"गोंडी भाषा द्रविड भाषाओं की जननी है"
भारतीय परिवेष में भाषायी मामले में विभिन्न भाषाविदों ने देश में भाषा परिवार को दो समूह में विभाजित किया है ।
1 द्रविड भाषा समूह 2 आर्यन/संस्कृृत भाषा समूह
जिसमें द्रविड भाषा परिवार में गोंडी,तमिल,मलयालम,कन्नड आदि भाषाओं को द्रविड भाषा परिवार के अंर्तगत सम्लिित किया गया है वही देश की अन्य भाषाओं जैसे संस्कृृत सहित हिन्दी,गुजराती, मराठी,पंजाबी,उडिया, बंगाली आदि भाषाओं कों आर्य समूह की संस्कृत भाषा की सहोदर बताया गया है। भाषा अनुसंधान शास्त्रियों ने इस विभाजन के साथ ही संस्कृृत भाषा के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है लेकिन,मौलिक सत्यापन से यह निश्कर्श निकलता है कि संस्कृृत भाषा गैर आर्य भाषा गैर द्रविड भाषा पाली भाषा से साम्यता रखती है इसका मतलब यह है कि आर्य समूह की भाषा संस्कृत का उदभव पाली से हुआ है । अब प्रष्न उठता है कि तमिल और संस्कृत को पुरानी भाषा मानने वाले भाषाविदों को पुनः अपनी शोध का पुनरावलोकन करने की आवष्यकता है । अर्थात आर्य समूह की मूल भाशा संस्कृत भारतीय परिवेष में स्थानय पाली भाषा जो मूलनिवासी दृविण परिवार की स्थानीय बोली रही है । उससे प्रभावित होकर फली फूली परन्तु पाली भाशा के बराबर व्यापक नहीं हो पायी । पाली भाषा ने संस्कृत को लेखनी की भाषा तक सीमित कर दिया । पाली जन जन की भाषा रही जिसे आर्यों के प्रथम आगम क्षेत्र में उस समय की भाषायी प्रभाव क्षेत्र से जाना जा सकता है । बौद्ध काल तक संस्कृत और पाली का संघर्श चलता रहा परन्तु पाली भाषा पर संस्कृत हावी नहीं हो सका । वृहदरथ की हत्या और मौर्य शासन की समाप्ति के बाद संस्कत ने अपना प्रभाव उत्तर से दक्षिण की ओर फैलाने का प्रयास किया । लेकिन दृविण परिवार की मूल भाषा गोंडी को प्रभावहीन नहीं कर सकी । संस्कृत भाषा आर्य समूह के राजकीय जीत के कारण दक्षिण के स्थानीय भाषा जो गोंडी भाषा परिवार जिसमें तमिल, तेलगू, उडिया, कन्नड, मलयालम तथा पूर्वोत्तर की कुडुख तथा मुण्डारी भाषाओं पर अपना प्रभाव जमाने का प्रयास किया लेकिन स्थानीय दृविण परिवार की भाषाओं ने संस्कृत को सोख लिया और उनके शब्दों को लेकर वे दृविण भाषा परिवार की भाषाओं के अस्तित्व को बरकरार रखा यही कारण है कि दृविण भषा परिवार की भाषा तमिल तेलगू, मलयालम, कन्नड, कुडुख, उडिया और मुण्डारी आदि भाषाओं में संस्कृत से अधिक गोंडी भाषाओं के शब्दों की अधिकता पाई जाती हैं । भाषा विदों को बिना पूर्वाग्रह के हमारे देष की मूल भाषा खोज करना है तो एक ही उदाहरण से समझ लेना चाहिये कि भाषा समूह की मुख्य भाषा केवल दृविण गोंडी है । जिसमें आज भी लगभग आठ राज्यों में सुदूर जंगलों खोह कन्दराओं में रहने वाली जनजाति प्रमुख रूप से गोंडी भाषा को व्यवहार में लाती है । जिन्हे आज भी पूर्णतः तमिल तेलगू उडिया मराठी कुडुख मुण्डारी आदि भाषा ना ही हिन्दी और ना ही संस्कृत समझ में आती है । इसका मतलब स्पश्ट है कि आर्यों के आगमन के पूर्व इस देश की भाषा गोंडी रही है तथा इनकी सहोदर स्थानीय क्षेत्रीय बोली के रूप पाली कन्नड तेलगू मलयालम उडिया कुडुख मुण्डारी आदि स्थानीय भाषायें रहीं हैं । जिन्हें आर्य भाषा संस्कृत ने सत्ता के बल पर प्रभावित करने का प्रयास किया लेकिन स्थानीय दृविण भाषा परिवार की बोलियों ने उन्हें सोख लिया या पनपने नहीं दिया । और सत्ताधारी समूह की भाषा के कुछ शब्दों को लेकर अपनी पहचान को कायम रखा जिसे आज भाषाविद आर्य और दृविण भाषा परिवार के रूप मे विभाजित करते हैं जोे उनके शोधकार्य पर प्रष्नचिन्ह लगाता है ।
इसलिये इस देश की प्राचीन मातृृभाषा की खोज करना है तो गोंडी भाषा का आधार लिये बिना संभव नहीं । इसलिये यह लेख भाषाविदों के शोध के लिये मार्गदर्षक हो सकता है । यदि शोध बिना पूर्वाग्रह के हो ।
गुलजार सिह मरकाम
संपादक
अखण्ड गोंडवाना पाक्षिक समाचार पत्र
भारतीय परिवेष में भाषायी मामले में विभिन्न भाषाविदों ने देश में भाषा परिवार को दो समूह में विभाजित किया है ।
1 द्रविड भाषा समूह 2 आर्यन/संस्कृृत भाषा समूह
जिसमें द्रविड भाषा परिवार में गोंडी,तमिल,मलयालम,कन्नड आदि भाषाओं को द्रविड भाषा परिवार के अंर्तगत सम्लिित किया गया है वही देश की अन्य भाषाओं जैसे संस्कृृत सहित हिन्दी,गुजराती, मराठी,पंजाबी,उडिया, बंगाली आदि भाषाओं कों आर्य समूह की संस्कृत भाषा की सहोदर बताया गया है। भाषा अनुसंधान शास्त्रियों ने इस विभाजन के साथ ही संस्कृृत भाषा के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है लेकिन,मौलिक सत्यापन से यह निश्कर्श निकलता है कि संस्कृृत भाषा गैर आर्य भाषा गैर द्रविड भाषा पाली भाषा से साम्यता रखती है इसका मतलब यह है कि आर्य समूह की भाषा संस्कृत का उदभव पाली से हुआ है । अब प्रष्न उठता है कि तमिल और संस्कृत को पुरानी भाषा मानने वाले भाषाविदों को पुनः अपनी शोध का पुनरावलोकन करने की आवष्यकता है । अर्थात आर्य समूह की मूल भाशा संस्कृत भारतीय परिवेष में स्थानय पाली भाषा जो मूलनिवासी दृविण परिवार की स्थानीय बोली रही है । उससे प्रभावित होकर फली फूली परन्तु पाली भाशा के बराबर व्यापक नहीं हो पायी । पाली भाषा ने संस्कृत को लेखनी की भाषा तक सीमित कर दिया । पाली जन जन की भाषा रही जिसे आर्यों के प्रथम आगम क्षेत्र में उस समय की भाषायी प्रभाव क्षेत्र से जाना जा सकता है । बौद्ध काल तक संस्कृत और पाली का संघर्श चलता रहा परन्तु पाली भाषा पर संस्कृत हावी नहीं हो सका । वृहदरथ की हत्या और मौर्य शासन की समाप्ति के बाद संस्कत ने अपना प्रभाव उत्तर से दक्षिण की ओर फैलाने का प्रयास किया । लेकिन दृविण परिवार की मूल भाषा गोंडी को प्रभावहीन नहीं कर सकी । संस्कृत भाषा आर्य समूह के राजकीय जीत के कारण दक्षिण के स्थानीय भाषा जो गोंडी भाषा परिवार जिसमें तमिल, तेलगू, उडिया, कन्नड, मलयालम तथा पूर्वोत्तर की कुडुख तथा मुण्डारी भाषाओं पर अपना प्रभाव जमाने का प्रयास किया लेकिन स्थानीय दृविण परिवार की भाषाओं ने संस्कृत को सोख लिया और उनके शब्दों को लेकर वे दृविण भाषा परिवार की भाषाओं के अस्तित्व को बरकरार रखा यही कारण है कि दृविण भषा परिवार की भाषा तमिल तेलगू, मलयालम, कन्नड, कुडुख, उडिया और मुण्डारी आदि भाषाओं में संस्कृत से अधिक गोंडी भाषाओं के शब्दों की अधिकता पाई जाती हैं । भाषा विदों को बिना पूर्वाग्रह के हमारे देष की मूल भाषा खोज करना है तो एक ही उदाहरण से समझ लेना चाहिये कि भाषा समूह की मुख्य भाषा केवल दृविण गोंडी है । जिसमें आज भी लगभग आठ राज्यों में सुदूर जंगलों खोह कन्दराओं में रहने वाली जनजाति प्रमुख रूप से गोंडी भाषा को व्यवहार में लाती है । जिन्हे आज भी पूर्णतः तमिल तेलगू उडिया मराठी कुडुख मुण्डारी आदि भाषा ना ही हिन्दी और ना ही संस्कृत समझ में आती है । इसका मतलब स्पश्ट है कि आर्यों के आगमन के पूर्व इस देश की भाषा गोंडी रही है तथा इनकी सहोदर स्थानीय क्षेत्रीय बोली के रूप पाली कन्नड तेलगू मलयालम उडिया कुडुख मुण्डारी आदि स्थानीय भाषायें रहीं हैं । जिन्हें आर्य भाषा संस्कृत ने सत्ता के बल पर प्रभावित करने का प्रयास किया लेकिन स्थानीय दृविण भाषा परिवार की बोलियों ने उन्हें सोख लिया या पनपने नहीं दिया । और सत्ताधारी समूह की भाषा के कुछ शब्दों को लेकर अपनी पहचान को कायम रखा जिसे आज भाषाविद आर्य और दृविण भाषा परिवार के रूप मे विभाजित करते हैं जोे उनके शोधकार्य पर प्रष्नचिन्ह लगाता है ।
इसलिये इस देश की प्राचीन मातृृभाषा की खोज करना है तो गोंडी भाषा का आधार लिये बिना संभव नहीं । इसलिये यह लेख भाषाविदों के शोध के लिये मार्गदर्षक हो सकता है । यदि शोध बिना पूर्वाग्रह के हो ।
गुलजार सिह मरकाम
संपादक
अखण्ड गोंडवाना पाक्षिक समाचार पत्र
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