गोंडी भाषा का उत्थान हो यह सोच भारत देश की आजादी के पूर्व १९३०,३१ से ही अखिल भारतीय गोंडवाना महासभा के माध्यम से आव्हान और समय समय पर प्रस्ताव पारित किए जाते रहे हैं, भाषा के महत्व की समझ की कमी या अपेक्षित प्रचार प्रसार की कमी या आजादी के बाद गोंडी भाषा भाषी क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों की उदासीनता ने इस भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाने में सफल नहीं हो सके।
समय चक्र चलता गया भाषा उत्थान की सोच रखने वाले कुछ प्रबुद्ध वर्ग लगातार कोशिश में लगे रहे, परिणामस्वरूप भाषा का यह आंदोलन लगातार जारी है, गोंडी भाषा की समृद्धि बिना लिपि के अधूरी ही थी , गोंडी भाषा उत्थान के आरंभिक कार्य में लगे कुछ विद्वान भाषा को देवनागरी लिपि में लिखकर आमजनता तक पहुंचाने का प्रयास करते रहे जिसमें मांझी सरकार लिखित "माझी सरकार उचाव" नामक पुस्तक प्रसिद्ध है। रंगेल सिंह मंगेली सिंह भलावी जी ने भी "पुनेम ता सार" पुस्तक में देवनागरी लिपि का ही प्रयोग किया है। "गोंडवाना सगा" पत्रिका जो अब गोंडवाना दर्शन के नाम से जाना जाता है इसमें मोती रावन कंगाली जी ने भी देवनागरी लिपि से गोंडी भाषा को समझाने का प्रयास किया "गोंडवाना सगा" पत्रिका में पहला गोंडी गीत भी मैंने देवनागरी में ही प्रकाशित कराया था। पूर्व में ही मैंने लिखा है कि भाषा की समृद्धि बिना लिपि के अधूरी होती है, एक ओर भाषा के उत्थानकर्ता सतत इस कार्य में जुटे हुए हैं वहीं गोंडी भाषा की लिपी हो इसकी आवश्यकता को महसूस करते हुए लिपि तैयार करने की कोशिश करने लगे चूंकि गोंडी भाषिक क्षेत्र उड़ीसा, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश महाराष्ट्र तेलंगाना छग और मप्र इन राज्यों में आज भी बोली जाती है के इलाकों में लिपि संबंधी जानकारी हासिल करने का प्रयास किया गया तब गोंडवाना दर्शन के तत्कालीन संपादक " सुन्हेर सिंह ताराम" जी जो स्वयं बालाघाट जिले से आते थे उन्हें बालाघाट जिले के घोड़ा डीह ग्राम से "मंगल सिंह भाव सिंह मसराम" द्वारा प्रकाशित वर्णमाला तथा एक से लेकर १०० अंकों को प्रदर्शित करने वाली "गोंडी लिपि" में पुस्तिका प्राप्त हुई जिसे सुन्हेर सिंह ताराम जी ने अपनी पत्रिका गोंडवाना दर्शन के प्रत्येक अंक में स्थायी जगह दी। परिणामस्वरूप भाषा के साथ साथ लिपि के प्रति लोगों की जिज्ञासा बढ़ने लगी, इस लिपि के इतिहास को मोती रावन कंगाली जी ने खंगालने का प्रयास करते हुए इसके चित्र लिपि होने की जानकारी अपनी पुस्तक "सैंधवी लिपि का गोंडी में उद्वाचन" के रूप प्रस्तुत किया। तब से लेकर अब तक देश के अधिकांश हिस्सों में "मसराम लिपि" का ही प्रयोग किया जाता है। गोंडी भाषा के उत्थान में एक महत्वपूर्ण कड़ी जिसकी आवश्यकता महसूस की गई वह कड़ी थी "गोंडी भाषा का मानकीकरण" जिसके सूत्रधार के रूप में "आदिवासी स्वरा" के संस्थापक शुभ्रांशु चौधरी ने गोंडी भाषा मानकीकरण की प्रथम पांच दिवसीय कार्यशाला "गांधी स्मृति संस्थान नई दिल्ली में आयोजित कराई जिसमें विभिन्न गोंडी भाषिक प्रदेशों से लगभग ८० प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जिसमें प्रमुखतया मोती रावन कंगाली जी, प्रहलाद सीडाम महाराष्ट्र , सुन्हेर सिंह ताराम जी मप्र डा. के एम मैत्री जी कर्नाटक,शेर सिंह अचला जी प्रमोद पोटई छग, नेहरू मरावी जी, आंध्रप्रदेश ,सीडाम आर्जू जी मानिकराव जी तेलंगाना, आनंद माड़ी रामा मडकामी उड़ीसा, गुलजार सिंह मरकाम,शुक्लू सिंह आहके सुशीला धुर्वे सहित टेक्निकल टीम शताली शेडमाके एवं क्रांति किरण सोडाम के नेतृत्व
सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ,इस प्रथम कार्यशाला में मसराम लिपि के अतिरिक्त तेलंगाना राज्य के गुंजाला ग्राम से संपर्क रखने वाले एक फ्रांसीसी व्यक्ति "एमन ड्राफ" जो गोंडी भाषा पर अध्ययन कर रहा था उन्होंने तेलुगू लिपि से मिलती जुलती "गुंजाला गोंडी लिपि" तैयार की एवं गोंडी भाषा शब्दकोश तैयार किया जोकि मसराम लिपि की तरह व्यापक विस्तार नहीं कर पाया अतः वर्तमान समय में मसराम लिपि अब मप्र के एक नवयुवक संग्राम सिंह मरकाम के कम्प्यूटर के माध्यम से "डिजिटल फोंट" तैयार कर देने से गोंडी लिपि को लिखना आसान हो चुका है। अखंड गोंडवाना पाक्षिक समाचार पत्र जिसकी प्रधान संपादक श्रीमती दुर्गावती मरकाम है ने अपने समाचार पत्र के दो फुल पेज में मसराम लिपि से समाचार प्रकाशित कर ऐतिहासिक कार्य किया।
गोंडी भाषा उत्थान के पक्षधर कुछ शासकीय/अशासकीय संस्थान जिसमें हम्पी यूनिवर्सिटी कर्नाटका , इंदिरा गांधी ट्रायबल यूनिवर्सिटी मप्र गोंडवाना यूनिवर्सिटी महाराष्ट्र,आई टी डी ए आंध्रप्रदेश और आईं टी डी ए तेलंगाना ने समय समय पर कार्यशालाओं का आयोजन कराते हुए गोंडी भाषा के उत्थान में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर चुके और कर रहे हैं। हम्पी यूनिवर्सिटी ने डा. के एम मैत्री जी के नेतृत्व में कार्यशालाओं के माध्यम से मानकीकरण किये गये लगभग ३००० शब्दों का शब्दकोष प्रकाशित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर चुकी है गोंडवाना का विशाल समाज आपका सदैव आभारी रहेगा।
गोंडी भाषा के विकास की चिंता के साथ इसकी लिपि पर भी कुछ विद्वान लगातार प्रयासरत हैं, कोई "एप" बनाकर तो कोई गूगल ट्रांसलेटर के स्तर गोंडी भाषा और लिपि को अन्य भाषाओं की तरह संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मानजनक स्थान दिलाने में प्रयासरत हैं ऐसे सभी प्रबुद्ध वर्ग तथा शासकीय, अशासकीय संस्थाओं को मेरा नमन अभिनंदन और आभार व्यक्त करता हूं।- जय सेवा,जय जोहार,जय गोंडवाना
आलेख:- गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन
संपर्क नं.-9329004468,8989717254
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