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मूलवासी मूल निवासियों का धर्मनिरपेक्ष चश्मा

पहले कॉन्ग्रेस मनुवाद की ए टीम मानी जाती थी जिसने मूलवासी, मूल निवासियों को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ा कर भाजपा रूपी बी टीम को स्थापित करने के लिए मंदिर मस्जिद जैसे ईवीएम जैसे मुद्दों को लाकर भाजपा को ए टीम बनने का अवसर दिया है। देश का मूलवासी मूलनिवासी कांग्रेस को धर्मनिरपेक्षता के चश्मे से देखता रहा जबकि इस देश में जितने भी धर्म है वे अपने अपने धर्मों को मजबूत करते रहे भाषाओं को मजबूत करते रहे अपने सांस्कृतिक पक्ष को मजबूत करते रहे वही देश के आदिवासी की बनी बनाई सांस्कृतिक, धार्मिक विरासत मिट्टी में मिलती गई इसका कौन जिम्मेदार है । इसका मतलब हम धर्मनिरपेक्षता का चश्मा पहने रहें और अन्य लोग अपनी पहचान को मजबूत करते रहें ? आज की तारीख में देश में गांधीवादी अंबेडकरवादी समाजवादी विचारधाराएं चल रही है जिनकी आंतरिक धार्मिक संरचना का लक्ष्य कोई ना कोई धर्म होता है उनके संस्कृति और संस्कार होते हैं, अब हम यह चलने नहीं देंगे । वर्तमान समय में सांस्कृतिक जय पराजय का दौर चल रहा है ऐसे में सामाजिक सांस्कृतिक धार्मिक लामबंदी आवश्यक है। जो सत्ता को प्रभावित करने के लिए आवश्यक है। (Gska)

("GSKA" मध्यस्थता के लिए तैयार है

गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन लंबे समय से अनवरत जारी है आशा है इसी तरह सतत जारी रहे। गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन में जिन सामाजिक धार्मिक आर्थिक सांस्कृतिक भाषाई साहित्यिक जैसी शाखाओं को एक दूसरे से समन्वय कराते हुए आगे बढ़ाया गया परिणाम स्वरूप आज राष्ट्रीय क्षितिज पर यह आंदोलन कहीं ना कहीं अपेक्षित परिणाम दे रहा है परंतु गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन की इन शाखाओं को सुरक्षा और संरक्षण देने के लिए राजनीतिक इकाई को अवसर दिया गया यह इकाई लंबे समय तक कोई अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रही है कारण बहुत से हैं परंतु कहा जाता है ना की राजनीति में धन है ग्लैमर है वाहवाही है इसलिए आंदोलन की आधार शाखाएं भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी परिणाम स्वरूप राजनीतिक इकाई अन्य शाखाओं को प्रभावित करने लगी । कायदा तो यही था की अन्य इकाइयां अपनी शाखाओं से व्यक्तियों को तैयार करके राजनीतिक शाखा में स्थापित करने का काम करती परंतु राजनीति के चलते इन शाखाओं के प्रस्तावित प्रतिनिधियों को कभी भी अवसर नहीं दिया गया अतः सामाजिक संगठन भी धीरे धीरे राजनीतिक आंदोलन से किनारा करके अपने तरीके से आंदोलन को चलाने लग...

"2 वोट के अधिकार से वंचित समुदाय उसका जनप्रतिनिधि"

अनुसूचित जनजाति घोषित लोकसभा विधानसभा या निकाय क्षेत्रों में गैर आदिवासी वोट बैंक को हासिल करने के लिए आरक्षित वर्ग का जनप्रतिनिधि अपनी धर्म संस्कृति प्रीति और परंपराओं को भी ताक में रख सकता है। क्योंकि गैर जनजाति मतदाता इन आरक्षित क्षेत्रों के मतदान में वेलेंसिंग की भूमिका में रहता है। ऐसा मतदाता सतर्क और जागरूक भी रहता है इसलिए आरक्षित वर्ग के प्रत्याशी जीतने के बाद इनका ज्यादा ख्याल रखते हैं और इनकी भाषा धर्म संस्कृति को सिर आंखों पर बैठा कर रखते हैं। यदि यह लोग अपने समुदाय की भाषा धर्म संस्कृति परंपराओं पर कट्टर होते तो यह कट्टरता गैर आदिवासी मतदाता को अपने साथ चलने के लिए मजबूर कर देते। भविष्य की इसी आशंका को देखते हुए डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने गोलमेज कांफ्रेंस में पृथक निर्वाचन अथवा दो वोट के अधिकार को दिलाने का प्रयास किया था। यदि वह अधिकार मिल गया होता तो आरक्षित क्षेत्र के जनप्रतिनिधि गैर आदिवासी वोट बैंक से भयभीत नहीं होते। (Gska)

समुदाय और समाज

इंसानों का समूह समाज है ,क्योंकि सबकी आवाज समान है। निर्धारित समान उद्देश्यों को लेकर चलने वाला समूह समुदाय है।(gska) ये इसलिए लिखना पडता है कि अनेकों बार समाज और समुदाय को परिभाषित करने का प्रयास किया लेकिन कोल्हू के बैल को सिर्फ चक्कर लगाना आता है किसलिए लगा रहे हैं उससे उसे कोई मतलब नहीं। हिंदी पढ़ते हैं तो कम-से-कम किसी शब्द के मायने की भी छानबीन होना चाहिए। दोनो शब्द अलग-अलग हैं, इसलिए इसके मायने भी अलग हैं। पर क्या करें रट्टू तोता हैं, भेड़ है आदत से मजबूर हैं।

"किसान विरोधी तीन बिल संसद में पारित इसके पीछे का काला सच क्या है जाने।"

किसान का उत्पादन मंडियों में घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर खरीदा जाता था जिसे मंडी के बाहर भी व्यापारी को उस मूल्य से कम करके नहीं लेना होता था परंतु इस नए कानून में किसानों के लिए ऐसी स्थिति पैदा कर दी की वह कहीं भी भेजें अब तक यही होता आया है की व्यापारी मनमाने भाव से किसानों की उपज को पहले भी खरीदता था अभी भी यही करेगा क्योंकि पहले शासन का दबाव होता था की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही व्यापारी अनाज को खरीदेंअन्यथा उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही हो जाती थी अब इससे छूट मिल गई है। इसका जो सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने वाला है वह यह कि अब मंडी में अनाज नहीं जाएगा छोटा व्यापारी भी कृषि उपज को इतना खरीद नहीं पाएगा क्योंकि उसे बड़े बाजार में बेचने के लिए केवल कारपोरेट घरानों पर निर्भर होना पड़ेगा वही यह कारपोरेट घराने उस उपज को लेना चाहे तब लेंगे नहीं लेना चाहेंगे तो नहीं लेंगे छोटा व्यापारी भी इसमें नुकसान में रहेगा कारपोरेट कंपनियां उनकी भी मजबूरी का फायदा उठा कर मनमाने भाव से कृषि उपज को सस्ते दामों में खरीदकर भंडारण कर लेंगी और वहीं पर शासकीय मंडियों में अनाज नहीं रहेगा तब यही कंपन...

"प्रजातंत्र प्रणाली में राजनीति ताकत के महत्व को समझे आदिवासी समुदाय।"

"प्रजातंत्र प्रणाली में राजनीति ताकत के महत्व को समझे आदिवासी समुदाय।" संविधान में राष्ट्रपति और राज्यपाल शक्तिहीन राज्य और राष्ट्र के प्रमुख हैं तब आदिवासी समुदाय इनके संरक्षण में कैसे अधिकार सम्पन्न हो सकता है। इसलिये हमें इनके भरोशे किसी भी जनविरोधी आदिवासी विरोधी कानून में दखल देकर उन्के हितों के संरक्षण की आशा कैसे की जा सकती है। इसलिये आदिवासी समुदाय को चाहिये कि वह लोकतंत्र प्रणाली में वोट की राजनीतिक ताकत पैदा करके अपने हितों का संरक्षण कर सकती है। आदिवासी समुदाय अपने राज्य और राष्ट्र के कथित हित संरक्षक से पांचवीं अनुसूचि पेसा कानून या वनाधिकार कानून जैसे मुददों पर उम्मीद करना बेमानी होगी। इसलिये कहा जाता है कि राजनीतिक एक एैसी मास्टर चाबी है जिससे हर समस्या रूपी बंद ताले को खोला जा सकता है। (गुलजार सिंह मरकाम रा0सं0गों0स0क्रां0आं0)

देवस्थल से मिट्टी चोरी समुदाय के लिए अनिष्ट का कारण भी बन सकता है

"देवस्थल से मिट्टी चोरी समुदाय के अनिष्ट का कारण भी बन सकता है " आदिवासी समुदाय में आवश्यकतानुशार अपने देवों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर स्थापित करने की परंपरा भी है। जिसे "जगह चालना " कहा गया है। कभी कभी ऐसे स्थांतरण परिवार के बीच तालमेल नहीं होने से बंटवारा के कारण होता है । जिसे "डार नवाना" जैसे शब्दों से परिभाषित किया जाता है। इन दोनों अवसरों पर देवस्थल की मिट्टी को विधिवत प्रक्रिया से अपने "सेरमी " के माध्यम से खोदकर निर्धारित स्थान में ले जाकर विधिवत प्रक्रिया से स्थापित किया जाता है। बुजुर्गों से प्राप्त जानकारीके अनुसार कभी कभी हमारा अहित चाहने वाला हमारे देव स्थल से नजर बचाकर या चोरी से वहां की मिट्टी चुराकर ले जाता है और उस मिट्टी का काले क्रत्य के लिए दुरुपयोग करता है। ये सब लिखने का मेरा आशय यह है कि हमारे आदिवासीयों के देवस्थल से मिट्टी चुराकर या समुदाय के कुछ गद्दारों की मिलीभगत से सरेआम डकैती डाली गई हो,यह हमारी आस्था और जीवन के लिए खतरा है। समुदाय और समुदाय के विधिवेत्ता इसे अवश्य संज्ञान में लेवें। -गुलज़ार सिंह म...