इंसान ने मानव विकास के आरंभिक काल से ही खान पान और स्वास्थ्य पर पहले चिंता की है । इस चिंता में उसने अनेक जानें न्यौछावर की हैं । किस वस्तु को खाना है किसे नहीं इस पर ही अनेक जानें गईं होगी । इसी तरह आरंभिक इंसानी विकास में स्वास्थ्य संबंधी उपचार में भी अनेक तरह के बलिदान के बाद उपचार के मानक तय किये गये हैं । जो आज की आधुनिक चिकित्सा का बराबरी से साथ दे रहे हैं । जबकि आधुनिक चिकित्सा पद्धति अभी शोध कार्य में ही लगी हुई है । गोंडवाना के आदिवासियों की स्वास्थ्य परंपरा की बराबरी आज भी नहीं कर पा रही है । आधुनिक उपचार प्रणाली को गोंडवाना के आदिवासियों की उपचार प्रणाली से मार्गदर्शन लेने का प्रयास करना चाहिये । हालांकि चुपके चुपके आदिवासियों के इस प्रणाली को अंगीकार करने का प्रयास किया जा रहा है पर कथित डिग्री के एकाधिकार के कारण आदिवासी ज्ञान को अंधविश्वास और रूढि कहकर अविश्वस्नीय करार दिया जाता है जबकि इस पर खुला शोध कोर उस ज्ञान का सम्मान होना चाहिये ।
गोंडवाना के आदिवायिों का देश के इंसानी स्वास्थ्य के साथ साथ पशु पक्षी चीटी मूंगी तक के उपचार की प्रणाली विकसित कर लिया गया था और इस उपचार प्रणाली को अंतिम जन तक पहुंचाया जा चुका था जो आज भी देखने को मिल रहा है । जबकि संचार माध्यम के बावजूद आधुनिक व्यवस्था ने इस लक्ष्य को अभी तक हासिल नहीं कर पाया है ।
आज भी हर तरह की चिकित्सा प्रणाली प्रत्येक ग्राम तक नहीं पहुच पाना आधुनिक व्यवस्था की अयोग्यता ही कही जा सकती है । देश का अधिकांश नागरिक आदिवासियों की चिकित्सा पद्धति का लाभ ले रहे हैं, जिसे नकारा नहीं जा सकता अन्यथा वर्तमान व्यवस्था स्वास्थ्य के मामले में अपने आप को निरीह पाती ! इसमें आदिवासियों की चिकित्सा पद्धति का देश को आज भी बहुत बडा योगदान है ,
आदिवासियों की स्वास्थ्य प्रणाली की अंतिम इकाई तक पहुच के कुछ बिन्दु निम्न लिखित है । लेख विस्तार भय से इसे संक्षिप्त करने के प्रयास में बिन्दुवार रख जा रहा है । फिर कभी इस पर विस्तार संभव है।
1. गोंडवाना की ग्राम स्वास्थ्य उपचार संरचना ।
अ.मनोचिकित्सक (झाड फूक) करने वाला
ब.आयुर्वेदाचार्य (जडी बूटी )से चिकित्सा करने वाला
क. दायी (प्रसव) उपचार हेतु
इ.शल्य चिकित्सक (हडडी मोच )आदि की चिकित्सा
फ- पशु चिकित्सक (जानवर पक्षी) आदि की चिकित्सा
च. बैगा भुमका पडिहार (रक्षा और चिकित्सा) ग्राम सीवान या मेढो के अंदर कृषि और पशु रक्षा और चिकित्सा !
2. पांच से पचास ग्रामों के लिये चिकित्सा
क- ग्राम पेन ठाना पेन के द्वारा परलौकिक चिकित्सा
ख- पांच ग्राम की पेन मढिया उपरोक्त सभी चिकित्सा के साथ
ग- राज ठाना संबंधित पचास ग्रामों का प्रमुख चिकित्या केंद्र
घ -राज मढिया संबंधित राज्य का प्रमुख चिकित्सा केंद्र जो राजा के सहयोग से संचालित था
(गोंडवाना के आदिवासियों की चिकित्सा पद्धति तंत्र मंत्र और यंत्र की विधा से संचालित होती है ।)
गोंडवाना के आदिवायिों का देश के इंसानी स्वास्थ्य के साथ साथ पशु पक्षी चीटी मूंगी तक के उपचार की प्रणाली विकसित कर लिया गया था और इस उपचार प्रणाली को अंतिम जन तक पहुंचाया जा चुका था जो आज भी देखने को मिल रहा है । जबकि संचार माध्यम के बावजूद आधुनिक व्यवस्था ने इस लक्ष्य को अभी तक हासिल नहीं कर पाया है ।
आज भी हर तरह की चिकित्सा प्रणाली प्रत्येक ग्राम तक नहीं पहुच पाना आधुनिक व्यवस्था की अयोग्यता ही कही जा सकती है । देश का अधिकांश नागरिक आदिवासियों की चिकित्सा पद्धति का लाभ ले रहे हैं, जिसे नकारा नहीं जा सकता अन्यथा वर्तमान व्यवस्था स्वास्थ्य के मामले में अपने आप को निरीह पाती ! इसमें आदिवासियों की चिकित्सा पद्धति का देश को आज भी बहुत बडा योगदान है ,
आदिवासियों की स्वास्थ्य प्रणाली की अंतिम इकाई तक पहुच के कुछ बिन्दु निम्न लिखित है । लेख विस्तार भय से इसे संक्षिप्त करने के प्रयास में बिन्दुवार रख जा रहा है । फिर कभी इस पर विस्तार संभव है।
1. गोंडवाना की ग्राम स्वास्थ्य उपचार संरचना ।
अ.मनोचिकित्सक (झाड फूक) करने वाला
ब.आयुर्वेदाचार्य (जडी बूटी )से चिकित्सा करने वाला
क. दायी (प्रसव) उपचार हेतु
इ.शल्य चिकित्सक (हडडी मोच )आदि की चिकित्सा
फ- पशु चिकित्सक (जानवर पक्षी) आदि की चिकित्सा
च. बैगा भुमका पडिहार (रक्षा और चिकित्सा) ग्राम सीवान या मेढो के अंदर कृषि और पशु रक्षा और चिकित्सा !
2. पांच से पचास ग्रामों के लिये चिकित्सा
क- ग्राम पेन ठाना पेन के द्वारा परलौकिक चिकित्सा
ख- पांच ग्राम की पेन मढिया उपरोक्त सभी चिकित्सा के साथ
ग- राज ठाना संबंधित पचास ग्रामों का प्रमुख चिकित्या केंद्र
घ -राज मढिया संबंधित राज्य का प्रमुख चिकित्सा केंद्र जो राजा के सहयोग से संचालित था
(गोंडवाना के आदिवासियों की चिकित्सा पद्धति तंत्र मंत्र और यंत्र की विधा से संचालित होती है ।)
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