"नागरिक संशोधन कानून" और "विदेशी शरणार्थी"
नागरिक संशोधन बिल २०१९ पास होना बहुत बड़ी भयावह स्थिति का संकेत है,ऐसे कानून की आरंभिक शुरुआत कांग्रेस ने भी की थी जिसमें बांग्लादेशी शरणार्थियों, सिंधी शरणार्थियों को भारत देश में बसाकर उन्हें देश के विभिन्न स्थानों की खाली भूमि इसमें कृषि, मैदानी और वन भूमि शामिल थी को दे दिया गया इस नये कानून में जहां 6 वीं अनुसूचि वाले राज्यों में प्रभावशील नहीं होने की बात जोड़ी गई है वहीं पांचवीं अनुसूचि के राज्यों के ऐसे क्षेत्र जहां पांचवीं अनुसूचि के अंतर्गत घोषित हैं इनका उल्लेख नहीं है। इसका सीधा मतलब है इन क्षेत्रों में भारत के बाहर से लाये जाने वाले शरणार्थियों को पुन: बसाये जाने की योजना है।ताकि आदिवासी जनसंख्या घनत्व कम की जा सके। जबकि पहले से बसाये गये बंगला शरणार्थी सिंधी शरणार्थी देश के मूल निवासियों के लिए खतरा बने हुए हैं । अब जो कुछ भी बची जमीने हैं उन्हें बाहर के देशों से शरणार्थी बुलाकर देश की जमीन को उनको दे दिया जाएगा क्या भारत देश चारागाह का अड्डा है जिसकी भूमि बाहर से विदेशियों को लाकर दे दिया जाए और यहां के मूल निवासियों को उनकी जमीन से बेदखल उनके कानूनी अधिकारों से वंचित कर उन्हें नक्सलवादी करार देकर मारा जाए । जब बात है कि विदेशी हिंदू सिख बौद्ध पारसी आदि को यहां बसाने की बात है तब वहां के मुस्लिमों के लिए भी यह बात लागू क्यों नहीं होना चाहिए लेकिन यह सोची-समझी साजिश के तहत किया जा रहा है , इसलिए इसका जोरदार विरोध हो। भले यह बिल लोकसभा राज्यसभा में पारित होकर लागू भी हो गया पर इसके दूरगामी परिणाम को जनता और ना आदिवासी समझ रहा है इसे जनता के बीच लाकर जागरूक कर कानून को वापस कराने हेतु विरोध दर्ज कराना होगा।कुछ जनवादी संगठनों ने इसे सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी है,पर पक्षपाती न्याय व्यवस्था से ज्यादा उम्मीद नहीं रखी जाना चाहिये।
(गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)
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