छग और मप्र सहित कुल १० राज्य में पांचवीं अनुसूची के प्रावधान है,इन राज्यों में पंचायती राज को कैसे समायोजित किया जाये,इसके लिए दिलीप सिंह भूरिया की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई जो इन १० राज्यों में वहां की सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक आर्थिक राजनीतिक स्वस्थ शिक्षा जैसे विषयों पर पांचवीं अनुसूची में प्रदत्त स्वशासन,स्वराज जैसी असीम शक्तियों के अंदर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को कैसे कैसे संचालित किया जा सकता है, इसका अध्ययन करे। अध्ययन उपरांत वर्ष १९९६ में भूरिया कमेटी ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की इस रिपोर्ट के आधार पर संसद में एक कानून बनाया गया जिसे जिसे "पेसा कानून" अर्थात अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज विस्तार संशोधन अधिनियम रखा गया और इन राज्यों में लागू कर दिया गया, दुर्भाग्य से संशोधित अधिनियम के त्रिस्तरीय पंचायती राज के नियम बनाकर राज्यों में चुनाव संपन्न कराये जाने लगे परन्तु" पेसा" के नियम जिससे भूरिया कमेटी की सिफारिशें क्रियान्वित होकर पांचवीं अनुसूची की मंशा की पूर्ति होती नहीं बनाई गई । बुद्धिजीवी और जनवादी संगठनों के लगातार प्रयास ने सरकारों का ध्यान इस ओर खींचा परिणामस्वरूप, इसके नियम बनाने की पहल कुछ राज्यों की जा रही है। इसी तारतम्य में छग और मप्र में सरकार की ओर से अपनी सुविधानुसार नियम प्रतिवेदन प्रस्तुत किया है,जो पेसा की मूल भावना को ही समाप्त करती है। ऐसे समय में पेसा के लाभार्थी को वाकदृष्टि वकोध्यानम् की मुद्रा में होना चाहिए परन्तु लाभार्थी वर्ग का बहुत बड़ा हिस्सा जिसमें जनप्रतिनिधि,पढ़ा लिखा, नौकरी पेशा वर्ग जिसकी सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है सोता हुआ बेखबर दिखाई दे रहा है। इस पर विशेष नजर रखने की आवश्यकता है, अन्यथा नियम बनने के बाद न्यायालय भी उसी के अनुसार निर्णय देगा , तब उसे मानना हमारी मजबूरी होगी।
(गुलजार सिंह मरकाम - लोक स्वशासन आंदोलन
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