"विचारधारा का मानकीकरण"
गोन्डवाना के ऐतिहासिक तथ्य हो या साक्ष्य ,इन पर हमारे समाज के विद्वान अभी एकपक्षीय विश्लेषण कर जैसा चाहे वैसी व्याख्या कर अपनी अपनी श्रेष्ठता,विद्वत्ता का प्रदर्शन करने की होड में दिखाई देते हैं। अर्थात अपने मुह मिया मिट्ठू की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। किसी तथ्य, विषय के अध्ययन , तथा शुरुआत के लिये ऐसा करना आरम्भिक चरण में सही हो सकता है। पर एैसा ना हो कि चार अन्धे हाथी के बारे में अपनी अपनी व्याख्या में अडे रहे। जब आन्ख वाला आकर उन्हें असलियत बताये तो उन्हें शर्मिंदगी महसूस न हो। ध्यान रहे गोन्डवाना के एैतिहासिक , धार्मिक, सान्सक्रतिक तथ्यों पर दुश्मन सूक्ष्मता से नजर गडाया हुआ है। आज वह आपके विषय पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है, इसका मतलब यह नहीं कि वह बेखबर है।हमें अपने मुह मिया मिट्ठू बनने की बजाय राष्ट्रीय स्तर पर विचारधारा का मानक मापदन्ड तय कर लेना चाहिये ताकि किसी व्यक्ति , समुदाय, या उस विचारधारा के सन्गठन को अपनी बात द्रढता से रखने मे आसानी हो । आज यह समाज अपनी बात को अपनी प्रस्तुति को एकरूपता से नहीं रख पाने के कारण अन्धविश्वासी, रूढ़िवादी असभ्य आदि के सम्बोधन का पात्र बना हुआ है। बात भी सही है। हम अपनी विचारधारा के किसी एक महत्वपूर्ण विषय पर मानक स्थापित नहीं कर सके हैं।महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर मानक स्थापित करने के लिये समाज के बुद्धिजीवीयो को अपने अपने अहन्कार और निजता को त्याग करते हुए विचारधारा का तथ्य परक नीव स्थापित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायें ।
"सन्गठन और लक्ष्य"
किसी लक्ष्य को पाने के लिए सन्गठन पहली आवश्यकता है। चाहे वह पढ़े लिखे का हो या बिना पढ़े लिखे लोगों का । कारण कि सन्गठन एक ढान्चा है जिसमें निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये उपयुक्त तथा लक्ष्य प्राप्त करने के लिये आवश्यक तत्वों को अपने कन्धे पर लेकर चलने वाले कार्यकर्ताओं का चयन किया जाता है। कार्यकर्ता अपनी तासीर के अनुसार उस विषय का चयन कर कार्य में लग जाता है। चूकि लक्ष्य के साथ ही विचारधारा निर्धारित हो जाती है। इसलिये कार्यकर्ताओं को लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में कठिनाई नहीं होती। ऐसी परिस्थिति में सन्गठन नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है,जिसे वह अपनी कमेटी से चर्चा कर समय समय पर उसकी समीक्षा करता रहे।आगे बढ़ने के सुझाव आमंत्रित करता रहे। सन्गठन की महत्त्वपूर्ण कड़ी उसका सान्गठनिक ढान्चा होता है। जिसे समय समय पर नवीकरण कर लोगों के सामने प्रस्तुत करना होता है । ताकि सन्गठन के क्रियाकलापों पर आम जन का विश्वास अच्छे से स्थापित हो सके।
गोन्डवाना के ऐतिहासिक तथ्य हो या साक्ष्य ,इन पर हमारे समाज के विद्वान अभी एकपक्षीय विश्लेषण कर जैसा चाहे वैसी व्याख्या कर अपनी अपनी श्रेष्ठता,विद्वत्ता का प्रदर्शन करने की होड में दिखाई देते हैं। अर्थात अपने मुह मिया मिट्ठू की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। किसी तथ्य, विषय के अध्ययन , तथा शुरुआत के लिये ऐसा करना आरम्भिक चरण में सही हो सकता है। पर एैसा ना हो कि चार अन्धे हाथी के बारे में अपनी अपनी व्याख्या में अडे रहे। जब आन्ख वाला आकर उन्हें असलियत बताये तो उन्हें शर्मिंदगी महसूस न हो। ध्यान रहे गोन्डवाना के एैतिहासिक , धार्मिक, सान्सक्रतिक तथ्यों पर दुश्मन सूक्ष्मता से नजर गडाया हुआ है। आज वह आपके विषय पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है, इसका मतलब यह नहीं कि वह बेखबर है।हमें अपने मुह मिया मिट्ठू बनने की बजाय राष्ट्रीय स्तर पर विचारधारा का मानक मापदन्ड तय कर लेना चाहिये ताकि किसी व्यक्ति , समुदाय, या उस विचारधारा के सन्गठन को अपनी बात द्रढता से रखने मे आसानी हो । आज यह समाज अपनी बात को अपनी प्रस्तुति को एकरूपता से नहीं रख पाने के कारण अन्धविश्वासी, रूढ़िवादी असभ्य आदि के सम्बोधन का पात्र बना हुआ है। बात भी सही है। हम अपनी विचारधारा के किसी एक महत्वपूर्ण विषय पर मानक स्थापित नहीं कर सके हैं।महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर मानक स्थापित करने के लिये समाज के बुद्धिजीवीयो को अपने अपने अहन्कार और निजता को त्याग करते हुए विचारधारा का तथ्य परक नीव स्थापित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायें ।
"सन्गठन और लक्ष्य"
किसी लक्ष्य को पाने के लिए सन्गठन पहली आवश्यकता है। चाहे वह पढ़े लिखे का हो या बिना पढ़े लिखे लोगों का । कारण कि सन्गठन एक ढान्चा है जिसमें निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये उपयुक्त तथा लक्ष्य प्राप्त करने के लिये आवश्यक तत्वों को अपने कन्धे पर लेकर चलने वाले कार्यकर्ताओं का चयन किया जाता है। कार्यकर्ता अपनी तासीर के अनुसार उस विषय का चयन कर कार्य में लग जाता है। चूकि लक्ष्य के साथ ही विचारधारा निर्धारित हो जाती है। इसलिये कार्यकर्ताओं को लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में कठिनाई नहीं होती। ऐसी परिस्थिति में सन्गठन नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है,जिसे वह अपनी कमेटी से चर्चा कर समय समय पर उसकी समीक्षा करता रहे।आगे बढ़ने के सुझाव आमंत्रित करता रहे। सन्गठन की महत्त्वपूर्ण कड़ी उसका सान्गठनिक ढान्चा होता है। जिसे समय समय पर नवीकरण कर लोगों के सामने प्रस्तुत करना होता है । ताकि सन्गठन के क्रियाकलापों पर आम जन का विश्वास अच्छे से स्थापित हो सके।
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