"सत्ता का चरित्र" "सत्य,नैसर्गिक है सबके लिये समान है,पर सत्ताऐं केवल अपने सत्य को ही सर्वोपरी मानती है,तथा अपने सत्य के विरोधी को दंड देती है। इसलिए सत्य के विजय के लिए सत्ता से संघर्ष करना पड़ता है । सत्ता अपने हित को जनहित बताकर जनता को नहर, बांध, अभ्यारण, उद्योग लगाने के नाम पर विस्थापन के लिए मजबूर कर देती है। वहीं। विकास के नाम गलत निर्णय लेकर जनता के धन का दुरुपयोग कर लेती है। जनता के द्वारा ऐसे फैसले का विरोध यानी सत्ता का विरोध होता है,तब सत्ता दंड स्वरूप गिरफ्तारी,कारावास या गोली चालन करती है। सत्ता का यही चरित्र है। " (गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)