हमारी सोच लगातार आदिवासी हित के लिए बढती जा रही है !अच्छा संकेत है ! इस सोच को लगातार बनाये रखकर विभिन्न छेत्रो में जो वैचारिक अंतर दिखाई देता है ! यथा( धार्मिक सामाजिक एवं राजनितिक )उन वैचारिक अंतर को भी धीरे धीरे कम करना है !हमारी सांस्कृतिक पहचान तो लगभग एक है इसमें दो राय नहीं यही विषय हमारी एकता का सूत्र भी है ! धार्मिक विषय थोडा सवेदनशील है पर बुद्धिजीवी इसे अच्छी प्रस्तुति देकर समाज को एक दिशा में ला सकते है ! अभी हम समस्या के आधार पर एकजुट होते नजर आ रहे है पर ये काफी नहीं होगा ! हमें उन तमाम विषयों पर एक सोच एक विचार रखना रखना होगा तब हम किसी समस्या पर एक व्यवहार [एक्शन ] कर पाएंगे ! यही कॉमन एक्शन हमारी ताकत होगी ! यही हमारे विजय की सीदी होगी !
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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