"आदिवासी, अनुसूचित जनजाति ,ट्राईबल "
सगाजनो आदिवासी और मूलनिवासीयो के सम्बन्ध में आपके तर्क अपनी जगह सही है,लेकिन आदिवासी एवं मूलनिवासी शब्द अभी भी सन्वैधानिक दर्जा नहीं ले पाए हैं।परन्तु आदिवासी शब्द अपनी व्याख्या के साथ सारे देश में मूलनिवासी समुदाय के उस हिस्से का पर्याय बन चुका है जो अभी तक अपनी प्राकृतिवादी व्यवस्था एव सन्सक्रति मे जी रहे हैं जिससे उन्हें अन्य मूलनिवासी समुदाय से पहचाना जाता है । मूलनिवासी की परिभाशा मे तो देश का अनु०जाति ,अन्य पिछड़ा वर्ग भी है परन्तु इन्होंने मूल सान्सक्रतिक पहचान खो दिया है पर हैं तो मूलनिवासी ऐसी परिस्थिति में सान्सक्रतिक पहचान को सुरक्षित रखने वाला समूह यदि आदिवासी नाम पर सन्गठित होता है तो इस शब्द पर गम्भीर हुआ जा सकता है । अन्यथा मूलनिवासी शब्द आपकी सान्सक्रतिक पहचान को भी निगल लेगी कारण भी है कि मूलनिवासी समुदाय का मात्र आठ प्रतिशत हिस्सा जो सन्विधान में अनुसूचित जनजाति के नाम से जाना जाता है ,। मात्र इसी हिस्सा को हिन्दू नहीं माना जाता । अब यदि हम आदिवासी नाम को अलग करते हैं तो जो इसे आत्मसात करके सान्सक्रतिक पहचान रखने वाला समूह और इसके विरोध में खड़ा अपने आप को सान्सक्रतिक पहचान कायम रखने वाले के बीच दूरी बढ़ती है जो हमारी संस्कृति को बढ़ावा देने के मार्ग मे बाधा पहुंचाने का काम करेगी । में इस शब्द का समर्थक ना ही विरोधी हूँ । परन्तु मूलनिवासी शब्द भी हमे देश के विशाल अन्य मूलनिवासी जनसंख्या के समुद्र मे हमारी प्रथक पहचान को वास्पीक्रत कर सकता है । इसलिये या तो हम देश के समस्त मूलनिवासी जिन्हे ऐतिहासिक सन्दर्भ मे द्रविन कहा जाता है उन्हे मूल सन्सक्रति मे लाने के काम मे लगना पडेगा या हमे सन्वैधानिक नाम जो हमारा दिेया हुआ नही परन्तु एक सूचि मे होने के कारन एकता की मानसिकता पैदा करता है उसे माने । परन्तु यह सन्वैधानिक नाम भी हमे मूलनिवासी का एहशास नही कराता । सभी मूलनिवासी जातिया अजजा मे आने को तैयार है पर शामिल होकर आदिवासी शब्द को अन्गीकार नही करेगी । ना ही आपकी सन्सक्रति का पालन करेगी ! इसलिये आज जो कुछ बचा है उसे सरक्छित रखने मे आदिवासी शब्द सहयोगी बनता है जो अन्य वर्ग से आपकी पहचान को स्थापित करने मे सहयोगी बनता है तो इसका उपयोग करने मे कोई हर्ज नही । अन्यथा मूलनिवासी,आदिवासी,अनु०जनजाति अब वनवासी सभी नाम तो दूसरो का दिया है किस किस से बचोगे । याद रहे ट्राईबल शब्द भी दक्छिन अमेरिका मे गुलाम जातियो के लिये सम्बोधित है । जिसका उपयोग भी हमारे देश मे किया जाता है । आज देश के विभिन्न हिस्सो मे आदिवासी शब्द को आत्मसात कर लिया गया है इसलिये इस शब्द को सान्सक्रतिक एकता के प्रतीक रूप मे इस्तेमाल किया जाय तथा सामुदायिक पहचान पुरातन पहचान जो जाति नही वन्श आधारित थी ,जैसे १-कोलारियन जिसमे कोल,उराव,मुन्डा,हो, सन्थाल सहित उनकी समस्त उपजाति समूह २-गोडियन जिसमें गोन्ड ,परधान,ओझा, नगारची ,कोरकू भुमिया सहित इनकी समस्त उपजातिया ३-भीलियन जिसमें भील ,मीना,गरासिया, भिलाला,बारेला सहित इनकी समस्त उपजातिया ।
सगाजनो आदिवासी और मूलनिवासीयो के सम्बन्ध में आपके तर्क अपनी जगह सही है,लेकिन आदिवासी एवं मूलनिवासी शब्द अभी भी सन्वैधानिक दर्जा नहीं ले पाए हैं।परन्तु आदिवासी शब्द अपनी व्याख्या के साथ सारे देश में मूलनिवासी समुदाय के उस हिस्से का पर्याय बन चुका है जो अभी तक अपनी प्राकृतिवादी व्यवस्था एव सन्सक्रति मे जी रहे हैं जिससे उन्हें अन्य मूलनिवासी समुदाय से पहचाना जाता है । मूलनिवासी की परिभाशा मे तो देश का अनु०जाति ,अन्य पिछड़ा वर्ग भी है परन्तु इन्होंने मूल सान्सक्रतिक पहचान खो दिया है पर हैं तो मूलनिवासी ऐसी परिस्थिति में सान्सक्रतिक पहचान को सुरक्षित रखने वाला समूह यदि आदिवासी नाम पर सन्गठित होता है तो इस शब्द पर गम्भीर हुआ जा सकता है । अन्यथा मूलनिवासी शब्द आपकी सान्सक्रतिक पहचान को भी निगल लेगी कारण भी है कि मूलनिवासी समुदाय का मात्र आठ प्रतिशत हिस्सा जो सन्विधान में अनुसूचित जनजाति के नाम से जाना जाता है ,। मात्र इसी हिस्सा को हिन्दू नहीं माना जाता । अब यदि हम आदिवासी नाम को अलग करते हैं तो जो इसे आत्मसात करके सान्सक्रतिक पहचान रखने वाला समूह और इसके विरोध में खड़ा अपने आप को सान्सक्रतिक पहचान कायम रखने वाले के बीच दूरी बढ़ती है जो हमारी संस्कृति को बढ़ावा देने के मार्ग मे बाधा पहुंचाने का काम करेगी । में इस शब्द का समर्थक ना ही विरोधी हूँ । परन्तु मूलनिवासी शब्द भी हमे देश के विशाल अन्य मूलनिवासी जनसंख्या के समुद्र मे हमारी प्रथक पहचान को वास्पीक्रत कर सकता है । इसलिये या तो हम देश के समस्त मूलनिवासी जिन्हे ऐतिहासिक सन्दर्भ मे द्रविन कहा जाता है उन्हे मूल सन्सक्रति मे लाने के काम मे लगना पडेगा या हमे सन्वैधानिक नाम जो हमारा दिेया हुआ नही परन्तु एक सूचि मे होने के कारन एकता की मानसिकता पैदा करता है उसे माने । परन्तु यह सन्वैधानिक नाम भी हमे मूलनिवासी का एहशास नही कराता । सभी मूलनिवासी जातिया अजजा मे आने को तैयार है पर शामिल होकर आदिवासी शब्द को अन्गीकार नही करेगी । ना ही आपकी सन्सक्रति का पालन करेगी ! इसलिये आज जो कुछ बचा है उसे सरक्छित रखने मे आदिवासी शब्द सहयोगी बनता है जो अन्य वर्ग से आपकी पहचान को स्थापित करने मे सहयोगी बनता है तो इसका उपयोग करने मे कोई हर्ज नही । अन्यथा मूलनिवासी,आदिवासी,अनु०जनजाति अब वनवासी सभी नाम तो दूसरो का दिया है किस किस से बचोगे । याद रहे ट्राईबल शब्द भी दक्छिन अमेरिका मे गुलाम जातियो के लिये सम्बोधित है । जिसका उपयोग भी हमारे देश मे किया जाता है । आज देश के विभिन्न हिस्सो मे आदिवासी शब्द को आत्मसात कर लिया गया है इसलिये इस शब्द को सान्सक्रतिक एकता के प्रतीक रूप मे इस्तेमाल किया जाय तथा सामुदायिक पहचान पुरातन पहचान जो जाति नही वन्श आधारित थी ,जैसे १-कोलारियन जिसमे कोल,उराव,मुन्डा,हो, सन्थाल सहित उनकी समस्त उपजाति समूह २-गोडियन जिसमें गोन्ड ,परधान,ओझा, नगारची ,कोरकू भुमिया सहित इनकी समस्त उपजातिया ३-भीलियन जिसमें भील ,मीना,गरासिया, भिलाला,बारेला सहित इनकी समस्त उपजातिया ।
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