"दो वोट के अधिकार का सामाजिक रूप से उपयोग संभव है"
पूना पैक्ट मैं गांधी के द्वारा की गई धूर्तता पूर्ण छल कपकपट दो वोट के अधिकार से वंचित किया जाना,को संसद,विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव घोषणा के साथ दो वोट के प्रयोग का रिहर्सल करके गांधी की कपटता का जवाब दिया जा सकता है। यथा चुनाव घोषणा के साथ ही निर्वाचन आयोग द्वारा घोषित मतदान तिथि और नामांकन के पूर्व अनुसूचित वर्गो द्वारा आसन्न चुनाव में भाग लेने वाले इच्छुक प्रतिभागियों के बीच प्रथम "एक वोट" का सामाजिक मतदान की व्यवस्था करके सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी को ही मुख्य चुनाव में प्रत्याशी बनाया जाये तथा उसे ही समुदाय द्वारा "दूसरा वोट" से मतदान करने की अपील हो । ऐसा करने से किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में आपका प्रत्याशी ही विजयी हो सकता है। अनुसूचित वर्गों द्वारा इस तरह का किया गया प्रयास गांधी को पूना पेक्ट का उचित जवाब होगा।
--गुलजार सिंह मरकाम (gska)
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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