"लोकतंत्र की पाठशाला है शेड्यूल्ड एरिया"
भारतीय संविधान के निर्माताओं ने शेड्यूल्ड एरिया को प्रजातंत्र की पाठशाला के रूप में चिन्हित किया था ताकि भारत संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य बन सके । देश के बहुत सारे हिस्सों में आजादी के बाद भी जमीदारी,पूंजीवादी अधिनायक वादी ताकतें लगातार देश की व्यवस्था को अंग्रेजों की भांति अपने इर्द-गिर्द रखना चाहती थी परंतु संविधान निर्माताओं ने "सुंदर,स्वस्थ्य,समृद्ध समाज और राष्ट्र की कल्पना के लिए प्रयोगशाला के बतौर "शेड्यूल्ड एरिया" घोषित किया जिससे प्रेरणा लेकर ये फासीवादी, अतिवादी,पूंजीवादी मानसिकता के बिगड़ैल लोगों में कुछ सुधार हो सके। इन चिन्हित क्षेत्रों जिसमें गरीबी और अभाव के बीच भी शांति और भाईचारा कायम था,और अब भी उसके अवशेष जीवित हैं,ये लुट जाते हैं पर किसी को लूटने का साहस नहीं कर पाते, सामूहिक निर्णय लेने की परंपरा जिसे प्रजातंत्र का असली स्वरूप कहा जा सकता है, बतौर प्रयोगशाला में स्पष्ट दिखाई दे रहा था परंतु आधुनिक व्यवस्था के संचालकों ने प्रजातंत्र की इन चिन्हित प्रयोगशालाओं में दखल करते हुए शिक्षा और विकास के नाम पर यहां के वातावरण को बिगाड़ने का काम किया है। भारत को यदि शांति, सद्भाव और समृद्धि चाहिए तो आदिवासी सुरक्षित क्षेत्रों को स्वशासन और पूर्ण स्वायत्तता देनी होगी आदिवासी के जीवन दर्शन और मूल्यों को महत्व देना होगा। जल ,जंगल,जमीन को कॉरपोरेट सेक्टर के पूंजीवादी पंजों से बचाना होगा।
-गुलजार सिंह मरकाम (रासंगोंसक्रांआं)
भारतीय संविधान के निर्माताओं ने शेड्यूल्ड एरिया को प्रजातंत्र की पाठशाला के रूप में चिन्हित किया था ताकि भारत संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य बन सके । देश के बहुत सारे हिस्सों में आजादी के बाद भी जमीदारी,पूंजीवादी अधिनायक वादी ताकतें लगातार देश की व्यवस्था को अंग्रेजों की भांति अपने इर्द-गिर्द रखना चाहती थी परंतु संविधान निर्माताओं ने "सुंदर,स्वस्थ्य,समृद्ध समाज और राष्ट्र की कल्पना के लिए प्रयोगशाला के बतौर "शेड्यूल्ड एरिया" घोषित किया जिससे प्रेरणा लेकर ये फासीवादी, अतिवादी,पूंजीवादी मानसिकता के बिगड़ैल लोगों में कुछ सुधार हो सके। इन चिन्हित क्षेत्रों जिसमें गरीबी और अभाव के बीच भी शांति और भाईचारा कायम था,और अब भी उसके अवशेष जीवित हैं,ये लुट जाते हैं पर किसी को लूटने का साहस नहीं कर पाते, सामूहिक निर्णय लेने की परंपरा जिसे प्रजातंत्र का असली स्वरूप कहा जा सकता है, बतौर प्रयोगशाला में स्पष्ट दिखाई दे रहा था परंतु आधुनिक व्यवस्था के संचालकों ने प्रजातंत्र की इन चिन्हित प्रयोगशालाओं में दखल करते हुए शिक्षा और विकास के नाम पर यहां के वातावरण को बिगाड़ने का काम किया है। भारत को यदि शांति, सद्भाव और समृद्धि चाहिए तो आदिवासी सुरक्षित क्षेत्रों को स्वशासन और पूर्ण स्वायत्तता देनी होगी आदिवासी के जीवन दर्शन और मूल्यों को महत्व देना होगा। जल ,जंगल,जमीन को कॉरपोरेट सेक्टर के पूंजीवादी पंजों से बचाना होगा।
-गुलजार सिंह मरकाम (रासंगोंसक्रांआं)
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