"फांसीवादी दौर और भारत"
देश अब ऐसे मोड़ पर है,जहां अब सत्ता का फासीवादी चेहरा खुलकर आम नागरिक के मौलिक अधिकारों का दमन करने में लग चुका है। आम नागरिक अभी अपनी पहचान बचाने के लिये संघर्ष कर रहा है, तब सत्ता उसे विदेशी पहचान देने में जुटी है ताकि संविधान नहीं सत्ता की विचारधारा के मापदंड में ना आने पर उन्हें डिटेंशन सेंटर में भेजकर एक साथ बम या जहरीली गैस छोड़कर मार दिया जायेगा। इस सत्ता का चरित्र जर्मनी के तानाशाह हिटलर के नक्शे-कदम है। जिस तरह से हिटलर अपने अंधभक्त प्रशिक्षित लोगों(नेताओं) को जनता के बीच दहशत पैदा करके हिटलर के विरोधियों को दबाने का प्रयास करता था ठीक उसी तरह का वातावरण आज की तारीख में भारत देश में दिखाई देता है। सत्ताधारी दल के नेता NRC की सफाई देने जगह जगह जाकर यही कह रहे हैं।कि मोदी और अमित शाह ने जो कहा दिया वहीं सच है।यदि इसका विरोध करोगे तो,जिंदा गडा दिया जायेगा। चाकू,गोली या बम से उडा दिया जायेगा आदि आदि। फिर भी देश के नागरिकों को इससे भयभीत नहीं होना चाहिये ऐसे अतिवाद को मानवतावादी अमनपसंद और संविधान का सम्मान करने वाली पुलिस,मिलिट्री और सुरक्षाबल भी सहन नहीं करेगा।यहां सत्ता के विरूद्ध बगावत हो जाने वाला है। आम नागरिक अपनी पहचान को कायम रखने के लिये संघर्ष जारी रखें। ये जर्मनी नहीं ये भारत देश है। इसने बड़े बड़े विदेशी आक्रमणों आताताईयो के ज्वार को सोखकर ढंडा कर दिया है। ऐसी सत्ता का भी यही हाल होगा। जब अतिवादी फांसी पर चढाये जायेंगे।
(गुलजार सिंह मरकाम रासंगोंसक्रांआं)
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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