जातिवाद से मुक्ति का आसान मार्ग
है आपका पुनेम (धर्म)
सगाजनों, हमारे देश में मूलनिवासीयों के पथ
प्रदर्शकों ने जातिवाद को हर क्षेत्र में भेदभाव का कारण माना है । और उसका निदान
किसी ने जाति तोडो समाज जोडो तो किसी ने अंतर्जातीय विवाह तो किसी ने दलितों की
बस्ती में सहभोज के माध्यम से समस्या को खत्म करने की बात की है । परन्तु समस्या
निरंतर बढती ही जा रही है । मैने पहले भी कहा है कि जातिवादी मानसिकता समाप्त करने
के लिये पहले वर्गीय मानसिकता पैदा करनी होगी
। फिर मूलनिवासी सोच पैदा होगी । केवल मूलनिवासी का ढिढोरा पीटकर हम मूलनिवासी
नहीं बन सकते । इसके लिये हमें पहले पुनेम को धर्म को मजबूत करना होगा । आज जिन
मूलनिवासियों ने अपने संम्प्रदाय जैसे सिख जैन ईसाई मुस्लिम संम्प्रदाय का मार्ग
पकडा उनके बीच जाति गौण और अप्रासांगिक हो गई वे सम्प्रदाय के नाम पर संगठित हैं
छुआ छूत जातिभेद कमजोर हो गई है । इसलिये मुटठी भर मनुवादी इसके महत्व को समझता है
इसलिये मूलनिवासियों को धर्म की घुटटी पिलाने में लगातार सक्रिय रहता हैं ।
इसलिये मैं मूलनिवासीयों का बडा समूह जो संविधान में हिन्दु नहीं माना जाता
जिसे सामान्य शब्दों में आदिवासी कहा जाता है । ये भी कहीं कहीं जाति भेद की
मानसिकता पैदा करते नजर आते है । यदि हमने पुनेम को कमजोर किया तो अन्य लोगों की
तरह इस समुदाय में भी जाति भेद मजबूत होता जायेगा जो समाज के लिये घातक है । इसकी
मुक्ति का एक ही मार्ग है पुनेम (धर्म) ! आपकी जातीय मानसिकता अपने आप समाप्त हो जायेगी ।
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