"बैगा ,भुमका, दवार या पुजार की जनहितैषी निःस्वार्थ सेवा"
देश के सभी गांवों में खेरोदाई या बूढी दाई है, खीला मुठवा तथा भिमालपेन है । इन ग्राम रक्षक देवताओं को विभिन्न क्षेत्रों राज्यों में अलग अलग नामों से जाना जाता है । सभी गांवों में विभिन्न जाति समुदाय और धर्म के लोग निवास करते हैं । परन्तु ये गांव आज भी खेरोदई, खीला मुठवा तथा उस ग्राम के बैगा ,भुमका, दवार या पुजार के द्वारा धर्मिक रूप से शासित होते हैं । जाति और संप्रदायवाद से उपर उठकर सबके खेत खलिहान फसल सुरक्षा के लिये रोग राई से बचाने बिदरी, खूंट पूजा आदि करके बैगा भुमका दवार या पुजार ग्राम को निःशुल्क सेवा देते हैं । दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि देश में धर्म कर्म में लिप्त विभिन्न वर्ग,जाति और समुदायों ने इन निःशुल्क सेवादारों के बारे कभी चिंतन नहीं किया ! देश के अन्य रजिस्टर्ड मंदिरों या देवालयों में वैतनिक पुजारी नियुक्त हैं, जो केवल धर्म विशेष के समुदायों के लिये सेवा करते हैं , जिन्हें केवल साम्प्रदायिक पुजारी ही कहा जा सकता है, जो बैगा भुमका दवार या पुजार की निःस्वार्थ सेवा की उंचाई को छू भी नहीं सकते ! यही नहीं निःशुल्क औषधि संहाव (सहायता)के संस्कार का लाभ आज भी हर वर्ग जाति और समुदाय ले रहा है पर इस व्यवस्था का सम्मान नहीं करता ,इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है । ग्राम या नार व्यवस्था के संस्थापको ने सम्प्रदायवाद की कभी कल्पना नहीं की थी जिसे आज भी ग्राम संस्कृति में व्यवहार रूप में देखा जा सकता है । इसलिये इंसान को भाईचारा प्रेम और समानता का संदेश देने वाली विचारधारा और उसके जनहितैषी नीतियों का सम्मान करना होगा । छदम राष्टवाद नहीं, असली राष्टवादी तत्वों को विकसित करना होगा । जैसे हमारे बैगा भुमका दवार या पुजार की जनहितैषी निःस्वार्थ सेवा है । -gsmarkam
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