"देवस्थल से मिट्टी चोरी समुदाय के अनिष्ट का कारण भी बन सकता है "
आदिवासी समुदाय में
आवश्यकतानुशार अपने देवों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर स्थापित करने की परंपरा भी है। जिसे "जगह चालना " कहा गया है। कभी कभी ऐसे स्थांतरण परिवार के बीच तालमेल नहीं होने से बंटवारा के कारण होता है । जिसे "डार नवाना" जैसे शब्दों से परिभाषित किया जाता है। इन दोनों अवसरों पर देवस्थल की मिट्टी को विधिवत प्रक्रिया से अपने "सेरमी " के माध्यम से खोदकर निर्धारित स्थान में ले जाकर विधिवत प्रक्रिया से स्थापित किया जाता है। बुजुर्गों से प्राप्त जानकारीके अनुसार कभी कभी हमारा अहित चाहने वाला हमारे देव स्थल से नजर बचाकर या चोरी से वहां की मिट्टी चुराकर ले जाता है और उस मिट्टी का काले क्रत्य के लिए दुरुपयोग करता है। ये सब लिखने का मेरा आशय यह है कि हमारे आदिवासीयों के देवस्थल से मिट्टी चुराकर या समुदाय के कुछ गद्दारों की मिलीभगत से सरेआम डकैती डाली गई हो,यह हमारी आस्था और जीवन के लिए खतरा है। समुदाय और समुदाय के विधिवेत्ता इसे अवश्य संज्ञान में लेवें।
-गुलज़ार सिंह मरकाम
(राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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