर का मुखिया दीप और हल्दी चावल का टीका गोन्गो टीम को लगाकर यथाशक्ति नगद राशि उपहार में देता है कोपा अपनी छाहुर से उस घर के पेन स्थान को उस छाहुर से ऐ हाही कहकर हवा देता है । यह गोन्गो टीम प्रत्येक घर मे रात भर बारी से उपहार लेते ,आशिर्वाद देते है । इसी मौके पर गोन्ड जनजाति मे विशेष गोत्र के परिवार जन्गो और लिन्गो अर्थात गुरुवा और गान्गो दाई की स्थापना की जाती है ऐसे घर का मुखिया अपने पुरुष परिवार के साथ सभी घरो मे जाते है और उनसे चावल तथा नगद उपहार लेते है । इस तरह ग्राम सहित घरो के पेन स्थापना एवम् जागरण की ही रात है दिवारी !जो पूर्णिमा को छाहुर सहित गुरुवा गान्गो के विसर्जन के साथ सम्पन्न होती है । दिवारी में शक्ति जागरण से लेकर विसर्जन के बीच मडई जतरा का आयोजन किया जाता है ।जिसमे समस्त समुदाय गुरुवा गान्गो के मिलाप का आयोजन देखने और अपने सगा सम्बन्धियो से मिलते है ।(मन्डल जिला के सन्दर्भ में )
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