जैसा कि सभी को विदित है दुनिया में यदि आज तक जितने संघर्ष हुए हैं एैसे सभी संघर्ष विजय हासिल करने के लिये हुए है । एैसे विजय व्यक्ति से लेकर समूह समाज और राष्ट तक की उंचाई तक जाते हैं । जहां विजेता को धन संपदा गुलाम नागरिक अपार संसाधन प्राप्त होते हैं। विजेता जानता है कि यह उसकी बाहरी जीत है भौतिक जीत है । इसलिये वह अपनी जीत को स्थायी बनाने के लिये अपनी विचारधारा जिसमें उसकी भाषा धर्म संस्कृति को षिक्षा साहित्य और अनेक कर्मकाण्डों आयोजनों के माध्यम से विजितों में स्थापित करने का प्रयास करता है । यदि विजेता अपनी विचारधारा को विजितों पर पूर्णतः स्थापित कर दे तो विजेता का विजय अभियान के लिये किया गया संघर्ष सफल माना जाता है । भारतीय परिवेष में विभिन्न आक्रमणकारियों ने समय समय पर भारत देष में पूर्वणतः विजय हासिल कर विचारधारा ने को स्थापित करने का प्रयास किया है ।
आर्यों से लेकर अंग्रजों तक से स्थानीय मूलनिवासियों अपने आप को बचाने का समय समय पर डटकर मुकाबला किया है लेकिन अज्ञात कमजोरी के कारण मूूूूूूलनिवासी बाहरी लडाई हारते गये । व्यक्ति से लेकर राष्ट की सत्ता जल जंगल जमीन धन संपदा और भौतिक संसाधनों और आंषिकतः मूल विचारधारा भाषा धर्म संस्कृति से वंचित होते गये । विजेताओं के इस सत्ता के विजय ने विजय को चिरस्थायी बनाये रखने के लिये अपनी विचारधारा को स्थापित करने के लगातार प्रयास किये और उनका यह प्रयास लगातार जारी है । परिणामस्वरूप हमारे देष में अनेक विचारधाराऐं प्रवाहित होती रहीं हो रहीं हैं । यथा इस्लाम ईसाईयत लेनिन मार्क की साम्यवादी एवं आयों की मनुवादी विचारधारा प्रवाहित है । देष का मूलनिवासी इन सभी विचारधाराओं में समय समय पर बहता गया । विजेताओं की विचारधाराओं में भी अपने वर्चस्व को स्थापित किये जाने हेतु लगातार संघर्ष हुए और आये दिन आज भी जारी है । इसलिये भी कोई एक विजेता की विचारधारा इस देष में पूर्णतः सफल नहीं हो सकी है और ना ही सफल होने की संभावना है । चूंकि इस देष का सामाजिक बौद्धिक और भौगोलिक पर्यावरण एैसी विचारधाराओं के लिये पूर्णतया उर्ववरा नहीं है । विजेता सत्ता में आकर अपनी विचारधारा को बलपूर्वक मनवाने का प्रयास करे तब भी उसके लिये यह कार्य दुष्कर है । इस्लामी विचारधारा के संबंध में कहा जाता है कि लोगों को मार मार कर मुसलमान बनाया जाता था एक समय एैसा था कि पूरा बंगाल मुस्लिम धर्म को स्वीकार चुका था पर अब क्या स्थिति है सबके सामने है । वहीं ईसाईयत ने अपनी 200 सालों की सत्ता के रहते पद प्रतिष्ठा का लालच ईसाईयत की विचारधारा को स्थापित करने का प्रयास किया लेकिन कही ना कहीं उसे भी मुंह की खानी पड रही है ।
अन्य विजेताओ की तरह आर्यों की मनुवादी विचारधारा के वाहक भी अन्य विजेताओं की तरह सत्ता की षक्ति तथा साम दाम दंण्ड भेद नामक उनके कथित अमोघ अस्त्र का समय समय पर उपयोग कर मूलनिवासियों को अपनी विचाधारा में बहा ले जाने का प्रयास करते रहे और आज भी सत्तासीन होकर इस प्रयास में सत्ता को भरपूर उपयोग कर रहे हैं । परन्तु इन्हें यह पता होना चाहिये कि इस देष की धरती एैसे विचारधाराओं को आत्मसात नहीं कर सकती ! उसे तो इस देष के मूल बीज मानवों द्वारा स्थापित सम्पूर्ण जीव जगत के उत्थान के लिये स्थापित जनकल्याणकारी विचारधारा ही रास आयेगी । जिन विचारधाराओं ने आज के कथित विकसित व्यवस्था के अगुवा बनकर विष्व में भौतिक विकास का झंडा गाडने की बात कर रहे हैं एैसी व्यवस्थाओं ने केवल षोषण और उपभोग वाद को आगे बढाया है । वहीं इंसान को मषीन के रूप में विकसित किया है । जिस तरह मषीन काम तो करता है लेकिन उसमें भावनाएं और संवेदनाएं नहीं होती । एैसा विकास एकपक्षीय ही कहा जा सकता है । इस अंधाधुध उपभोगवाद के चलते प्रकृति के साथ साथ मानव जीवन से भी खिलवाड हो रहा है ।
दुनिया के देषों के द्वारा गठित संयुक्त राष्ट संघ ने विष्व के सामाजिक और प्रकृति पर्यावरण के लगातार दूषित होने की भविष्य की चिंता को लेकर ही षायद विष्व के आदिवासियों के जीवन दर्षन और उनकी भाषा धर्म संस्कृति कोेेेेेे सुरक्षित रखे जाने के लिये विष्व के सभी देषों को आव्हान किया है । इसका साफ मतलब है कि दुनिया केवल गोंडवाना लैण्ड के आदिवासी जीवन दर्षन एवं उसकी विचारधारा से ही सुरक्षित रह सकती है । एैसे मौके पर गोंडवाना समग्र क्रांति आन्दोलन के तहत आदिवासियों की प्रकृतिवादी विचारधारा को मजबूत करने की आवष्यकता है । जिसमें आदिवासियों के जीवन दर्षन जीवनचर्या उनकी भाषा धर्म संस्कृति अथार्त समग्र विचारधारा को जन जन तक पहंुचाने का प्रयास हो । गोंडवाना भूभाग के उन समस्त आदिवासियों चाहे वे अपनी किसी अलग अलग मूल भाषा को बोलने वाले हों या क्षेत्रों में निवास करते हैं । सबका जीवन दर्षन मान्यतायें स्वभाव आचरण एक ही है चूंकि सभी प्रकृतिवाद के पोषक है इसलिये गोंडवाना समग्र क्रांति आन्दोलन का आव्हान है कि आदिवासियों की एकीकृत प्रकृतिवादी विचारधारा भाषा धर्म संस्कृति के प्रवाह के लिये एक सोच विचार और व्यवहार अपनाकर आदिवासी साहित्य आख्यान व्याख्यान सेमिनार और अन्य माध्यमों से अच्छी विचारधारा की अच्छी प्रस्तुति देने का प्रयास करें ताकि भारत देष के साथ साथ मानव सभ्यता के लिये दुनिया में पुनः भारत के अगुवा होने का प्रमाण प्रस्तुत कर सके । प्रस्तुति: गुलजार सिंह मरकाम
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