''समाज की उर्जा समाज में लगे''
आदिवासी समाज की मातृशक्ति बहन और बेटियों को समर्पित
काफी समय से मेरे मन के अंदर उथल पुथल चल रही थी कि । इस बात को कैसे रखूं किसी को तनिक भी ठेस लगी तो मैं उसका प्रायश्चित कैसे कर पाउंगा । हांलाकि ग्रामीण अंचलों में मैंने इस बात को सामाजिक मंचों के माध्यम से रखने का काफी प्रयास किया है । मेरा मानना था कि जहां से समाज की षिक्षा आरंभ हो रही है उसी स्त्रोत में ही इस बात को रखी जाय तो बेहतर परिणाम आ सकते हैं यही मेरा उददेश्य रहा । परन्तु आज इस बात को समाज के उस स्तर पर भी पहुंचाना आवश्यक लग रहा है जहां समाज अब दो स्तरों में विभजित दिखाई देने लगा है । वहीं समाज की एक नई पौध जो कि ग्रामीण सामाजिक परिवेश से अनभिज्ञ षहर कस्बों की चकाचैध में शिक्षा लेकर पनप रहा है शिक्षा ग्रहण कर अच्छी नौकरी और व्यवसाय में आगे आ रहा है मन को खुसी देता है । परन्तु इसका दूसरा पहलू भी यदा कदा दिखाई देने लगा है जो समाज के लिये नुकसानदायक है । वह इस तरह है कि हमारे समाज की अपने पैरों पर खडी अच्छे व्यवसाय और पदों पर पहुचंने वाली बहन बेटियों पर अन्य वर्ग के लोगों की नजर रहती है । जिसे येन केन प्रकारेण अपने जाल में फंसाकर उसकी आय और उसके जाति प्रमाण पत्र का लाभ लेने के लिये सरकार के अंतर्जातीय विवाह प्रोत्साहन का वास्ता देकर विवाह कर लेता है । इसके बाद आरक्षित पंचायत विधान सभा लोकसभा में भागीदार बनाकर उसके नाम पर आदिवासी की जमीन जायदाद तथा अन्य सुविधाओं का लाभ उठाते हुए अपने समाज को समृद्ध करता है । उससे बच्चे पैदा करने के बाद या उसकी मृत्यु के बाद उस बहन बेटी के माध्यम से अर्जित धन संपति अन्य समाज के काम आने लगती है इस तरह समाज की उर्जा अन्यों में जाती है इसे बचाने की कोषिश हो । आपको पता होना चाहिये है कि वह आपके समाज की साख या इज्जत को देखकर आपसे विवाह नहीं कर रहा है । वह आपसे केवल लाभ के लिये संगिनी बना रहा है पारिवारिक जीवन में कभी कभी तकरार के वक्त उसका असली रूप सामने आता है तब उस समय आपको खून का धंूट पीकर अपने बच्चों का चेहरा देखकर अंदर ही अंदर कई बार मरना पडता है । आपको जानकारी हो कि जब संविधान में आरक्षण् की व्यवस्था दी जा रही थी तब मूलनिवासीयों के बहुंत सी वर्गो जातियों ने अनुसूचित वर्ग की सूचि में शामिल होने से मना कर दिया था । परन्तु अब वे ही जातियां आज केवल लाभ के लिये सूचि में शामिल होने के लिये आंदोलन कर रहीं है । आखिर क्यों केवल लाभ के लिये याद करें जिस समाज को जंगली पिछडा और अछूत समझा जाता रहा हो जिसका छुआ पानी भी नहीं पीया जाता था आज यह परिवर्तन क्यों क्या आज आपका सामाजिक स्तर बढ गया या समाज सम्मान योग्य हो गया नहीं आज भी आपके साथ नही ंतो आपके समाज के साथ उसी तरह का व्यवहार होता है पहले खुला खुला होता था आज अप्रत्यक्ष में होता है । होस्टलों स्कूल कालेजों में जहां नौकरी व्यवसासय करते हैं वहां भी । आप उसी तरह मन को शांत कर लेती हो जैसे अंतर्जातीय विवाह के बाद गुस्से में उसके पति द्वारा मिलने वाले व्यंग से आहत होती एक आदिवासी बेटी होती करती है । यदि नौकरी व्यवसाय करते आपकी उम्र बडी हो रही हो माता पिता भी आपके विवाह के अपने प्रयासों में जैसा आप चाहती हैं सफल नहीं हो पा रहे हैं एैसी परिस्थिती में समाज के हालात देखकर आको निर्णय आपको लेना है कि मैं षासकीय सेवा में हूं आय का स्त्रोत बन चुका है परिवार अच्छी तरह चलाया जा सकता है तब आपकी उम्र का समाज को कोइ्र भी जो आपकी बराबरी से शिक्षा प्राप्त है चाहे वह शासकीय सेवा में है या अपना स्वयं का व्यवसाय या कृशि व्यवसाय से जुडा है या बेरोजगार है तो उससे भी विवाह करने में कोई मान सम्मान नहीं धट जायेेगा कृषक को आपका सहयोग उन्नत कृषि की ओर ले जायेगा बेरोजगार युवक को आपका आर्थिक सहयोग रोजगार देकर समाज में व्यवसाय को बढायेगा । इस तरह समाज का मान सम्मान स्वाभिमान समृ़िद्ध में आपका अमूल्य योगदान होगा । अन्यथा समाज में जन्म का कर्ज समाज के गोद में खेलने कूदने का कर्ज समाज के लाडप्यार और माता पिता को आपसे जो अपेक्षा है को आधात लगता है । कुछ इस तरह की छुटपुट धटनाएं हमारे समाज के अच्छी नौकरी व्यवसाय में पहुंच चुके नवयुवको के द्वारा की जाती हैं जो समाज के लिये नुकसान दायक हैं कारण की एैसी परिस्थितियों में हमारी बहन बेटियां कहां जायें । मेरा मानना है कि युवको के लिये यह विचार मातृशक्तियों की ओर से प्रसारित हो तो सुखद ओर प्रेरणादायी होगा । इन धटनाओं ने मेरे मन के अंदर उथल पुथल मचाया है जिसे शांत करने के लिये मैने आपके नाम एैसे संदेश पे्रषित करने का दुस्साहस किया है । मेरे इन विचारों से किसी को आधात लगा हो तो मुझे अज्ञानी समझकर माफ कर दें । प्रस्तुति% गुलजार सिंह मरकाम
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