विचारधारा जिसे वृहत समुदाय में स्थापित करना है ,तो हमारी वैचारिक समझ में समानता हो ,
हमारी नासमझी कहीं-न-कहीं अन्य विचारधारा को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मजबूत करती है। मेरी ओर से हमेशा , समुदाय की बोलचाल भाषा या व्यवहार में जो परसंस्कृति के "शब्द विष" और दूषित क्रियाकलाप प्रयोग में लाये जाते हैं। कहीं ना कहीं हमें विचारधारा से भटकाती है।हम इन छोटे छोटे शब्दों को महत्व नहीं देते और अनजाने ही परसंस्कृति के वाहक बन जाते हैं। मुझे लगता है कि कुछ लोग केवल व्यक्तिगत आपसी विरोध के चलते सही और गलत शब्दों का जानबूझकर प्रयोग करते हैं ताकि सामने खडे विरोधी व्यक्ति को नीचा दिखाया जा सके।
उदाहरण के लिए मनुवादी अवतार वाद के सिद्धांत को मजबूत करने वाले "अवतरण" (जन्म) शब्द का आंख बंद करके धड़ल्ले से उपयोग होता है। किसी ने भी इस "शब्द विष" के प्रभाव के बारे में समझाने का प्रयास नहीं किया।
भारत देश को भारत कहने में क्या परेशानी है ,हमारे अपने लोग मौका देखकर या सरेआम मंचों में "हिंदुस्तान" के नाम का संबोधन करके परोक्ष रूप से उनकी विचारधारा को ही मजबूत कर रहे हैं। शब्दों की तरह ही हमारे क्रियाकलापों में भी मिश्रण नजर आता है, कौन सा त्योहार /पर्व किसे महत्व देना या नहीं देना यह भी हमारे बुद्धिजीवी वर्ग के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। विचारधाराएं कैसे विभाजित दिखाई देती है इसका उदाहरण तिरंगा विरूद्ध भगवा का एलान और भी ताजा उदाहरण भारत देश का तिरंगे की आड में प्रभाव डालना,एक विचारधारा कहती है चार दिन तक तिरंगा लहराओ, घर घर लगाओ । एक विचारधारा कहती है १५अगस्त को ही लहरायेंगे और घर के साथ दिल के अंदर लगायेंगे। अब आपको कहां खड़ा होता दिखना चाहिए यह आपकी विचारधारा और परिपक्वता को प्रमाणित करेगी।
प्रस्तुतकर्ता - गुलजार सिंह मरकाम (GSKA)
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