सामाजिक साख सामूहिक उत्तरदायित्व
आज के हालात में मूलनिवासी आदिवासी समुदास का जीवन अभाव तिरस्कार षासन प्रषासन से असहयोग जैसी अनेक समस्याओं से ग्रस्त होकर चल रहा है । समाज की संपूर्ण जनसंख्या का मूल्यांकन किया जाय तो पता चलता है कि समाज का उच्च आय प्राप्त वर्ग भीकिन्हीं बिंदुओं पर गहरे में प्रताडित है । समाज की एैसी जनसंख्या भले ही वह अपने आप को बाहरी दिखावे के लिये संतुश्ट दिखाई दे पर वह भी वर्तमान व्यवस्था में सीने में पत्थर दाब कर चल रहा है । समाज का एक और हिस्सा जिसे हम मध्यम आयवर्गीय या छोटी मोटी नौकरी तथा छोटे मोटे किसान कह सकते हैं । उसकी हालत सांप छछूंदर की भांति है । उसे समाज के अपने से उपर आय या पद वाले के साथ जब भी उठने बैठने का मौका मिलता है तो उसकी आंतरिक पीडा अपने से निम्नतर आय वाले या गरीबी में जी रहे लोगों को इस सब का दोषी सिद्ध करने के रूप में प्रकट होता है । इसी तरह यह जब अपने समाज के अषिक्षित गरीब हिस्से के साथ संवाद करता है । तब वह समाज की समस्या का जिम्मेदार समाज के उच्च आय या पद वाले वर्ग के हिस्से में डालकर अपने आप को संतुश्ट कर लेता है । दूसरी ओर समाज का अत्यंत गरीब अषिक्षित भाग समाज के उच्च और मघ्यम वर्ग का खिलौना बन कर रह जाता है । जब उसके समाज का उच्च और मध्यम वर्ग उसके बीच जाता है तो वह अपने समाज के दो अलग अलग समस्या से पीडित उच्च और मध्यम वर्ग की पीडा को महसूस भी नहीं कर पाता क्योकि उनकी समस्या का स्तर उसकी समझ के परे होता है । उनकी बाहय समस्याओं के साथ उसकी समस्या मेल नहीं खाने के कारण उनसे अलग थलग सोचने लगता है । अपनी समस्या से स्वयं निपटने की सोच पैदा कर लेता है । कारण भी ठोस है उसकी रोजी रोटी की समस्या के सामने समाज का मान सम्मान साख कोई मायने नहीं रखता । उच्च और मध्यम वर्ग रोजी रोटी की समस्या से मुक्त हो गया है तो समाज के मान सम्मान साख की जिम्मेदारी उसी की है । समाज की साख पर बटटा लगता है तो उसी की तरफ ज्यादा उंगली उठाई जाती हैं । वही ज्यादा प्रभावित होता है । इसलिये समाज का उच्च और मध्यम वर्ग यह सोच ले कि मेरे समाज के लाचार और गरीब पर होने वाले अन्याय अत्याचार बलात्कार से मेरी साख पर भी प्रभाव पडता है । अन्याय अत्याचार बलात्कार करने वाले की मानसिकता सम्पूर्ण समाज के प्रति एक ही होती है । इसलिये वह आसानी से किसी भी स्तर पर कोई भी हरकत करने में हिचक नहीं रखता है । यही कारण है कि अदिवासियों की जमीन छीन लेना अन्याय अत्याचार कर लेना बलात्कार कर लेना आसान और सुरक्षित लगता है । अतः समाज की गरिमा और साख को स्थापित करने की जिम्मेदारी सामूहिक है चाहे वह आदिवासी समाज के किसी जाति या आयवर्ग का हो । सामूहिक सोच बनाकर सामूहिक साख निर्माण के लिये सामूहिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करें ।
आज के हालात में मूलनिवासी आदिवासी समुदास का जीवन अभाव तिरस्कार षासन प्रषासन से असहयोग जैसी अनेक समस्याओं से ग्रस्त होकर चल रहा है । समाज की संपूर्ण जनसंख्या का मूल्यांकन किया जाय तो पता चलता है कि समाज का उच्च आय प्राप्त वर्ग भीकिन्हीं बिंदुओं पर गहरे में प्रताडित है । समाज की एैसी जनसंख्या भले ही वह अपने आप को बाहरी दिखावे के लिये संतुश्ट दिखाई दे पर वह भी वर्तमान व्यवस्था में सीने में पत्थर दाब कर चल रहा है । समाज का एक और हिस्सा जिसे हम मध्यम आयवर्गीय या छोटी मोटी नौकरी तथा छोटे मोटे किसान कह सकते हैं । उसकी हालत सांप छछूंदर की भांति है । उसे समाज के अपने से उपर आय या पद वाले के साथ जब भी उठने बैठने का मौका मिलता है तो उसकी आंतरिक पीडा अपने से निम्नतर आय वाले या गरीबी में जी रहे लोगों को इस सब का दोषी सिद्ध करने के रूप में प्रकट होता है । इसी तरह यह जब अपने समाज के अषिक्षित गरीब हिस्से के साथ संवाद करता है । तब वह समाज की समस्या का जिम्मेदार समाज के उच्च आय या पद वाले वर्ग के हिस्से में डालकर अपने आप को संतुश्ट कर लेता है । दूसरी ओर समाज का अत्यंत गरीब अषिक्षित भाग समाज के उच्च और मघ्यम वर्ग का खिलौना बन कर रह जाता है । जब उसके समाज का उच्च और मध्यम वर्ग उसके बीच जाता है तो वह अपने समाज के दो अलग अलग समस्या से पीडित उच्च और मध्यम वर्ग की पीडा को महसूस भी नहीं कर पाता क्योकि उनकी समस्या का स्तर उसकी समझ के परे होता है । उनकी बाहय समस्याओं के साथ उसकी समस्या मेल नहीं खाने के कारण उनसे अलग थलग सोचने लगता है । अपनी समस्या से स्वयं निपटने की सोच पैदा कर लेता है । कारण भी ठोस है उसकी रोजी रोटी की समस्या के सामने समाज का मान सम्मान साख कोई मायने नहीं रखता । उच्च और मध्यम वर्ग रोजी रोटी की समस्या से मुक्त हो गया है तो समाज के मान सम्मान साख की जिम्मेदारी उसी की है । समाज की साख पर बटटा लगता है तो उसी की तरफ ज्यादा उंगली उठाई जाती हैं । वही ज्यादा प्रभावित होता है । इसलिये समाज का उच्च और मध्यम वर्ग यह सोच ले कि मेरे समाज के लाचार और गरीब पर होने वाले अन्याय अत्याचार बलात्कार से मेरी साख पर भी प्रभाव पडता है । अन्याय अत्याचार बलात्कार करने वाले की मानसिकता सम्पूर्ण समाज के प्रति एक ही होती है । इसलिये वह आसानी से किसी भी स्तर पर कोई भी हरकत करने में हिचक नहीं रखता है । यही कारण है कि अदिवासियों की जमीन छीन लेना अन्याय अत्याचार कर लेना बलात्कार कर लेना आसान और सुरक्षित लगता है । अतः समाज की गरिमा और साख को स्थापित करने की जिम्मेदारी सामूहिक है चाहे वह आदिवासी समाज के किसी जाति या आयवर्ग का हो । सामूहिक सोच बनाकर सामूहिक साख निर्माण के लिये सामूहिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करें ।
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