(अनुनय, विनय, निवेदन, अपील) प्रति महामहिम राष्ट्रपति महोदय राष्टपति भवन,भारत सरकार नई दिल्ली विषय :- राष्ट्रीय सकल आय का मेरे हिस्से की राशि मेरी भाषा और धर्म के विकास के लिये लगाई जाय अन्यथा मेरे हिस्से की उस मद की राशि मेरे खाते में जमा कर दिया जाय । मैं जानता हूं कि एैसा कहने पर आप मुझे अलगाववादी कह सकते हैं । पागल और दिवालिया घोषित कर सकते हैं । परन्तु ये मेरे अंदर का आदिवासी इंसान बोल रहा है । जब मैं देश के विकास के लिये श्रम करता हूं । उपभोक्ता बनकर वस्तुओं की मूल लागत के साथ टेक्स जोडकर अधिक राशि व्यय करता हूं । तुम्हारे कथित विकास नाम के झांसे में आकर अपना खेत खलिहान जंगल नदी पहाड रिस्तेदार नातेदार छोडकर अनचाही जगह पर रहने के लिये भी राजी हो जाता हूं । तब भी आपको इतना ख्याल नहीं कि इसकी मां रूपी भाशा को सम्मान दिया जाय या इसके पिता रूपी धर्म को राजाश्रय दिया जाय । आपको मालू...