"अंग्रेजी के नये वर्ष 2016 की शुभकामनाओं के साथ"
आओ नये वर्ष में "नये संघर्ष का शंखनाद" करें
इस देश की धरती मेरी मां है ।
"इस देश की जल जंगल जमीन तथा इसके गर्भ के अंदर छुपी खनिज संपदा पर प्रथम अधिकार मेरा है ।'' (a gondian people)
अंग्रेजों से देष को मुक्त कराने में पहला खून हमने बहाया हम पूर्ण स्वतंत्रता के पक्षधर रहे हैं । पूर्ण स्वतंत्रता का इन्तजार किये बिना कुटिलता से सत्ता का लिखित दस्तावेजों के साथ अंग्रेजों से हस्तांतरण कर लिया गया हमें पता नहीं । सत्ता हस्तांतरण करने वाली भारत सरकार के राश्टपति को देशजो का संरक्षक बना दिया । तब से वह हमारा संरक्षक है । राटपति हमारी संपत्ति की देखरेख एवं उस संपत्ति और उनके वारिशों के सुख सुविधा व्यवस्था के लिये प्रधानमंत्री के मंत्रीमंडल को जिम्मेदारी सोंपता है । क्या हमारा संरक्षक हमारी मां का सौदा कर सकता है ? नहीं, हमारी मां को गिरवी रख सकता है ? नही, तब इस देष में जमीनों का विक्रयनामा किस आधार पर जारी है । संरक्षक संरक्षक होता है मालिक नहीं उसका हमारी जमीन को बेच देना अवैध है । अब तक कंपनी तथा गैर मूलनिवासीयों को की गई विक्रय प्रक्रिया शून्य है । संसद हमारी धरती को बेचने के नियम कैसे बना सकती है । वन विभाग, राजस्व विभाग, जल संसाधन जैसे विभाग बनने के पूर्व जल, जंगल, जमीन हमारी थी अब इन विभागों की कैसे हो सकती है । जनहित में उपभोग के लिये निर्धारित वर्षों के लिये लीज पर दी जा सकती है जिसका नियमित किराया हमें प्राप्त करने का प्राकृतिक अधिकार है । यही कडवी सच्चाई भी है । देष का शोशण बाहरी शक्तियों के साथ साथ आंतरिक उपनिवेषवादियों ने अधिक किया है ।
अब हम विस्थापन और सभ्यता से दूर रखे जाने के षडयंत्र को समझ चुके हैं । हमारी भाषा को महत्व नहीं दिये जाने की कुटिल द्रोणाचार्यी निगाहों को परख चुके हैं । अब हमारी भाषाऐं कबीलों की सीमा लांघकर समूचे समाज को रोशन करने के लिये संकल्पबद्ध हैं । हम जानते हैं हम जब भी अस्मिता सम्मान स्वाभिमान और हक की बात की है हमें आतंकवादी नक्सलवादी कह दिया जाता है अब यदि जड की बात करने लगे है ंतो हो सकता है हमें देशद्रोही कहा जाने लगे पर हम इसकी भी चिंता नहीं करेंगे हम अपनी आंखों के सामने अपनी धरती मां की प्राणदायनी परोपकारी गोद को नष्ट होता नहीं देख सकते । एक बार पुनः हमारे संरक्षक से निवेदन करेंगे कि आप हमारे संरक्षक हैं मालिक नहीं । हमारी धरती मां का सौदा करने का आपको अधिकार नहीं ।
प्रस्तुति: गुलजार सिंह मरकाम
आओ नये वर्ष में "नये संघर्ष का शंखनाद" करें
इस देश की धरती मेरी मां है ।
"इस देश की जल जंगल जमीन तथा इसके गर्भ के अंदर छुपी खनिज संपदा पर प्रथम अधिकार मेरा है ।'' (a gondian people)
अंग्रेजों से देष को मुक्त कराने में पहला खून हमने बहाया हम पूर्ण स्वतंत्रता के पक्षधर रहे हैं । पूर्ण स्वतंत्रता का इन्तजार किये बिना कुटिलता से सत्ता का लिखित दस्तावेजों के साथ अंग्रेजों से हस्तांतरण कर लिया गया हमें पता नहीं । सत्ता हस्तांतरण करने वाली भारत सरकार के राश्टपति को देशजो का संरक्षक बना दिया । तब से वह हमारा संरक्षक है । राटपति हमारी संपत्ति की देखरेख एवं उस संपत्ति और उनके वारिशों के सुख सुविधा व्यवस्था के लिये प्रधानमंत्री के मंत्रीमंडल को जिम्मेदारी सोंपता है । क्या हमारा संरक्षक हमारी मां का सौदा कर सकता है ? नहीं, हमारी मां को गिरवी रख सकता है ? नही, तब इस देष में जमीनों का विक्रयनामा किस आधार पर जारी है । संरक्षक संरक्षक होता है मालिक नहीं उसका हमारी जमीन को बेच देना अवैध है । अब तक कंपनी तथा गैर मूलनिवासीयों को की गई विक्रय प्रक्रिया शून्य है । संसद हमारी धरती को बेचने के नियम कैसे बना सकती है । वन विभाग, राजस्व विभाग, जल संसाधन जैसे विभाग बनने के पूर्व जल, जंगल, जमीन हमारी थी अब इन विभागों की कैसे हो सकती है । जनहित में उपभोग के लिये निर्धारित वर्षों के लिये लीज पर दी जा सकती है जिसका नियमित किराया हमें प्राप्त करने का प्राकृतिक अधिकार है । यही कडवी सच्चाई भी है । देष का शोशण बाहरी शक्तियों के साथ साथ आंतरिक उपनिवेषवादियों ने अधिक किया है ।
अब हम विस्थापन और सभ्यता से दूर रखे जाने के षडयंत्र को समझ चुके हैं । हमारी भाषा को महत्व नहीं दिये जाने की कुटिल द्रोणाचार्यी निगाहों को परख चुके हैं । अब हमारी भाषाऐं कबीलों की सीमा लांघकर समूचे समाज को रोशन करने के लिये संकल्पबद्ध हैं । हम जानते हैं हम जब भी अस्मिता सम्मान स्वाभिमान और हक की बात की है हमें आतंकवादी नक्सलवादी कह दिया जाता है अब यदि जड की बात करने लगे है ंतो हो सकता है हमें देशद्रोही कहा जाने लगे पर हम इसकी भी चिंता नहीं करेंगे हम अपनी आंखों के सामने अपनी धरती मां की प्राणदायनी परोपकारी गोद को नष्ट होता नहीं देख सकते । एक बार पुनः हमारे संरक्षक से निवेदन करेंगे कि आप हमारे संरक्षक हैं मालिक नहीं । हमारी धरती मां का सौदा करने का आपको अधिकार नहीं ।
प्रस्तुति: गुलजार सिंह मरकाम
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