''हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की अच्छी प्रस्तुति हो ! ''आदिवासी समाज के युवाओं में जिस तरह से एक चेतना का संचार हो रहा है ! इससे लगता है कि ये समाज को एक नई दिशा दे सकेंगे ! सबसे बड़ी बात यह हो रही है की युवा अब अपने धर्म ,संस्कृति ,सभ्यता,इतिहास को अन्यों की नहीं बल्कि अपनी दृष्टी से देखना शुरू कर दिए है ! महत्वपूर्ण बात यह भी है की युवा अब ज्ञान संग्रह की अभिलाषा रखने लगे ! यही संग्रहित ज्ञान उन्हें अपना इतिहास लिखने में सहायक होगा ! आदिवासी समाज के सामाजिक ,सांस्कृतिक मूल्यों की अच्छी प्रस्तुति ,से गैर आदिवासी जो जनजाति की सूचि में नहीं है ,परन्तु वह मूलनिवासी है ,प्रभावित हुए बिना नहीं रह पायेगा ! इसका कारण भी है कि वह भले ही वह हिंदूवादी जाल में फंसा है पर कही न कही आदिवासी संस्कृति के अन्दर अपने आप को पाता है ! जिन्हें आज हम सवैधानिक भाषा में पिछड़ा वर्ग ,अनुसूचित जाति की सूचि में पाते हैं ! वे और कोई नहीं अपने ही लोग हैं ! जिन्हें देश की मूल संस्कृति से अलग करने के लिए अंग्रेजों ने प्रयास किया था ,उस कार्य को वर्तमान हिंदूवादी राजनितिक व्यवस्था ने जारी रखा है ! अन्यथा एक राज्य में एक जाति अनुसूचित जनजाति की सूचि में है ,वही जाति दूसरे राज्य में जनजाति की सूचि में शामिल है ,अन्य तीसरे राज्य में पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में अंकित है ! यही नहीं एक ही राज्य के अलग अलग जिलों में एक ही जाति अनुसूचित जनजाति है तो अन्य जिले में पिछड़ा वर्ग बनाया गया है ! यह सांस्कृतिक एकता को कमजोर करने का महत्वपूर्ण षड्यंत्र है ! इसे हमें सभी मूलनिवासियों को बताना होगा ! अभी हमारा देश सांस्कृतिक रूप से पूर्णतः पराजित नहीं हुआ है ! सिर्फ हमें अपनों को अपना होने का एहसास कराना है !''
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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