मप्र में"भावान्तर"नही "भयान्तर" को समझो ।
मप्र की राजनीतिक धरातल में तीसरी बड़ी राजनीतिक सन्गठन का आधार स्थापित नहीं होना ही मप्र में राजनीतिक भय और भयान्तर की समझ नहीं होने का प्रतीक है। किसी सत्तारूढ स्थापित दल के विरुद्ध प्रदेश में यदि वातावरण बनने लगता है तब स्थापित विपक्षी दल और सत्तारूढ दल मिलकर यह वातावरण बनाने लगते हैं कि सत्तारूढ दल को सबक सिखाना है तो विपक्षी दल को सत्ता में लाओ तब तुम्हारी समस्याओं का निदान हो जायेगा आदि आदि --- पर मतदाता यह क्यों भूल जाता है कि इसी विपक्षी दल की जनविरोधी नीतियों के कारण आपने उसे सत्ता से बाहर किया था। इसका मतलब है कि ५साल में मतदाता सब कुछ भूल गया ! पुनः गल्तिया दुहरा देता है । यह गल्ती एक बार हो तो भूल कहा जा सकता है पर बार बार की गल्ति को राजनीतिक समझ की कमी ही कहा जा सकता है । अन्य राज्य के मतदाता की समझ और मप्र छग के मतदाता की समझ मे यही अन्तर है । यही कारण है कि यहा अन्याय अत्याचार शोषण का बाजार सदैव गर्म रहता है । लगता है राजनीतिक दूरदशिर्ता की कमी के कारण "एक बात दिमाग मे घर बना चुकी है कि लगातार नुकशान झेलते हुए भी "कोई नर्प होई हमे का हानि" वाली कहावत को चरितार्थ करते दिखाई देते है । मेरा मानना है कि यह केवल हताशा का परिचायक हो है । यही हताशा मप्र मे तीसरी शक्ति के उदय नही होने देने का मुख्य कारण हो सकता है । मतदाता साहसिक निर्णय लेने से कतराता दिखता है । मतदाता आत्मविश्वास खोये तो समझ की कमी के रूप में समझा जा सकता है पर विभिन्न मजबूत विचारधारा वाले दलों के कार्यकर्ता भी ऐसी समझ के भवरजाल में फन्सकर अपना मन विचलित करते दिखाई दे तब उसे क्या कहा जा सकता है । मप्र में प्रचारित भावान्तर योजना में लाभ के लिए भवर में फसा किसान कहें या राजनीतिक लाभ पाने की आस में भयान्तर के दोष का पीड़ित कार्यकर्ता या मतदाता कहें ? -gsmarkam
मप्र की राजनीतिक धरातल में तीसरी बड़ी राजनीतिक सन्गठन का आधार स्थापित नहीं होना ही मप्र में राजनीतिक भय और भयान्तर की समझ नहीं होने का प्रतीक है। किसी सत्तारूढ स्थापित दल के विरुद्ध प्रदेश में यदि वातावरण बनने लगता है तब स्थापित विपक्षी दल और सत्तारूढ दल मिलकर यह वातावरण बनाने लगते हैं कि सत्तारूढ दल को सबक सिखाना है तो विपक्षी दल को सत्ता में लाओ तब तुम्हारी समस्याओं का निदान हो जायेगा आदि आदि --- पर मतदाता यह क्यों भूल जाता है कि इसी विपक्षी दल की जनविरोधी नीतियों के कारण आपने उसे सत्ता से बाहर किया था। इसका मतलब है कि ५साल में मतदाता सब कुछ भूल गया ! पुनः गल्तिया दुहरा देता है । यह गल्ती एक बार हो तो भूल कहा जा सकता है पर बार बार की गल्ति को राजनीतिक समझ की कमी ही कहा जा सकता है । अन्य राज्य के मतदाता की समझ और मप्र छग के मतदाता की समझ मे यही अन्तर है । यही कारण है कि यहा अन्याय अत्याचार शोषण का बाजार सदैव गर्म रहता है । लगता है राजनीतिक दूरदशिर्ता की कमी के कारण "एक बात दिमाग मे घर बना चुकी है कि लगातार नुकशान झेलते हुए भी "कोई नर्प होई हमे का हानि" वाली कहावत को चरितार्थ करते दिखाई देते है । मेरा मानना है कि यह केवल हताशा का परिचायक हो है । यही हताशा मप्र मे तीसरी शक्ति के उदय नही होने देने का मुख्य कारण हो सकता है । मतदाता साहसिक निर्णय लेने से कतराता दिखता है । मतदाता आत्मविश्वास खोये तो समझ की कमी के रूप में समझा जा सकता है पर विभिन्न मजबूत विचारधारा वाले दलों के कार्यकर्ता भी ऐसी समझ के भवरजाल में फन्सकर अपना मन विचलित करते दिखाई दे तब उसे क्या कहा जा सकता है । मप्र में प्रचारित भावान्तर योजना में लाभ के लिए भवर में फसा किसान कहें या राजनीतिक लाभ पाने की आस में भयान्तर के दोष का पीड़ित कार्यकर्ता या मतदाता कहें ? -gsmarkam
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