(2)- “प्रथक धर्म काेड हेतु जनगणना में कालम स्थापित कराना”
२०२१ में भारत की जनगणना में धर्म कोड कालम में जनजातियों के लिये कालम नम्बर ७ में “आदि पुनेम” या “प्रक्रतिवादी सरना पुनेम” को स्थापित कराने की मुहिम के लिये ग्रह मंत्रालय को आदिवासी समुदा़य के सभी संगठन पत्र लिखें । उदाहरण स्वरूप :-धर्म कालम(१) हिन्दू (२) इस्लाम (३) सिख (४) ईसाई (५) जैन (६) बौद्ध एवं कालम
(७) प्रक्रतिवादी सरना पुनेम (गोंडी/कोया)
प्रक्रतिवादी सरना पुनेम (सरना)
प्रक्रतिवादी सरना पुनेम (भीली)
प्रक्रतिवादी सरना पुनेम (आदि) इस तरह लिखा जाये । सभी समूहों की अपनी प्रथक पहचान भी कायम रहेगी और जनगणना में सभी जनजातियों की धार्मिक संख्या एक साथ गिनी जा सकेगी । तब जनगणना कर्मचारी केवल जनगणना कालम में “सही” का निशान ही अंकित करेगा उसके पास कोई विकल्प नहीं होगा । आप उसे कहेंगे कि पहले कालम (७) में “सही” का निशान लगायें तत्पश्चात (......) कोष्टक में हम सरना, गोंडी,भीली या आदि लिखवाने पर जोर दें । इससे यह तो होगा कि वह कालम “७” पर केवल “सही” का निशान ही अन्कित कर सकता है । तब भी हमारी गणना प्रथक से हो सकेगी ! जनजातियों का प्रथक धार्मिक अस्तित्व कायम हो सकता है । जनजाति समुदाय हिन्दू नही है , सुप्रीम कोर्ट का फैसला फलीभूत हो सकता है । मेरा मानना है कि उपरोक्त उदाहरण से हम अपने आप को सहमत कर लेते हैं तो जनगणना २०२१ में आदिवासियों को प्रथक धर्म कालम स्थापित कराने से कोई नहीं रोक सकता । अन्यथा जनजातियों के लिये जनगणना पत्रक में ८३ कालम बनाना सम्भव नहीं ! भारत के रजिस्ट्रार जनरल से किये गये विभिन्न सामाजिक संगठनों के पत्र व्यवहार का प्रतिउत्तर भी यही संकेत देता है । जनजातियों के सभी समूहों को जनहित में कुछ आंशिक समझौता करना होगा तभी हम अपने लक्छ्य को हाशिल कर सकते हैं । यह मेरे निजी विचार हैं , आवश्यक नहीं कि इससे सभी सहमत हों पर सुझाव की अपेच्छा रहेगी ।-gsmarkam
(2)- "देश की व्यवस्था को अपने अनुकूल करना होगा ।"
वर्तमान सामाजिक ,धार्मिक, आर्थिक ,राजनैतिक, सांस्कृतिक व्यवस्था देश के मूलनिवासियों के प्रतिकूल है । इसे अपने अनुकूल करने के लिये वर्तमान आई टी युग में युवा वर्ग मोबाईल नेटवर्क से सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक व्यवस्था की वास्तविक जानकारी प्रसारित करके देश की तश्वीर बदल सकते हैं ।-gsmarkam
(3)- "नकली सा लगने लगा है देश का ये वर्तमान दौर ।"
इलेक्ट्रानिक मीडिया और अखबारों की सुर्खियां बता रहीं हैं कि भारत देश का असली चेहरा छुपाकर नकली चेहरा बनाकर उसमें मीडिया का प्रायेजित रंग चढाकर जनता के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है । किसको दिखाना है किस खबर को छापना हे या नहीं छाापना है सब प्रायेजित है । देश के असली चेहरे को देखने के लिये जनता की समस्याओं से रूबरू होने की जरूरत है, तब पायेंगे कि हकीकत क्या है और जनता को क्या दिखाया और पढाया जा रहा है ।-gsmarkam
Comments
Post a Comment