प्राचीन इतिहास और आर्य
आजकल हमारे बहुत से साथी आर्य कोन थे ,कहाँ से आये थे इस पर काफी चर्चा चल रही है ! जिन स्थानों को इतिहास के विद्यार्थी सिन्धु सभ्यता के रूप में जानते हैं वे हैं -१ . हड़प्पा २ .मोहनजोदड़ो जिन्हें वैदिक काल में ऋग्वेदिक मनुष्यों ने कहा -१. हरियुपिया २. मुर्विदुर्योण ! ये स्थान या राजधानियां या गणराज्य कुछ और नहीं ''कुवया राज्य '' के अंतर्गत उम्मो गुट्टाकोर में इंगित किये गए ''हर्वाकोट ''और ''मुर्वाकोट '' ही हैं !ऐसे कितने कोट हैं जो धरती के गर्भ में छिपे और समाये हैं अनुसंधान होते रहेंगे ? और गोंडों का इतिहास उगागर होगा और इतिहास के अनुत्तरित प्रश्नों के समाधान निकल आयेंगे ! आर्य के आने के पूर्व कुवया राज्य काफी विस्तृत रहा है ! यह निषकर्ष निकाला जा सकता है ! आर्य कहाँ से आये ? (१) सर विलियम जोन्स फिलिपियो ,सालिटी आदि विद्वानों ने आर्यों का मूल निवास स्थान यूरोप कहा है ! (२ ) कुछ विद्वान डेन्यूब के किनारे ,आस्ट्रिया ,हंगरी के मैदान या जर्मनी को मूल स्थान मानते है ! (३) केस्पियन सागर के पास रूस के दक्षिणी भाग कोकेशस प्रान्त को प्रोफ़ेशर चाईल्स ने आर्यों का मूल स्थान बताया है (४ ) लोकमान्य तिलक का मत है की उत्तरी ध्रुव प्रदेश आर्यों का मूल स्थान है ! (५)मेक्समूलर का मत है की मध्य एशिया आर्यों का मूल स्थान है ! (६) डा अविनाश चन्द्र दास और डा सम्पूरनानंद के मत से आर्यों का मूल स्थान सप्तसिंधु प्रदेश है ! (७)डा डी .एस।दिवेदी के मत से मुल्तान प्रदेश में देविका नदी घाटी आर्यों का आदि स्थान है ! (८) देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने भी आर्यों के सिन्धु में आगमन का डिस्कवरी ऑफ़ इण्डिया में विस्तृत वर्णन किया है ! आर्यों के मूल स्थान को लेकर इतने भ्रम उपस्थित हैं तो सत्य कैसे खोज जाय ! इतिहास की इतनी जानकारी तो सबको है की देवासुर संग्राम हुआ था ! जो आर्य अनार्य युद्ध है ,जो काफी लम्बे समय तक चलता रहा ! इंद्र ने सम्बर के सौ दुर्ग तोड़े !ये इंद्र कोण था ? ये शम्बर कोण था ? निश्चित ही इंद्र आर्यों का जनरल था और शम्बर कुयवा राज्य कुयवा संस्कृति का शहंशाह था ,और युद्ध का कारण दो सभ्यताओं का संघर्ष था ,दो राजाओं का युद्ध नहीं था ! यह कुयवा राज्य पर आक्रमण था ! धन ,धरती को हड़पने की लालसा थी ! जो आज तक बनी हुई है !हिन्दू इतिहासकार भारत राष्ट्र को अक्षुण बनाये रखना चाहते हैं भारत आर्य वंश का था इसलिए सम्पूर्ण कुयवा राज्य को भारत वर्ष कहा गया ! केवल गोंड नेता ही नहीं गोंदियाँ प्रजा भी भारत को कुयवा राज्य या गोंडवाना मानती है ! गोंड यदि अपनी मात्रभूमि को उसके प्राचीन और एतिहासिक महत्त्व के नाम से पुकारते हैं तो क्या गलत करते हैं जिन लोगों ने अपने धर्म और संस्कृति को पचाया नहीं और आर्यों के गुलाम हो गए वे ऐसा मानने को तैयार नहीं हैं !गुलामी उनके विचारों को बदलने नहीं देती है ! हजारों सैलून की गुलामी इतनी आसानी से कैसे जा सकती है ? यही वजह है की ब्राह्मणवादी विचारधारा विष बेल की तरह पनपती रहती है और इस पावन धरती पर जातिवाद का विषैला वातावरण सदा बना रहता है ! जिसमें देश के मूलनिवासी कीड़े मकोड़ों की तरह रेंगते हुए जिन्दगी बसर करते हैं ! आर्यों के आगमन के पूर्व कुयवा राज्य की मूल भाषा जिसमें इस देश के पहाड़ पर्वतो के नामों की जानकारी हमें गोंडी भाषा के शब्दों से मिलती है ! उम्मोली ,काजोली ,सिन्दाली, रोमरोम निल्कोंडा ,कोयली कचार ,कुपार गढ़ आदि ! नदियों के नाम युग्मा ,गुणगा ,सुलजा ,नरगोदा पेन गंगा वेनगंगा ,हिरोगंगा ,रायगोदा मीनगोदा आदि ! भारतीय मनुष्य के लिए यह शंसोधन का विषय है की वह बताये की आर्यों ने नदी पहाड़ो के नाम बदलकर क्या दर्शाया है !और किस किस नाम में परिवर्तन किया है ! ''किसी कोम की संस्कृति को बदलने के लिए नदी पहाड़ो के नाम ही नहीं शहरों गावों तक के नाम के साथ साथ महापुरुष ,देवी देवताओं के नाम बदलकर सांस्कृतिक विरासत को मिटा दिया जाता है ! उसे सत्ता से हमेशा के लिए दूर कर दिया जाता है ! इसलिए गोंडीयनों को सतत जागरूक बने रहना है !और एतिहासिक महत्त्व की चीजों की खोज करते रहना चाहिए ! गोंडी भाषा के अंतर्गत प्रयोग में आने वाले कुछ शब्द अत्यधिक महत्त्व केगोंड जिनका उपयोग इतिहास को समझने में बहुत ही सहायक हैं ! यथा ,कैमुरी दीप -कोयामूरी ,कोया मर्रीयों का देश ! कोइलवास- कैलाश शम्भुशेक का निवास ,! माया -मावायाल ,हमारी माता ! मौर्य -मुरिया ,माडिया ,कोया मर्रीयों का राजवंश ! कोयम्बटूर _ दक्षिन में कोयतुर लोगों का निवास !कोयतुर - कोया पुनेम को मानने वाला पुरुष ! कोयापुनेम -प्रकृति से पुष्पित ,सत्यमार्ग ,कोय्तुरों का आदिधर्म ! मूरी -मर्री ,पुत्र ! गोंडराज्य -गणराज्य या गोंडवाना के लोगों का राज्य !
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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