अनुसूचित जनजाति घोषित लोकसभा विधानसभा या निकाय क्षेत्रों में गैर आदिवासी वोट बैंक को हासिल करने के लिए आरक्षित वर्ग का जनप्रतिनिधि अपनी धर्म संस्कृति प्रीति और परंपराओं को भी ताक में रख सकता है। क्योंकि गैर जनजाति मतदाता इन आरक्षित क्षेत्रों के मतदान में वेलेंसिंग की भूमिका में रहता है। ऐसा मतदाता सतर्क और जागरूक भी रहता है इसलिए आरक्षित वर्ग के प्रत्याशी जीतने के बाद इनका ज्यादा ख्याल रखते हैं और इनकी भाषा धर्म संस्कृति को सिर आंखों पर बैठा कर रखते हैं। यदि यह लोग अपने समुदाय की भाषा धर्म संस्कृति परंपराओं पर कट्टर होते तो यह कट्टरता गैर आदिवासी मतदाता को अपने साथ चलने के लिए मजबूर कर देते। भविष्य की इसी आशंका को देखते हुए डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने गोलमेज कांफ्रेंस में पृथक निर्वाचन अथवा दो वोट के अधिकार को दिलाने का प्रयास किया था। यदि वह अधिकार मिल गया होता तो आरक्षित क्षेत्र के जनप्रतिनिधि गैर आदिवासी वोट बैंक से भयभीत नहीं होते।
(Gska)
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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