भारत देश की आजादी 1947 के बाद अनुसूचित जनजाति छेत्र यानी पांचवीं, छठवीं अनुसूची क्षेत्रों में आकर बसे विदेशी शरणार्थी हैं ऐसे लोग इन क्षेत्रों में केवल व्यापार करके लाभ कमा कर अपने मूल स्थान में वापस जा सकते हैं परंतु यहां पर से स्थाई संपत्ति अर्जित नहीं कर सकते ना ही स्थाई निवास कर सकते। ऐसे लोगों के व्यवस्थापन की समस्या भारत सरकार की है ना कि जिसके मूल निवासी आदिवासी की है इसलिए इसी संदर्भ में मंडला डिंडोरी सहित अनेक क्षेत्रों में सिंधी शरणार्थी आकर अवैध रूप से बस हुए हैं ऐसे लोगों की स्थाई संपति जप्त की जाए उन्हें केवल व्यापार करने की अनुभूति के तहत व्यपार करके लाभ कमा के उन्हें जो भारत सरकार में शरणार्थी कैंप बना कर दिए हैं वहां पर निवास करें पांचवे सूची शेत्र में स्थाई निवास का कोई भी पट्टा या रजिस्ट्री पूरी तरह अवैध है ग्रामगण राज्य पार्टी इस विषय पर संवैधानिक तरीके से आंदोलन करके ऐसी कृत्य का विरोध करेगी। गुलजार सिंह मरकाम (gska)
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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