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आदिवासी लिंग नहीं पिंड पर जल चढ़ाता है।

 "ये बेहूदगी है"

जिस लिंग को अपनी योनि में प्रवेश कराकर अपने पेट में अपने रज को मिलाकर पिंड का निर्माण करती है,वही सबसे बड़ी शक्ति है। अतः उस पूर्ण शक्ति के महत्व को आदिवासी समझता था इसलिए उसने अपने देवालय में शक्ति का प्रतीक के रूप में कोई गोल पत्थर रख देता है। मातृशक्ति सम्मान के कारण लिंग और योनि के खुले प्रदर्शन को सही नहीं मानता।

                                वहीं मनुवादी विचारधारा के लोग जोकि पुरुष प्रधान व्यवस्था के पक्षधर हैं  लिंग पूजा को महत्व देते हुए केवल एकपक्षीय शक्ति को महत्वपूर्ण मानते हैं। लिंग यानि पुरुष का जननांग जिसे श्रद्धा के नाम पर चूमते चाटते और घी दूध से उसकी मालिश करते हैं। कायदे से तो इस विचारधारा के लोग अपनी महिलाओं को जीवंत लिंग की सेवा में रत होने का संदेश देना चाहिए आज के समय में महिला को खुलेआम ऐसा करना अपराध की श्रेणी में माना जा सकता है। इसलिए अपनी भड़ास निकालने के लिए महिलाओं के साथ साथ स्वयं भी ऐसा कृत्य करने से बाज नहीं आते, पुरुषों का लिंग की पूजा अर्चना के परिणाम के रूप में जाने अंजाने समलैंगिक यौन को बढ़ावा दिए जाने का संदेश जाता है।

सोसल मीडिया में यूं ट्यूब के एक पोस्ट में पुरुष के लिंग को हूबहू उकेर कर महिलाओं के द्वारा उसकी पूजा करते हुए दिखाया गया है। आज भी यदि ऐसी बेहूदगी हो रही है तब इस मानसिकता को क्या कहा जा सकता है। विचारणीय है।

- गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन 

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