"राष्ट्र है पर राष्ट्र भाषा का स्थान खाली !"
हमारा देश सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। अर्थात स्वतंत्र माना जाता है। स्वतंत्र देश की एक राष्ट्र भाषा होती है,लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि इस देश की व्यवस्था को चलाने वालों ने अभी तक"राष्ट्र भाषा क्या हो" इस पर चिन्तन तक नही किया । जब राष्ट्र भाषा का चयन नही कर सके ,तो राष्ट्र की मातर् भाषा के सम्बन्ध मे तो सपने मे भी ख्याल नही आता होगा । या जानबूझकर अपनी कमजोरी छुपाने के लिये ऐसी भाषा जो राष्ट्र की मातर् भाषा का स्थान ले सकती है उसे सन्विधान की आठवी अनुसूचि तक मे शामिल नही किया । आठवी अनुसूचि मे शामिल सभी भाषाये क्षेत्रीय भाषा कहलाती है । जो राज्यो के काम काज और बोलचाल मे प्रयुक्त है ,जो अन्य राज्यो मे उपयोग व बोली नही जाती । अन्ग्रेजी भाषा का प्रयोग सभी राज्यो मे है पर यह जनसाधारण की भाषा नही है साथ ही यह विदेशी भाषा भी है जो कभी भी मात्र भाषा या राष्ट्र भाषा ग्राह्य नही होगी । आठवी अनुसूचि मे शामिल क्षेत्रीय भाषाओं की अपनी सीमाएं हैं , ऐसी परिस्थिति में ये राष्ट्र भाषा के रूप में स्थापित नहीं हो सकती ? तब क्या राष्ट्र बिना राष्ट्र भाषा, मात्र भाषा के बिन मा के बच्चे की तरह अनाथ रहे ? कदापि नहीं ! इस राष्ट्र की सीमाएँ पहले अधिक थी तब भी इसकी मात्रभाषा रही है । जिसे गोन्डवाना की भाषा "गोन्डी" कहा जाता था । जिसके प्रमाण सिन्धु घाटी मे लिखित चित्रलिपि तथा देश के आठ राज्यो मे अब तक मात्र भाषा के रूप में जीवित तथा बोली जाने वाली "गोन्डी भाषा" है । क्या कोई भाषा है जो इतने राज्यो मे बोली जाती है ? नही , तब इस देश के बुद्धिजीवियो को चिन्तन नही करना चाहिये कि राष्ट्र को कब तक इसी तरह अनाथ रखा जाय । या हो सकता है अपनी बौद्धिक कमजोरी ,अपनी भूल पर पर्दा डालने की गर्ज से जानबूझकर "गोन्डी भाषा" को मान्यता मे देरी की जा रही है । अरे मूर्खो , वनाधिकार के मामले मे देश की सन्सद ने आदिवासियो से सन् २००६ मे भूल स्वरूप माफी मान्गते हुए वनाधिकार कानून पास कर दिया था । क्या राष्ट्र भाषा,मात्र भाषा "गोन्डी" को मान्यता देते समय भी यही माफी मान्गने का इन्तजार तो नही कर रहे हो ? इन सब वजहो को देखते हुए गोन्डवाना के गणो से निवेदन है कि राष्ट्र को लम्बे समय तक अनाथ नही रखा जा सकता इसलिये पुरातन गोन्डवाना राष्ट्र की मात्र भाषा गोन्डी को अधिक से अधिक बोलने और लिखने में प्रयोग करे ।" इद लम्बेज मावा अनी देश ता अव्वाल आन्द" इद पोलो मावा अव्वानाय कोट्टतना । जय सेवा,जय जोहार, जय पडापेन ,जय गोन्डवाना ।(गुलजार सिंह मरकाम)
हमारा देश सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। अर्थात स्वतंत्र माना जाता है। स्वतंत्र देश की एक राष्ट्र भाषा होती है,लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि इस देश की व्यवस्था को चलाने वालों ने अभी तक"राष्ट्र भाषा क्या हो" इस पर चिन्तन तक नही किया । जब राष्ट्र भाषा का चयन नही कर सके ,तो राष्ट्र की मातर् भाषा के सम्बन्ध मे तो सपने मे भी ख्याल नही आता होगा । या जानबूझकर अपनी कमजोरी छुपाने के लिये ऐसी भाषा जो राष्ट्र की मातर् भाषा का स्थान ले सकती है उसे सन्विधान की आठवी अनुसूचि तक मे शामिल नही किया । आठवी अनुसूचि मे शामिल सभी भाषाये क्षेत्रीय भाषा कहलाती है । जो राज्यो के काम काज और बोलचाल मे प्रयुक्त है ,जो अन्य राज्यो मे उपयोग व बोली नही जाती । अन्ग्रेजी भाषा का प्रयोग सभी राज्यो मे है पर यह जनसाधारण की भाषा नही है साथ ही यह विदेशी भाषा भी है जो कभी भी मात्र भाषा या राष्ट्र भाषा ग्राह्य नही होगी । आठवी अनुसूचि मे शामिल क्षेत्रीय भाषाओं की अपनी सीमाएं हैं , ऐसी परिस्थिति में ये राष्ट्र भाषा के रूप में स्थापित नहीं हो सकती ? तब क्या राष्ट्र बिना राष्ट्र भाषा, मात्र भाषा के बिन मा के बच्चे की तरह अनाथ रहे ? कदापि नहीं ! इस राष्ट्र की सीमाएँ पहले अधिक थी तब भी इसकी मात्रभाषा रही है । जिसे गोन्डवाना की भाषा "गोन्डी" कहा जाता था । जिसके प्रमाण सिन्धु घाटी मे लिखित चित्रलिपि तथा देश के आठ राज्यो मे अब तक मात्र भाषा के रूप में जीवित तथा बोली जाने वाली "गोन्डी भाषा" है । क्या कोई भाषा है जो इतने राज्यो मे बोली जाती है ? नही , तब इस देश के बुद्धिजीवियो को चिन्तन नही करना चाहिये कि राष्ट्र को कब तक इसी तरह अनाथ रखा जाय । या हो सकता है अपनी बौद्धिक कमजोरी ,अपनी भूल पर पर्दा डालने की गर्ज से जानबूझकर "गोन्डी भाषा" को मान्यता मे देरी की जा रही है । अरे मूर्खो , वनाधिकार के मामले मे देश की सन्सद ने आदिवासियो से सन् २००६ मे भूल स्वरूप माफी मान्गते हुए वनाधिकार कानून पास कर दिया था । क्या राष्ट्र भाषा,मात्र भाषा "गोन्डी" को मान्यता देते समय भी यही माफी मान्गने का इन्तजार तो नही कर रहे हो ? इन सब वजहो को देखते हुए गोन्डवाना के गणो से निवेदन है कि राष्ट्र को लम्बे समय तक अनाथ नही रखा जा सकता इसलिये पुरातन गोन्डवाना राष्ट्र की मात्र भाषा गोन्डी को अधिक से अधिक बोलने और लिखने में प्रयोग करे ।" इद लम्बेज मावा अनी देश ता अव्वाल आन्द" इद पोलो मावा अव्वानाय कोट्टतना । जय सेवा,जय जोहार, जय पडापेन ,जय गोन्डवाना ।(गुलजार सिंह मरकाम)
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