कल तक और आज भी सत्ताधारी पार्टियां, चाहे वह कांग्रेस, भाजपा या कोई हो, आदिवासी समुदाय को केंद्र सरकार में मंत्री, राज्यसभा सदस्य,आयोग का अध्यक्ष (केवल जनजाति आयोग) बना दिया जाता है, कभी कभी किसी राज्य जैसे झारखंड में आदिवासी को लुभाने के लिए अर्जुन मुंडा जैसे रबर स्टैंप मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल भी बना दिया जाता है।अब तो राष्ट्रपति भी, पर इससे आदिवासी का क्या भला हो गया। आदिवासी जहां था वहीं पर आज भी खड़ा हुआ है ऐसे रबर स्टैंप्स के रहते आदिवासियों की सारी जल जंगल जमीन सब लुटती जा रही है इस लूट पर मुहर लगाने वाले यही रबर स्टैंप हैं । एकाध अपवाद छोड दिया दिया जाय, तो क्या जनसंख्या के अनुपात में किसी प्रदेश में कांग्रेस या भाजपा ने प्रदेश का अध्यक्ष और प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का कोई प्रयत्न या प्रयास किया ? नहीं, क्यूंकि यही मुख्य पद जिसे "कीपोस्ट" या मास्टर चाबी कहा जाता है जिस पर सत्ताधारी दल अन्य किसी दलित पिछड़े आदिवासी को आने नहीं देता, आदिवासी को तो आने ही नहीं देना चाहता । ऐसी परिस्थितियों में समुदाय के बुद्धिजीवीयों को गहन चिंतन करना आवश्यक हो गया है । मप्र के आगामी 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए निर्णय लिया है की मप्र का अगला "मुख्यमंत्री आदिवासी" होना चाहिए की आवाज को लेकर हमारा राजनीतिक संगठन हर मतदाता से जनादेश की अपील करेगा ।
गुलजार सिंह मरकाम
(राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)
"जय सेवा जय जोहार जय संविधान"
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