"गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राजनीतिक क्रियाकलापों में पारदर्शिता लाने की आवश्यकता है"
गोंडवाना समग्र क्रांति आन्दोलन की समस्त सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक साहित्यिक शाखायें निरंतर प्रगति में हैं । वही इसकी राजनीतिक शाखा जो प्रजातंत्र में अहम भूमिका अदा करने वाली शाखा है कहीं न कहीं कमजोर नजर आती है । इसका प्रमुख कारण है कहीं ना कहीं हमसे गल्तिियां हो रहीं हैं । जिसे युवा पीढी को ध्यान चिंतन करना होगा । पहली बात यह कि समय समय पर महत्वपूर्ण मुददों को लेकर राष्टीय कमेटी की बैठक आयोजित किया जाना चाहिये जो कभी होती नहीं । गोंडवाना आन्दोलन से प्रभावित राज्यों के प्रतिनिधियों को लेकर राष्टीय कमेटी का निर्माण होना चाहिये जो नहीं है । इसी तरह पार्टी के सभी विभाग गठित कर उन्हें सार्वजनिक किया जाना चाहिये उसका रिकार्ड होना चाहिये जो कभी भी सार्वजनिक नहीं किये गये । पस संबंध में मैने अनेक बार सुझाव् दिये हैं लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ इन परिस्थितियों में संगठन के पदाधिकारी कभी भी कहीं भी व्यक्तिगत निर्णय लेकर पार्टी को नुकसान पहुंचा देते हैं । जिससे कार्यकर्ता और जनता का विश्वास टूटता है आन्दोलन के इस राजनीतिक शाखा को व्यवस्थित करने की आवश्यकता है । इसके लिये युवा पीढी को सामने आना होगा उसे वर्तमान परिस्थितियों में विभिन्न आयामों से लडने की क्षमता है । केवल भावनात्मक बहाव से नहीं बौद्धिक विचारण से आन्दोलन आगे बढेगा । आन्दोलन अनवरत जारी रहेगा जब तक हम समग्र लक्ष्य को हासिल नहीं कर लेते । जल्दबाजी भी नुकसान का कारण हो सकता है । आन्दोलन में जल्दबाजी वही करता है जो चाहता हैं कि मेरे किये का मुझे ही लाभ मिले पर आन्दोलन कारी समाज की अगली पीढी के लिये जिसे वह पैदा किया है उसके भविष्य को लेकर काम करता है । यही काम आजादी के दीवानों ने किया था उन्हें उसका लाभ तो नहीं मिला पर हम उनके बलिदान का आंशिक लाभ ले रहे हैं ।इस पर चितन मंथन कर अपने विचार दें ।
"राष्ट्रीय स्तर पर गोन्डियन विचारधारा के सन्गठनो का परिसन्घ बनाना होगा"
गोन्डवाना की विचारधारा के वाहक सन्गठन अविलम्ब राष्ट्रीय स्तर पर एक परिसन्घ बनाये जिसमें सभी सन्गठनो के दो-दो प्रतिनिधि उसके सदस्य हो। इस परिसन्घ की जिम्मेदारी होगी कि वह राष्ट्रीय स्तर पर भाषा, धर्म, सन्सक्रति तथा राजनीतिक मुद्दों पर अपनी राय से समाज को मार्गदर्शन करे,ताकि समाज एक सूत्र में बन्धकर समाज हित में सामूहिक निर्णय ले सके। समाज मे चल रही राजनीतिक गुलामगिरी से समाज को मुक्त करा सके । देश में आदिवासी नेतृत्व के कुछ दल सक्रिय हैं । जैसे गोन्डवाना गणतंत्र पार्टी,झारखंड मुक्ति मोर्चा,एन पी पी सहित अन्य आदिवासी हित की बात लेकर समाज के वोट को अपना आधार मानते हैं। जिनसे यह परिसन्घ उनके सन्गठन तथा उनके क्रियाकलापो की जानकारी लेकर समाज को अवगत कराने का कार्य करेगी। परिसन्घ समाज की सुप्रीम पावर होगी। भाषा विद, धर्म, सन्सक्रति के जानकार या अन्य विषयों के विशेषज्ञ इस परिसन्घ के आधार होन्गे । देश के विभिन्न राज्यो के गोडियन विचारधारा के सन्गठनो से समाज के बुद्धिजीवी आग्रह करे कि जल्द से जल्द इस परिसन्घ को मूर्तरूप देने मे अपनी सक्रिय भूमिका अदा करे
"सन्गठन और लक्ष्य"
किसी लक्ष्य को पाने के लिए सन्गठन पहली आवश्यकता है। चाहे वह पढ़े लिखे का हो या बिना पढ़े लिखे लोगों का । कारण कि सन्गठन एक ढान्चा है जिसमें निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये उपयुक्त तथा लक्ष्य प्राप्त करने के लिये आवश्यक तत्वों को अपने कन्धे पर लेकर चलने वाले कार्यकर्ताओं का चयन किया जाता है। कार्यकर्ता अपनी तासीर के अनुसार उस विषय का चयन कर कार्य में लग जाता है। चूकि लक्ष्य के साथ ही विचारधारा निर्धारित हो जाती है। इसलिये कार्यकर्ताओं को लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में कठिनाई नहीं होती। ऐसी परिस्थिति में सन्गठन नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है,जिसे वह अपनी कमेटी से चर्चा कर समय समय पर उसकी समीक्षा करता रहे।आगे बढ़ने के सुझाव आमंत्रित करता रहे। सन्गठन की महत्त्वपूर्ण कड़ी उसका सान्गठनिक ढान्चा होता है। जिसे समय समय पर नवीकरण कर लोगों के सामने प्रस्तुत करना होता है । ताकि सन्गठन के क्रियाकलापों पर आम जन का विश्वास अच्छे से स्थापित हो सके।
गोंडवाना समग्र क्रांति आन्दोलन की समस्त सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक साहित्यिक शाखायें निरंतर प्रगति में हैं । वही इसकी राजनीतिक शाखा जो प्रजातंत्र में अहम भूमिका अदा करने वाली शाखा है कहीं न कहीं कमजोर नजर आती है । इसका प्रमुख कारण है कहीं ना कहीं हमसे गल्तिियां हो रहीं हैं । जिसे युवा पीढी को ध्यान चिंतन करना होगा । पहली बात यह कि समय समय पर महत्वपूर्ण मुददों को लेकर राष्टीय कमेटी की बैठक आयोजित किया जाना चाहिये जो कभी होती नहीं । गोंडवाना आन्दोलन से प्रभावित राज्यों के प्रतिनिधियों को लेकर राष्टीय कमेटी का निर्माण होना चाहिये जो नहीं है । इसी तरह पार्टी के सभी विभाग गठित कर उन्हें सार्वजनिक किया जाना चाहिये उसका रिकार्ड होना चाहिये जो कभी भी सार्वजनिक नहीं किये गये । पस संबंध में मैने अनेक बार सुझाव् दिये हैं लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ इन परिस्थितियों में संगठन के पदाधिकारी कभी भी कहीं भी व्यक्तिगत निर्णय लेकर पार्टी को नुकसान पहुंचा देते हैं । जिससे कार्यकर्ता और जनता का विश्वास टूटता है आन्दोलन के इस राजनीतिक शाखा को व्यवस्थित करने की आवश्यकता है । इसके लिये युवा पीढी को सामने आना होगा उसे वर्तमान परिस्थितियों में विभिन्न आयामों से लडने की क्षमता है । केवल भावनात्मक बहाव से नहीं बौद्धिक विचारण से आन्दोलन आगे बढेगा । आन्दोलन अनवरत जारी रहेगा जब तक हम समग्र लक्ष्य को हासिल नहीं कर लेते । जल्दबाजी भी नुकसान का कारण हो सकता है । आन्दोलन में जल्दबाजी वही करता है जो चाहता हैं कि मेरे किये का मुझे ही लाभ मिले पर आन्दोलन कारी समाज की अगली पीढी के लिये जिसे वह पैदा किया है उसके भविष्य को लेकर काम करता है । यही काम आजादी के दीवानों ने किया था उन्हें उसका लाभ तो नहीं मिला पर हम उनके बलिदान का आंशिक लाभ ले रहे हैं ।इस पर चितन मंथन कर अपने विचार दें ।
"राष्ट्रीय स्तर पर गोन्डियन विचारधारा के सन्गठनो का परिसन्घ बनाना होगा"
गोन्डवाना की विचारधारा के वाहक सन्गठन अविलम्ब राष्ट्रीय स्तर पर एक परिसन्घ बनाये जिसमें सभी सन्गठनो के दो-दो प्रतिनिधि उसके सदस्य हो। इस परिसन्घ की जिम्मेदारी होगी कि वह राष्ट्रीय स्तर पर भाषा, धर्म, सन्सक्रति तथा राजनीतिक मुद्दों पर अपनी राय से समाज को मार्गदर्शन करे,ताकि समाज एक सूत्र में बन्धकर समाज हित में सामूहिक निर्णय ले सके। समाज मे चल रही राजनीतिक गुलामगिरी से समाज को मुक्त करा सके । देश में आदिवासी नेतृत्व के कुछ दल सक्रिय हैं । जैसे गोन्डवाना गणतंत्र पार्टी,झारखंड मुक्ति मोर्चा,एन पी पी सहित अन्य आदिवासी हित की बात लेकर समाज के वोट को अपना आधार मानते हैं। जिनसे यह परिसन्घ उनके सन्गठन तथा उनके क्रियाकलापो की जानकारी लेकर समाज को अवगत कराने का कार्य करेगी। परिसन्घ समाज की सुप्रीम पावर होगी। भाषा विद, धर्म, सन्सक्रति के जानकार या अन्य विषयों के विशेषज्ञ इस परिसन्घ के आधार होन्गे । देश के विभिन्न राज्यो के गोडियन विचारधारा के सन्गठनो से समाज के बुद्धिजीवी आग्रह करे कि जल्द से जल्द इस परिसन्घ को मूर्तरूप देने मे अपनी सक्रिय भूमिका अदा करे
"सन्गठन और लक्ष्य"
किसी लक्ष्य को पाने के लिए सन्गठन पहली आवश्यकता है। चाहे वह पढ़े लिखे का हो या बिना पढ़े लिखे लोगों का । कारण कि सन्गठन एक ढान्चा है जिसमें निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये उपयुक्त तथा लक्ष्य प्राप्त करने के लिये आवश्यक तत्वों को अपने कन्धे पर लेकर चलने वाले कार्यकर्ताओं का चयन किया जाता है। कार्यकर्ता अपनी तासीर के अनुसार उस विषय का चयन कर कार्य में लग जाता है। चूकि लक्ष्य के साथ ही विचारधारा निर्धारित हो जाती है। इसलिये कार्यकर्ताओं को लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में कठिनाई नहीं होती। ऐसी परिस्थिति में सन्गठन नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है,जिसे वह अपनी कमेटी से चर्चा कर समय समय पर उसकी समीक्षा करता रहे।आगे बढ़ने के सुझाव आमंत्रित करता रहे। सन्गठन की महत्त्वपूर्ण कड़ी उसका सान्गठनिक ढान्चा होता है। जिसे समय समय पर नवीकरण कर लोगों के सामने प्रस्तुत करना होता है । ताकि सन्गठन के क्रियाकलापों पर आम जन का विश्वास अच्छे से स्थापित हो सके।
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