इंसानों का समूह समाज है ,क्योंकि सबकी आवाज समान है। निर्धारित समान उद्देश्यों को लेकर चलने वाला समूह समुदाय है।(gska)
ये इसलिए लिखना पडता है कि अनेकों बार समाज और समुदाय को परिभाषित करने का प्रयास किया लेकिन कोल्हू के बैल को सिर्फ चक्कर लगाना आता है किसलिए लगा रहे हैं उससे उसे कोई मतलब नहीं। हिंदी पढ़ते हैं तो कम-से-कम किसी शब्द के मायने की भी छानबीन होना चाहिए। दोनो शब्द अलग-अलग हैं, इसलिए इसके मायने भी अलग हैं। पर क्या करें रट्टू तोता हैं, भेड़ है आदत से मजबूर हैं।
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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