NRC/CAA "अपनी तो धूल नहीं रही है, दूसरों की धोने चले" ।
जब 1947 में बंटवारे के बाद जो लोग चाहे वो हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई बोद्ध जैन पारसी हो यदि उस देश को चॉइस से अपनाकर वहां के नागरिक बन गए । वे हमारे देश के लिए विदेशी हो गए । अब देश की सरकार को अपने देश के नागरिकों विकाश की प्राथमिकता से चिंता करनी चाहिए। कोई भी वर्ग या जाति जो अपने अपने देश में है ,वहां की सरकार अपने नागरिकों की चिंता करें। हमारे या किसी देश में वहां के नागरिकों के साथ कोई अन्याय होता है । तो विश्व मानवाधिकार संगठन हस्तक्षेप करता है। तब हमें दूसरे देशों के लोगों की क्यों चिंता करना चाहिये। इतनी उदारता दिखाकर भारत देश में बाहरी लोगों को बड़ी तादात में नागरिकता देकर भारत की जनसंख्या बढ़ाकर आफत और ,बेरोजगारी को निमंत्रण देना भारत के हित में नहीं। क्या बाहरी लोगों को नागरिकता देकर ही यह देश विकास करेगा ? एक ओर हम भारत की गरीबी बेरोजगारी के लिए जनसंख्यावर्द्धि को दोष देते हैं वहीं CAA लाकर जनसंख्या बढ़ाने में तुले हैं । क्या सत्ताधारी देश को डुबो देना चाहते हैं ? वैसे भी विश्व में हम विकास के हर मुद्दे पर पिछड़कर अभी तक विकासशील देश की कतार में ही ख़ड़े हैं । और कहां ले जाने की मंशा है सत्ताधारियों की , इसे समझने की जरूरत है। ऐसी सोच रखने वाली सरकारों नेताओं को जो भारत के विकास में रोड़ा अटका रहे हैं उन्हें सबक सिखाया जाय। गांव की लोकोक्ति है "अपनी तो धूल नहीं रही है, दूसरों की धोने चले" ।
(गुलज़ार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संजोयक गोंसकआ
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