आजादी की लडाई कुछ इस तरह लडें.........
हम आदिवासियों को यदि आजादी की लडाई लडना है तो विदेषी आयोैं की भाशा धर्म संस्कृति सहित हर पहचान को धीरे धीरे समाप्त करना होगा । यह काम जरा कठिन है । परन्तु कुछेक बातों से हम संकल्प ले सकते हैं । जैसे हम अपने धरों में में राम कृश्ण बृहमा विष्नु हनुमान लक्ष्मी दुर्गा आदि की फोटो या मूर्ति न रखें यदि रखी है तो उसका विसर्जन कर दें । अपने बच्चों का नाम हिन्दु देवी देवता या अन्य उनके चर्चित नाम से ना रखें । इसके लिये हमारे महापुरूश या देवताओं के नाम का उपयोग करें । हमारी पूजा पद्वति प्रकृतिक और अपने पूर्वजों की मान्यताओं के अनुरूप् हो । हमारे भोजन में पुराने पकवानों को स्थापित करें । हमारे पहनने वाले आभूशणों के महत्व को बढायें उन्हें पहनें या उपयोग हो । संस्कृत का उपयोग करके ब्राहमन या अन्य संप्रदाय का व्यक्ति हमें भाशा के माध्यम से प्रभावित करने का प्रयास करता है । इस षब्द का जरा भी इस्तेमाल ना करें । हो सके तो अपनी मातृभाशा जो भी हो का प्रयोग करें अभी नहीं आ रही है तो कम से कम मातृभाशा के बीच में हिन्दी का प्रयोग कर सकते हैं । या हिन्दी के साथ अपनी मातृभाशा के षब्दों का उपयोग करना प्रारंभ कर दें । यहीं से आजादी का संघर्श प्रारंभ होगा । यदि हम यहां से अपनी तैयारी करते हैं तब हमारा संघर्श आगे बढेगा । कारण की जब भी हमारे देष में विभिन्न आक्रमणकारी आये तो उन्होंने सबसे पहले यही काम किया बाद में अन्य कार्य किये । यही वजह है कि दुनिया के कितने ही देष हैं जिनमें जर्मनी फ्रंास जापान मिश्र आदि देष जो अंग्रेजो के गुलाम थे ज्यों ही आजाद हुए उन्होंने अंग्रेजी भाशा सहित अन्य अंग्रेंजो के द्धारा स्थापित सभी पहचानों को मिटा दिया तब कहीं जाकर उन्होंने तरक्की की है । यही हमें मानसिक गुलाम बनाते हैं । इन्हीं का आपरेशन जरूरी है । आपका गृंथ भी आरंभिक स्तर पर लिखा जा चुका है संपूर्ण गोंडियन गाथा के नाम पर जिसे अभी अभी किसी विरोधी आर्य पुत्रों का गुलाम हाईकोर्ट में पिटीषन डाल कर हमें चेलेंज किया है जिसका जवाब हमारे पास है । दे रहे हैं चिंता की कोई बात नहीं है । जीत हमारी हो रही है । आर्यों से युघ्द्व होने से सांस्कृतिक पराजय हुई हर विजेता विजित पर अपनी सभ्यता संस्कृति थोपता है । यही कारण है कि हम अपने देवताओं के नाम स्थान तक भूल गये ।
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