पहले कॉन्ग्रेस मनुवाद की ए टीम मानी जाती थी जिसने मूलवासी, मूल निवासियों को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ा कर भाजपा रूपी बी टीम को स्थापित करने के लिए मंदिर मस्जिद जैसे ईवीएम जैसे मुद्दों को लाकर भाजपा को ए टीम बनने का अवसर दिया है। देश का मूलवासी मूलनिवासी कांग्रेस को धर्मनिरपेक्षता के चश्मे से देखता रहा जबकि इस देश में जितने भी धर्म है वे अपने अपने धर्मों को मजबूत करते रहे भाषाओं को मजबूत करते रहे अपने सांस्कृतिक पक्ष को मजबूत करते रहे वही देश के आदिवासी की बनी बनाई सांस्कृतिक, धार्मिक विरासत मिट्टी में मिलती गई इसका कौन जिम्मेदार है । इसका मतलब हम धर्मनिरपेक्षता का चश्मा पहने रहें और अन्य लोग अपनी पहचान को मजबूत करते रहें ? आज की तारीख में देश में गांधीवादी अंबेडकरवादी समाजवादी विचारधाराएं चल रही है जिनकी आंतरिक धार्मिक संरचना का लक्ष्य कोई ना कोई धर्म होता है उनके संस्कृति और संस्कार होते हैं, अब हम यह चलने नहीं देंगे । वर्तमान समय में सांस्कृतिक जय पराजय का दौर चल रहा है ऐसे में सामाजिक सांस्कृतिक धार्मिक लामबंदी आवश्यक है। जो सत्ता को प्रभावित करने के लिए आवश्यक है।
(Gska)
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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