भारतीय सविधान मे राजनीतिक दलों के लिये कोई व्यवस्था या प्रतिनिधित्व को महत्व नहीं है। केवल जनप्रतिनिधि या प्रतिनिधित्व को स्वीकार करता है । जनप्रतिनिधियो ने समूह बनाकर या एक कम्पनी बनाकर जिसे हम पार्टी का नाम देकर एक कम्पनी की तरह अपनी बनाई कम्पनी नीति को जनता पर थोपते हैं । उदाहरण के लिये सदन में अध्यक्ष द्वारा माननीय सदस्य के रूप में सम्बोधन होता है । पार्टी के माननीय सदस्य नहीं । उदाहरण २- किसी अध्यादेश प्रस्ताव पर सदस्यों को अपने स्वविवेक से मतदान के लिये कहना । जहां तक पार्टी व्हिप का प्रश्न है वह केवल पार्टी विशेष का जबरिया आदेश है । इसके उल्लन्घन पर सदस्यता समाप्त नहीं होती । पार्टी उसे निष्कासित कर देती है । सन्विधान ने केवल प्तिनिधित्व को सर्वोच्च माना है । जनप्रतिनिधी केवल अगली टिकिट के भय से भयभीत रहते हैं । लालच ना हो तो कभी भी दलो से बगावत कर सकते हैं पार्टियां उस सदस्य का कुछ बिगाड नहीं सकती । इस बात को कोई दल बताने वाला नहीं । जिसने सन्विधान को अच्छी तरह पता है जरूर समझता है । इस जानकारी के बाद एक सामान्य मतदाता अपने प्रतिनिधि से इस तरह का सवाल जरूर कर सकता है -गुलज़ार सिंह मरकाम (जनहित में प्रकाशित)
"चूरन की गोली और दवा"
प्रसिद्ध शायर और कवि" डॉ राहत इन्दौरी कहते हैं। मुशायरे के मन्च में बहुत से कवि होते हैं जो चूरण गोली बेचकर वाहवाही लूट लेते हैं, तालियां बटोर लेते हैं। वह केवल मनोरंजन का सबब होता है। कोई गहरा सन्देश नहीं। चूरन की गोली से बीमारी ठीक नहीं होती। बीमारी दवा से ठीक होती है पर दवा कडवी होती है,समझ में नहीं आती। पर बीमारी तो दवा से ही जायेगी। चूरन गोली से नहीं । कुछ लोग चूरन गोली बेचकर महान बनने का प्रयास करते हैं। यह उनका भ्रम है । चूरन चूरन होता है, दवा दवा होती। डॉ राहत इन्दौरी कहते हैं मैं तो दवा बाटता हूँ कडवी जरूर होती है पर जहाँ पहुचाना चाहता हूँ वहाँ जरूर पहुचती है । में किसी की चिंता नहीं करता ।
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