"मध्य प्रदेश स्थापना दिवस और गोंडवाना राज्य"
आजाद भारत के बाद राज्यों के पुनर्गठन १ नवंबर १९५६ में यदि सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है तो वह है गोंडवाना राज्य का हुआ, देश में सभी राज्य क्षेत्रीय भाषाई आधार पर सीमांकित किये गये पर गोंडवाना राज्य(सीपी &बरार) जिसकी राजधानी नागपुर थी, की भाषायी ,सांस्कृतिक,और भूगोल को तहस नहस कर दिया गया था। गोंडी भाषिक जनता को मराठी,तेलुगू,उड़िया और बुंदेलखंडी बोलने के लिये विवश कर दिया। सांस्कृतिक पहचान को भी रंग बिरंगे टुकड़ों के साथ जोड़ दिया। यही कारण है कि देश के सभी राज्य अपनी स्थानीय भाषा संस्कृति को सुरक्षित करने के साथ अपनी पहचान बनाये रखकर स्वाभिमान और गौरव के साथ उत्तरोतर विकास की ओर अग्रसर हैं,ऐसे राज्यों में राजनीति का केंद्र भी स्थानीय समुदाय के हाथों में रहता है, परंतु मप्र को अभी तक ऐसे किसी महत्त्वपूर्ण बिन्दु पर खास सफलता नहीं मिल पा रही है,ना ही सत्ता का केंद्र स्थानीय सरोकारों के लिये वचनबद्ध दिखाई देती है। हजारों किलोमीटर दूर का ढोकला,गरबा ,इटली डोसा ,कत्थक ,
चाऊमीन इस प्रदेश की पहचान बन रहा है पर यहां का कोदों कुटकी,लाटो सुहारी रीना कर्मा सैला सैताम अभी भी अपनी पहचान बनाने में असफल है । कारण स्पष्ट है कि राज्य नहीं बनने से इन सबको प्रश्रय नहीं मिला। प्रदेश में गंगा नदी नहीं है पर उसकी पवित्रता नर्मदा मैया से अधिक मान्य है। यह सब कुछ होता है,जब किसी भाषा संस्कृति और भूगोल को सुनियोजित षणयंत्र का शिकार बनाया गया होता है तो ! इसलिये १ नवंबर मप्र स्थापना दिवस सरकार या कुछ लोगों के लिये खुशी का दिवस हो सकता है। परन्तु मुझे जैसे मूढ़ को यह काला दिवस के रूप में दिखाई देता है जो शायद अपने जीवन काल तक अविश्मर्णीय रहेगा। -गुलजार सिंह मरकाम (रासंगोंसक्रांआं)
आजाद भारत के बाद राज्यों के पुनर्गठन १ नवंबर १९५६ में यदि सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है तो वह है गोंडवाना राज्य का हुआ, देश में सभी राज्य क्षेत्रीय भाषाई आधार पर सीमांकित किये गये पर गोंडवाना राज्य(सीपी &बरार) जिसकी राजधानी नागपुर थी, की भाषायी ,सांस्कृतिक,और भूगोल को तहस नहस कर दिया गया था। गोंडी भाषिक जनता को मराठी,तेलुगू,उड़िया और बुंदेलखंडी बोलने के लिये विवश कर दिया। सांस्कृतिक पहचान को भी रंग बिरंगे टुकड़ों के साथ जोड़ दिया। यही कारण है कि देश के सभी राज्य अपनी स्थानीय भाषा संस्कृति को सुरक्षित करने के साथ अपनी पहचान बनाये रखकर स्वाभिमान और गौरव के साथ उत्तरोतर विकास की ओर अग्रसर हैं,ऐसे राज्यों में राजनीति का केंद्र भी स्थानीय समुदाय के हाथों में रहता है, परंतु मप्र को अभी तक ऐसे किसी महत्त्वपूर्ण बिन्दु पर खास सफलता नहीं मिल पा रही है,ना ही सत्ता का केंद्र स्थानीय सरोकारों के लिये वचनबद्ध दिखाई देती है। हजारों किलोमीटर दूर का ढोकला,गरबा ,इटली डोसा ,कत्थक ,
चाऊमीन इस प्रदेश की पहचान बन रहा है पर यहां का कोदों कुटकी,लाटो सुहारी रीना कर्मा सैला सैताम अभी भी अपनी पहचान बनाने में असफल है । कारण स्पष्ट है कि राज्य नहीं बनने से इन सबको प्रश्रय नहीं मिला। प्रदेश में गंगा नदी नहीं है पर उसकी पवित्रता नर्मदा मैया से अधिक मान्य है। यह सब कुछ होता है,जब किसी भाषा संस्कृति और भूगोल को सुनियोजित षणयंत्र का शिकार बनाया गया होता है तो ! इसलिये १ नवंबर मप्र स्थापना दिवस सरकार या कुछ लोगों के लिये खुशी का दिवस हो सकता है। परन्तु मुझे जैसे मूढ़ को यह काला दिवस के रूप में दिखाई देता है जो शायद अपने जीवन काल तक अविश्मर्णीय रहेगा। -गुलजार सिंह मरकाम (रासंगोंसक्रांआं)
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