"social work is a thankless task"
साथियों अन्ग्रेजी का यह वाक्य अपने आप में कितना गम्भीर अर्थ लिये हुए है।सच्ची समाज सेवा में लगे लोग शायद इस वाक्य को महसूस करते होंगे, पर सेवा के नाम पर कुछ मेवा की कामना में लगे लोगों को, यह वाक्य जरूर हताश कर सकता है। यह भी सत्य है कि" कुछ करने से उसका प्रतिफल किसी ना किसी रूप मे अवश्य मिलता ही है, पर कुछ करते हुए साथ में पाने की आशा रूपी लालच को साथ लेकर चलने से लालच हताशा पैदा करेगा, पीछे लौट चलने को कहेगा ! ऐसी परिस्थिति में यदि कर्ता उस लालच के चन्गुल में आ गया तो, कर्ता के इतने दिनों के किये पर पानी फिर सकता है। इसलिये सेवा " मति,मोद तथा मेंदोल के सहकार से समग्रता के साथ हो। ऐसी सेवा कर्ता को कभी हताश नहीं कर सकती ! (गुलजार सिंह मरकाम )
सामाजिक संगठन और उनकी प्रतिबद्धता"
देश में जिन सामाजिक संगठनों ने अपनी भाषा,धर्म,सन्सक्रति को आधार बनाये बगैर समाज के विकास की बातें की हैं,ऐसे सन्गठन किसी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध नही होते क्योंकि इन्हें किसी भी विचारधारा के साथ चलकर अपनी रोटी सेकने में सहूलियत होती है।ऐसे सन्गठन का नेतृत्व/नेता सन्गठन को मजबूत करके उस ताकत के भरोसे वह किसी भी विचारधारा वाले राजनीतिक दल में स्थापित होने का प्रयास करता है। स्थापित हो जाने पर वह समाज की जगह उस सन्गठन के प्रति वफादारी करने लगता है जिसने उसे पद/टिकट से नवाजा है । ऐसे अनेक उदाहरण देखे जा सकते है । ऐसे सन्गठन अपने कार्यकर्ताओ को समझाकर रखते है कि हमे तो समाज के विकास की बात करना है । धर्म, सन्सक्रति की बात करके विचारधारा की बात करके सम्प्रदायिक झगडा पैदा नही करना चाहिये , हमारे लिये सब बराबर है आदि आदि । गोन्डवाना आन्दोलन के चलते ऐसे सन्गठनो ने भी अपना पैतरा बदला है,ऐसे सन्गठन और इनके नेता यह कहते पाये जाने लगे है कि समाज की भाषा,धर्म,सन्सक्रति को तो मानते है । पर हमे राजनीति से कोई लेना देना नही । यदि आप जिस विचारधारा की धर्म,सन्सक्रति के अनुगामी है तो उस विचारधारा की राजनीति के प्रति प्रतिबद्ध होना जरूरी है अन्यथा उस धर्म सन्सक्रति को आप केवल लाभ का हथियार मात्र बना रहे है ।
साथियों अन्ग्रेजी का यह वाक्य अपने आप में कितना गम्भीर अर्थ लिये हुए है।सच्ची समाज सेवा में लगे लोग शायद इस वाक्य को महसूस करते होंगे, पर सेवा के नाम पर कुछ मेवा की कामना में लगे लोगों को, यह वाक्य जरूर हताश कर सकता है। यह भी सत्य है कि" कुछ करने से उसका प्रतिफल किसी ना किसी रूप मे अवश्य मिलता ही है, पर कुछ करते हुए साथ में पाने की आशा रूपी लालच को साथ लेकर चलने से लालच हताशा पैदा करेगा, पीछे लौट चलने को कहेगा ! ऐसी परिस्थिति में यदि कर्ता उस लालच के चन्गुल में आ गया तो, कर्ता के इतने दिनों के किये पर पानी फिर सकता है। इसलिये सेवा " मति,मोद तथा मेंदोल के सहकार से समग्रता के साथ हो। ऐसी सेवा कर्ता को कभी हताश नहीं कर सकती ! (गुलजार सिंह मरकाम )
सामाजिक संगठन और उनकी प्रतिबद्धता"
देश में जिन सामाजिक संगठनों ने अपनी भाषा,धर्म,सन्सक्रति को आधार बनाये बगैर समाज के विकास की बातें की हैं,ऐसे सन्गठन किसी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध नही होते क्योंकि इन्हें किसी भी विचारधारा के साथ चलकर अपनी रोटी सेकने में सहूलियत होती है।ऐसे सन्गठन का नेतृत्व/नेता सन्गठन को मजबूत करके उस ताकत के भरोसे वह किसी भी विचारधारा वाले राजनीतिक दल में स्थापित होने का प्रयास करता है। स्थापित हो जाने पर वह समाज की जगह उस सन्गठन के प्रति वफादारी करने लगता है जिसने उसे पद/टिकट से नवाजा है । ऐसे अनेक उदाहरण देखे जा सकते है । ऐसे सन्गठन अपने कार्यकर्ताओ को समझाकर रखते है कि हमे तो समाज के विकास की बात करना है । धर्म, सन्सक्रति की बात करके विचारधारा की बात करके सम्प्रदायिक झगडा पैदा नही करना चाहिये , हमारे लिये सब बराबर है आदि आदि । गोन्डवाना आन्दोलन के चलते ऐसे सन्गठनो ने भी अपना पैतरा बदला है,ऐसे सन्गठन और इनके नेता यह कहते पाये जाने लगे है कि समाज की भाषा,धर्म,सन्सक्रति को तो मानते है । पर हमे राजनीति से कोई लेना देना नही । यदि आप जिस विचारधारा की धर्म,सन्सक्रति के अनुगामी है तो उस विचारधारा की राजनीति के प्रति प्रतिबद्ध होना जरूरी है अन्यथा उस धर्म सन्सक्रति को आप केवल लाभ का हथियार मात्र बना रहे है ।
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