"सरकार, शिक्षा और समाज"
‘’यह सोचकर कभी लगता हे कि समाज का अधिकार कर्मचारी या जनप्रतिनिधि समाज के प्रति उत्तरदायी क्यों नहीं है’’ इसका कारण यह दिखाई देता है कि सरकारी ओहदे पर जाने के लिये उसे सरकारी तंत्र चलाने की शिक्षा दी गई है या हमारे देष में शिक्षा प्रणाली केवल सरकारी तंत्र को चलाने के लिये विकसित की गई है “ षासक, समाज सेवक ,वैज्ञानिक ,साहित्यकार बनने के लिये नहीं ।“ सामाज के प्रति उत्तरदायित्व के लिये तो बिल्कुल ही नहीं ।“ इसलिये समाज का व्यक्ति सामाजिक जिम्मेदारियों को नहीं समझता ।“ सरकार को अपने तंत्र को चलाने के लिये बाबू और नौकर चाहिये वह अपने काम को अंजाम देता है । जिस तरह अंग्रेजो ने लार्डमैकाले को अंग्रेजी तंत्र को चलाने के लिये बाबुओं की जरूरत थ्री , ठीक यही काम वर्तमान सरकारें भी कर रही है इसमें आश्चर्य की बात नहीं । । और हम हैं कि सरकारी शिक्षा पाने के बाद समझते हैं कि हम शिक्षित हो गये । नहीं हम केवल सरकारी तंत्र को चलाने के लिये मशाीन बनकर रह गये हैं आपको जानकारी है ही कि मशाीन में संवेदना नहीं होती आपरेटर जैसा चलायेगा वैसा कार्य करता है । समाज का व्यक्ति समाज के प्रति तब समाजोन्मुख होगा जब उसे सामाजिक शिक्षा दी जाये, यह काम सरकार का नहीं यह काम समाज का है । समाज के प्रति आकर्षन पैदा करने वाले तत्व उसकी भाशा, धर्म का पाठ उसे समाज ही सिखायेगा हमे सिर्फ समाज के अधिकारियों को उनका फर्ज याद दिलाना है, जिम्मेदारी का एहसास कराना ही काफी होगा इसलिये जिम्मेदारी की ही शिक्षा दी जाये लौटकर समाज की ओर देखने के लिये प्रेरित किया जाय ! । देष में विकसित समाजों की तरफ नजर दौडायें तो पता चलता है कि इन विकसित समाजों ने अपने समाज की ओर व्यक्ति का आकर्षण बने इसके लिये उन्होंने सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक शिक्षा के लिये अलग व्यवस्था कर रखी हैं । बहुत कम लोग होते हैं जो प्रवृति से ही समाज की जिम्मेदरी का एहसास कर लेते हैं कुछ लोग धक्का खाने के बाद समाज की तरफ मुडते हैं और कुछ लोगों को यदि सही तरह से समझाया जाता है तो समाज की ओर मुडकर देखने लगते हैं, अनेक परिस्थतियां हैं । फिर भी हमें एैसे लोगों के लिये लगातार प्रयास करते रहना होगा कारण कि जिन्हे समाज की जानकारी नहीं उनसे कैसे अपेक्षा की जा सकती है,उन्हें तो बताना ही पडेगा । और इसका यह तरीका भी कारगर हो सकता है कि हमें इनके लिये केवल समाजिक उत्तरदायित्व विषय पर सेमिनार, परिचर्चा, प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था की जानी चाहिये । समाज के एैसे अग्रणी जानकार लोगों को जो उन्हें अच्छी तरह समझा सके बुलाकर इनका मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिये । शिक्षित और पढेलिखे लोगों ने आजादी का संघर्ष कम उस संघर्ष को व्यवस्थित करने का काम किये हैं मेनेजमेंट का काम, संघर्ष तो सामाजिक , धार्मिक, सांस्कृतिक चेतना वाले समूह ने किया था । आज भी मैकाले की शिक्षा प्रणाली बदस्तूर जारी है उसका फायदा सत्ताधारी ले रहा है जिन्हे समाजिक षिक्षा है, जिन्होंने पढाई लिखाई के अतिरिक्त सामाजिक ज्ञान अर्जित की है वही संघर्ष कर रहा है, केवल पढालिखा नहीं ? : गुलजार सिंह मरकाम
‘’यह सोचकर कभी लगता हे कि समाज का अधिकार कर्मचारी या जनप्रतिनिधि समाज के प्रति उत्तरदायी क्यों नहीं है’’ इसका कारण यह दिखाई देता है कि सरकारी ओहदे पर जाने के लिये उसे सरकारी तंत्र चलाने की शिक्षा दी गई है या हमारे देष में शिक्षा प्रणाली केवल सरकारी तंत्र को चलाने के लिये विकसित की गई है “ षासक, समाज सेवक ,वैज्ञानिक ,साहित्यकार बनने के लिये नहीं ।“ सामाज के प्रति उत्तरदायित्व के लिये तो बिल्कुल ही नहीं ।“ इसलिये समाज का व्यक्ति सामाजिक जिम्मेदारियों को नहीं समझता ।“ सरकार को अपने तंत्र को चलाने के लिये बाबू और नौकर चाहिये वह अपने काम को अंजाम देता है । जिस तरह अंग्रेजो ने लार्डमैकाले को अंग्रेजी तंत्र को चलाने के लिये बाबुओं की जरूरत थ्री , ठीक यही काम वर्तमान सरकारें भी कर रही है इसमें आश्चर्य की बात नहीं । । और हम हैं कि सरकारी शिक्षा पाने के बाद समझते हैं कि हम शिक्षित हो गये । नहीं हम केवल सरकारी तंत्र को चलाने के लिये मशाीन बनकर रह गये हैं आपको जानकारी है ही कि मशाीन में संवेदना नहीं होती आपरेटर जैसा चलायेगा वैसा कार्य करता है । समाज का व्यक्ति समाज के प्रति तब समाजोन्मुख होगा जब उसे सामाजिक शिक्षा दी जाये, यह काम सरकार का नहीं यह काम समाज का है । समाज के प्रति आकर्षन पैदा करने वाले तत्व उसकी भाशा, धर्म का पाठ उसे समाज ही सिखायेगा हमे सिर्फ समाज के अधिकारियों को उनका फर्ज याद दिलाना है, जिम्मेदारी का एहसास कराना ही काफी होगा इसलिये जिम्मेदारी की ही शिक्षा दी जाये लौटकर समाज की ओर देखने के लिये प्रेरित किया जाय ! । देष में विकसित समाजों की तरफ नजर दौडायें तो पता चलता है कि इन विकसित समाजों ने अपने समाज की ओर व्यक्ति का आकर्षण बने इसके लिये उन्होंने सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक शिक्षा के लिये अलग व्यवस्था कर रखी हैं । बहुत कम लोग होते हैं जो प्रवृति से ही समाज की जिम्मेदरी का एहसास कर लेते हैं कुछ लोग धक्का खाने के बाद समाज की तरफ मुडते हैं और कुछ लोगों को यदि सही तरह से समझाया जाता है तो समाज की ओर मुडकर देखने लगते हैं, अनेक परिस्थतियां हैं । फिर भी हमें एैसे लोगों के लिये लगातार प्रयास करते रहना होगा कारण कि जिन्हे समाज की जानकारी नहीं उनसे कैसे अपेक्षा की जा सकती है,उन्हें तो बताना ही पडेगा । और इसका यह तरीका भी कारगर हो सकता है कि हमें इनके लिये केवल समाजिक उत्तरदायित्व विषय पर सेमिनार, परिचर्चा, प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था की जानी चाहिये । समाज के एैसे अग्रणी जानकार लोगों को जो उन्हें अच्छी तरह समझा सके बुलाकर इनका मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिये । शिक्षित और पढेलिखे लोगों ने आजादी का संघर्ष कम उस संघर्ष को व्यवस्थित करने का काम किये हैं मेनेजमेंट का काम, संघर्ष तो सामाजिक , धार्मिक, सांस्कृतिक चेतना वाले समूह ने किया था । आज भी मैकाले की शिक्षा प्रणाली बदस्तूर जारी है उसका फायदा सत्ताधारी ले रहा है जिन्हे समाजिक षिक्षा है, जिन्होंने पढाई लिखाई के अतिरिक्त सामाजिक ज्ञान अर्जित की है वही संघर्ष कर रहा है, केवल पढालिखा नहीं ? : गुलजार सिंह मरकाम
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