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"क्या हम वास्तव में संगीत के प्रथम अविष्कारक हैं" (तथ्यपरक शोध की आवश्यकता है)

वैसे तो गोंडवाना आंदोलन के चलते हमारे लोग अपने आपको संगीत विधा के प्रथम अविष्कारक के रूप में बखान करते हुए नहीं थकते ! कहीं अठारह वाद्यों के जानकार और महान संगीतज्ञ और पारी व्यवस्था के स्थापनकर्ता "पहांदी पारीकुपार लिंगों को संगीत वाद्ययंत्रों का अविष्कारक माना जाता है, वहीं महान किंगरी वादक "हीरासुका पाटालीर"  को संगीत गुरु की उपाधि से विभूषित किया जाता है। इस पर तथ्यपरक शोध कर निष्कर्ष पर आना चाहिए ताकि हम विश्व में संगीत के प्रथम अविष्कारक के रूप में अपने पुरखों को स्थापित कर सकें।

             इस विषय पर मैंने गोंडवाना के "स्वरलहरी" के रूप में स्थापित माननीय प्रेमसशाह मरावी जी से काफी समय से आग्रह किया हुआ है कि इस विषय पर शोध करते हुए एक लेखन प्रकाशित करें ताकि हमारा समुदाय विश्व पटल पर संगीत सरगम के प्रथम अविष्कारक के रूप में विख्यात हो सके। मुझे लगता है कि माननीय प्रेम शाह मरावी जी की व्यस्तता ने इस ओर इनका ध्यान आकर्षित नहीं होने दिया हो, फिर भी मुझे लगता है कि यह काम वे जल्द शुरू करें। हालांकि संगीत के इस शोध के लिए मैंने मैंने कुछ तथ्यपरक संकेत दिये हैं जिसके माध्यम से माननीय प्रेम शाह मरावी जी को इस शोधकार्य में सहायता मिल सकती है।

          (१) सबसे पहले हमें वर्तमान में प्रचलित शास्त्रीय संगीत के सात सुरों "सारेगामपधनि" का अध्ययन करना हो कि ये स्वर कहां से आये।

(२) क्या दुनिया में संगीत के सात ही स्वर उपयोग किए जाते हैं? पाश्चात्य संगीत में तो केवल पांच स्वर ही प्रयोग होते हैं। ये कहां से आये इस पर भी अध्ययन हो।

(३) तत्पश्चात गोंडवाना के पारंपरिक वाद्यों के तीन तारों (किंगरी) से निकलने वाले तीन स्वर और पारंपरिक गीतों की स्वर साधना में " तरिनको" या "तैहर नाना" जैसे स्वरों से राग अलापने के क्या कारण हो सकते हैं।

(४) भीमा का "एकतारा" वाद्य का प्रचलन वर्तमान में भी क्यों प्रासंगिक है।

उपरोक्त उदाहरण से मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचता हूं कि संगीत वाद्ययंत्र और स्वरों को प्रकृति के स्वभाव का अनुशरण करते हुए आरंभिक खोजकर्ताओं ने एकतारा चिकाडा फिर तीन तारा किंगरी तत्पश्चात शास्त्रीय संगीत सप्तम इसके बाद पाश्चात्य संगीत में पांच तारों का गेटार आदि से निकलने वाले स्वर हो सकता है एक, तीन स्वरों के बाद ही अस्तित्व में आये हों । स्वरों की शुरुआत "तरिनको" से होकर "सारेगामा" तक पहुंचे होंगे। शोध का विषय है। इस विषय पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

प्रस्तुति - गुलजार सिंह मरकाम 

(राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)


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