एक प्रतिक्रिया - "हमें धर्म सन्सक्रति के पचड़े में नहीं पडना चाहिए " हमे सन्वैधानिक जानकारी से रोजी मिलेगी धर्म हमे रोटी नहीं देने वाला"
"एक फेसबुक मित्र ने कहा कि हमें धर्म सन्सक्रति के पचड़े में नहीं पडना चाहिए " हमे सन्वैधानिक जानकारी से रोजी मिलेगी धर्म हमे रोटी नहीं देने वाला आदि आदि -----
मित्र आपकी बात सही है कि हमें सन्वैधानिक जानकारी हो। इतना पढ लिखकर भी इतने दिनों तक इस जानकारी के प्रति आकर्षण क्यों पैदा नहीं हुआ ? अब क्यों हो रहा है, इस बात को गहराई से समझना होगा अन्यथा सन्विधान में तो सबसे अधिक आदिवासीयो के हित की बात लिखी गयी है पर हासिल करने में हम पीछे क्यों ? इसका एक ही कारण समझ में आता है किकिसी चीज को हासिल करने वाले समुदाय में आत्मविश्वास , हिम्मत का होना आवश्यक है । सन्गठित होना आवश्यक है । और ये केवल पढ लिख लेने से नहीं आता, इसके लिए समुदाय को अपनी जड़ों को सीचना पडता है, समाज को उसकी भाषा धर्म, सन्सक्रति से कट्टर बनाना होता है तभी उसे अपने समुदाय के हित अहित का आभास होता है अन्यथा व्यक्ति पढ लिखकर व्यक्तिगत लाभ लेकर एवं स्वार्थ में समुदाय को भूल जाता है। कारण कि उसे अपनी जड का एहसास नहीं हो पाता उसमे सामुदायिक सोच विकसित नहीं हो पाती , हम उन्हें कोसते हैं। कभी आपने सोचा है कि हमसे अधिक विकसित समुदाय ने चाहे वह जैन ,सिन्धी, ईसाई , मुस्लिम हो उन्होंने अपनी भाषा धर्म सन्स्क्रति को हमारी तरह अनावश्यक समझा क्या ? इसका उत्तर है नहीं! उन्होंने अपनी पहचान और आस्था को और मज़बूत करने का प्रयास किया है। उनका समुदाय तो केवल औसत दर्जे की शिक्षा लिये है। फिर हमसे विकसित क्यों है । इसलिये जाति, वर्ग और समुदाय मे बिखरे इस देश मे हमे भी वही राह चुनना होगा जिन रास्तो से होकर अन्य अल्प शन्ख्या वाला समुदाय अपने समुदाय को विकास के मार्ग पर ले जा रहा है । उन्होने राष्टीय भावनाओ के साथ अपनी सहभागिता जोडते हुए अपनी प्रथक आधार तत्व भाषा धर्म सन्स्क्रति को और अधिक मजबूत करने का प्रयास किया है उसके महत्व को और अधिक सम्मान दिया है । उसी आधार तत्व के कारण अल्प जनसंख्या के बावजूद राजनीति में हर पदो पर आसीन होकर अपने समुदाय का हित साधते हैं । हम भारी संख्या में होने के बावजूद सत्ता के छोटे छोटे पदो के लिये अपने ही भाई के छाती में पैर रखकर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं । आपका आधार मजबूत होगा तो सत्ता सुख आपके पीछे भागेगी समस्या का निवारण अपने आप होता रहेगा । आधार कमजोर होगा तो आपको छोटे छोटे पदो को पाने के लिये सत्ता के पीछे भागना पडेगा हर समस्या के समाधान के लिये लगातार सन्घर्ष करना पड़ेगा । जिसे सत्ताधारी कभी पूरी करने वाला नहीं । इसलिये मैनें कई मौके पर कहा है " भाषा धर्म सनस्क्रति को पकड के रखो जकड के रखो और वर्तमान में जियो"
(इस विषय पर अपना अभिमत देने का कष्ट करें) - गुलज़ार सिंह मरकाम, रा०सयोजक गोसक्राआ
मित्र आपकी बात सही है कि हमें सन्वैधानिक जानकारी हो। इतना पढ लिखकर भी इतने दिनों तक इस जानकारी के प्रति आकर्षण क्यों पैदा नहीं हुआ ? अब क्यों हो रहा है, इस बात को गहराई से समझना होगा अन्यथा सन्विधान में तो सबसे अधिक आदिवासीयो के हित की बात लिखी गयी है पर हासिल करने में हम पीछे क्यों ? इसका एक ही कारण समझ में आता है किकिसी चीज को हासिल करने वाले समुदाय में आत्मविश्वास , हिम्मत का होना आवश्यक है । सन्गठित होना आवश्यक है । और ये केवल पढ लिख लेने से नहीं आता, इसके लिए समुदाय को अपनी जड़ों को सीचना पडता है, समाज को उसकी भाषा धर्म, सन्सक्रति से कट्टर बनाना होता है तभी उसे अपने समुदाय के हित अहित का आभास होता है अन्यथा व्यक्ति पढ लिखकर व्यक्तिगत लाभ लेकर एवं स्वार्थ में समुदाय को भूल जाता है। कारण कि उसे अपनी जड का एहसास नहीं हो पाता उसमे सामुदायिक सोच विकसित नहीं हो पाती , हम उन्हें कोसते हैं। कभी आपने सोचा है कि हमसे अधिक विकसित समुदाय ने चाहे वह जैन ,सिन्धी, ईसाई , मुस्लिम हो उन्होंने अपनी भाषा धर्म सन्स्क्रति को हमारी तरह अनावश्यक समझा क्या ? इसका उत्तर है नहीं! उन्होंने अपनी पहचान और आस्था को और मज़बूत करने का प्रयास किया है। उनका समुदाय तो केवल औसत दर्जे की शिक्षा लिये है। फिर हमसे विकसित क्यों है । इसलिये जाति, वर्ग और समुदाय मे बिखरे इस देश मे हमे भी वही राह चुनना होगा जिन रास्तो से होकर अन्य अल्प शन्ख्या वाला समुदाय अपने समुदाय को विकास के मार्ग पर ले जा रहा है । उन्होने राष्टीय भावनाओ के साथ अपनी सहभागिता जोडते हुए अपनी प्रथक आधार तत्व भाषा धर्म सन्स्क्रति को और अधिक मजबूत करने का प्रयास किया है उसके महत्व को और अधिक सम्मान दिया है । उसी आधार तत्व के कारण अल्प जनसंख्या के बावजूद राजनीति में हर पदो पर आसीन होकर अपने समुदाय का हित साधते हैं । हम भारी संख्या में होने के बावजूद सत्ता के छोटे छोटे पदो के लिये अपने ही भाई के छाती में पैर रखकर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं । आपका आधार मजबूत होगा तो सत्ता सुख आपके पीछे भागेगी समस्या का निवारण अपने आप होता रहेगा । आधार कमजोर होगा तो आपको छोटे छोटे पदो को पाने के लिये सत्ता के पीछे भागना पडेगा हर समस्या के समाधान के लिये लगातार सन्घर्ष करना पड़ेगा । जिसे सत्ताधारी कभी पूरी करने वाला नहीं । इसलिये मैनें कई मौके पर कहा है " भाषा धर्म सनस्क्रति को पकड के रखो जकड के रखो और वर्तमान में जियो"
(इस विषय पर अपना अभिमत देने का कष्ट करें) - गुलज़ार सिंह मरकाम, रा०सयोजक गोसक्राआ
Comments
Post a Comment