एक और आजादी की लडाई
विश्व इतिहास के परिदृश्य में दो बाते खुलकर सामने आ रही हैं कि धरती के निर्माण के बाद गोंडवाना लैण्ड और लारेंसिया में किस तरह के जीवन का अभ्युदय हुआ । उस भाग के जीवन तथा गोंडवाना भूभाग के जीवन में क्या अंतर आया इस बात को समझे बिना हम किसी भी व्यक्ति को कोई बात नहीं समझा पायेंगे । ना ही वह मानने को तैयार होगा । दुनिया की सभ्यता संस्कृति को समझने के लिये उस भाग की प्राकृतिक भौगोलिक सांस्कृतिक परिस्थितियों को समझना होगा । तत्पष्चात उस पर उत्पन्न मनुष्य की जीवन षैली तथा उस पर आधारित उसके क्रियाकलाप ही उसकी असली पहचान बनाते हैं । आज का वैज्ञानिक षोध उस परिस्थिती में उस नश्ल के अनुवांशिक गुणों के रूप में उसे चिन्हित करता है । सारा अंगारा लैण्ड या लांरेंसिया ठंडा भाग है । जहां मनुष्य ने अपना विकास गोंडवाना भाग से काफी बाद में किया । जहां हमारे देष की तरह मौसम जलवायु नहीं चारों ऋतु ना ऋतुओं का खदयान वहां सिर्फ जानवर को उसका मांस खाकर जीया जा सकता था । जानवर भी कब तक मिलते भूख ने अपनी जगह से पलायन को मजबूर किया । ठंड ने उन्हीं जानवरों की खाल ओढने का आदी बना दिया । हमेषा हत्या जानवरों के मांस के लिये कू्ररता ने लारेंसिया निवासियों में संस्कार का रूप ले लिया । कालांतर में गोंडवाना के साथ लारेंसिया का भी भोगोलिक परिवर्तन हुआ कई कबीले इधर से उधर हुए लेकिन नश्ल और जीन तो लांरेंशियन था जो आज यूरोपीय यहूदी और हमारे देश के ब्राहमनों में समानता दिखाता है । यूरोपीय यहूदी जिस तरह यूरोपीय देशों के विभिन्न भागों में जाकर वहां की मूल प्रजातियों को गाजर मूली की तरह काटकर अपना प्रभुत्व जमाया गुलाम बनाया ठीक उसी तरह उन्हीं के भाई बंधु एशिया में आर्य नाम की पहचान लेकर गोंडवाना भूभाग के विकसित राज्यों को लूटकर अपना प्रभुत्व कायम किया । आक्रामकता हत्या लूटपाट का नश्ली संस्कार लेकर सरल शांत गोंडवाना के वैभव को लूटना उस पर प्रभुत्व जमाना आसान था । परिणाम स्वरूप हमारा देश आर्यो के आधीन हो गया । आर्यों के बाद अनेक विदेषी आक्रांता आर्यों के पहले षक हूण मुगलों के पहले यवन पठान अंग्रेजो के पहले डच पुर्तगाली फ्रासीसी इस देष में आये कुछ ना कुछ लूटकर वापस चले गये लेकिन यहूदियों की औलाद अभी तक हमारी अधिकांश धन धरती सरकारी पदों तथा व्यापार में राजनीति में काबिज होकर मूलनिवासीयों की अस्मिता के साथ खिलवाड कर रहे हैं । करें भी क्यों ना ये विजेता जाति है विजित पर अन्याय करना उसका मूल कर्तव्य है । विजेता चूकि शासक है इसलिये वह जिस भाषा धर्म संस्कृति को प्रश्रय देगा वही भाषा धर्म संस्कृति आगे बढेगी । षासक वर्ग का मूर्ख भी पूजनीय हो जाता है । सर्वहारा का विद्धान भी मूर्खों की गणना में आता है । इसलिये मूलनिवासियों को आजादी लडाई लडने की आवश्यकता है ।
विश्व इतिहास के परिदृश्य में दो बाते खुलकर सामने आ रही हैं कि धरती के निर्माण के बाद गोंडवाना लैण्ड और लारेंसिया में किस तरह के जीवन का अभ्युदय हुआ । उस भाग के जीवन तथा गोंडवाना भूभाग के जीवन में क्या अंतर आया इस बात को समझे बिना हम किसी भी व्यक्ति को कोई बात नहीं समझा पायेंगे । ना ही वह मानने को तैयार होगा । दुनिया की सभ्यता संस्कृति को समझने के लिये उस भाग की प्राकृतिक भौगोलिक सांस्कृतिक परिस्थितियों को समझना होगा । तत्पष्चात उस पर उत्पन्न मनुष्य की जीवन षैली तथा उस पर आधारित उसके क्रियाकलाप ही उसकी असली पहचान बनाते हैं । आज का वैज्ञानिक षोध उस परिस्थिती में उस नश्ल के अनुवांशिक गुणों के रूप में उसे चिन्हित करता है । सारा अंगारा लैण्ड या लांरेंसिया ठंडा भाग है । जहां मनुष्य ने अपना विकास गोंडवाना भाग से काफी बाद में किया । जहां हमारे देष की तरह मौसम जलवायु नहीं चारों ऋतु ना ऋतुओं का खदयान वहां सिर्फ जानवर को उसका मांस खाकर जीया जा सकता था । जानवर भी कब तक मिलते भूख ने अपनी जगह से पलायन को मजबूर किया । ठंड ने उन्हीं जानवरों की खाल ओढने का आदी बना दिया । हमेषा हत्या जानवरों के मांस के लिये कू्ररता ने लारेंसिया निवासियों में संस्कार का रूप ले लिया । कालांतर में गोंडवाना के साथ लारेंसिया का भी भोगोलिक परिवर्तन हुआ कई कबीले इधर से उधर हुए लेकिन नश्ल और जीन तो लांरेंशियन था जो आज यूरोपीय यहूदी और हमारे देश के ब्राहमनों में समानता दिखाता है । यूरोपीय यहूदी जिस तरह यूरोपीय देशों के विभिन्न भागों में जाकर वहां की मूल प्रजातियों को गाजर मूली की तरह काटकर अपना प्रभुत्व जमाया गुलाम बनाया ठीक उसी तरह उन्हीं के भाई बंधु एशिया में आर्य नाम की पहचान लेकर गोंडवाना भूभाग के विकसित राज्यों को लूटकर अपना प्रभुत्व कायम किया । आक्रामकता हत्या लूटपाट का नश्ली संस्कार लेकर सरल शांत गोंडवाना के वैभव को लूटना उस पर प्रभुत्व जमाना आसान था । परिणाम स्वरूप हमारा देश आर्यो के आधीन हो गया । आर्यों के बाद अनेक विदेषी आक्रांता आर्यों के पहले षक हूण मुगलों के पहले यवन पठान अंग्रेजो के पहले डच पुर्तगाली फ्रासीसी इस देष में आये कुछ ना कुछ लूटकर वापस चले गये लेकिन यहूदियों की औलाद अभी तक हमारी अधिकांश धन धरती सरकारी पदों तथा व्यापार में राजनीति में काबिज होकर मूलनिवासीयों की अस्मिता के साथ खिलवाड कर रहे हैं । करें भी क्यों ना ये विजेता जाति है विजित पर अन्याय करना उसका मूल कर्तव्य है । विजेता चूकि शासक है इसलिये वह जिस भाषा धर्म संस्कृति को प्रश्रय देगा वही भाषा धर्म संस्कृति आगे बढेगी । षासक वर्ग का मूर्ख भी पूजनीय हो जाता है । सर्वहारा का विद्धान भी मूर्खों की गणना में आता है । इसलिये मूलनिवासियों को आजादी लडाई लडने की आवश्यकता है ।
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