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"महामहिम राष्ट्रपति महोदय को ईमेल से भेजा गया पत्र ।"


                                                      (अनुनय, विनय, निवेदन, अपील)
प्रति 
महामहिम राष्ट्रपति महोदय 
राष्टपति भवन,भारत सरकार नई दिल्ली
विषय :- राष्ट्रीय सकल आय का मेरे हिस्से की राशि मेरी भाषा और धर्म के विकास के लिये लगाई जाय अन्यथा मेरे हिस्से की उस मद की राशि मेरे खाते में जमा कर दिया जाय । 
मैं जानता हूं कि एैसा कहने पर आप मुझे अलगाववादी कह सकते हैं । पागल और दिवालिया घोषित कर सकते हैं । परन्तु ये मेरे अंदर का आदिवासी इंसान बोल रहा है । जब मैं देश के विकास के लिये श्रम करता हूं । उपभोक्ता बनकर वस्तुओं की मूल लागत के साथ टेक्स जोडकर अधिक राशि व्यय करता हूं । तुम्हारे कथित विकास नाम के झांसे में आकर अपना खेत खलिहान जंगल नदी पहाड रिस्तेदार नातेदार छोडकर अनचाही जगह पर रहने के लिये भी राजी हो जाता हूं । तब भी आपको इतना ख्याल नहीं कि इसकी मां रूपी भाशा को सम्मान दिया जाय या इसके पिता रूपी धर्म को राजाश्रय दिया जाय । आपको मालूम है कि आदिवासी को अपनी संस्कृति से अधिक प्यार है तब इसकी संस्कृति को हूबहू बचाये रखकर इनके विकास के लिये कोई योजना क्यों नहीं बनाते । आपकी विकास की हर योजनाऐं आदिवासी की संस्कृति की छाती पर चढकर सफल होती हैं । आप कहेंगे आदिवासियों के लिये हमने अलग आदिवासी विभाग बनाया है आदिवासी क्षेत्रों में पांचवीं एवं छठी अनुसूचि के तहत स्वायत्ता के अधिकार दिये हैं । फिर भी आदिवासी विकास नहीं करता इतना कहकर आप अपने आप की अक्षमता को आदिवासी के सिर पर मढ देते हो । अब एैसा नहीं चलेगा । हम यदि वन भूमि के कब्जेदार हैं तो हमें बलपूर्वक हटाने का प्रयास किया जाता है, वन विभाग अपने उच्च अधिकारियों को खुस करने के लिये भूमि अतिकृमण का दोषी ना बनाकर अन्य फर्जी कृत्यों जैसे लकडी चोरी जंगली जानवरों पर हमला वनकर्मियों पर हमला जैसे प्रकरण बनाकर जेल भेजने का काम करती है । हम आपसे पूछना चाहते हैं कि नक्सलवाद के नाम पर हमारी भूमि से हमें बेदखल करने का खूनी खेल तो नहीं खेला जा रहा है । हम ना समझ हैं हर बात को सीधा सीधा समझते हैं आपकी कूटनीतिक बाते हमारी समझ के परे हैं । फिर भी इतनी समझ तो है कि हम अपनी भूमि से सदा सदा के लिये बेदखल होने जा रहे हैं । आप कहते हैं कि जितना चाहते हो उतना मुआवजा ले लो पर जमीन खाली कर दो । आखिर बियाबान जंगल और उबड खाबड जमीन से केवल खनिज पाना चाहते हो या केवल आदिवासी और उसकी संस्कृति को मिटाना चाहते हो बताओ संयुक्त राष्ट्र संघ ने दुनिया के सभी देषों के आदिवासियों की भाषा धर्म संस्कृति को संरक्षित रखने का दिशा निर्देष दिया हुआ है आपको भी मिला होगा । इस पर विचार करें ।
उपरोक्त परिस्थितियों के जिम्मेदार तो आप ही को माना जायेगा क्योंकि आप हमारे मुखिया हैं । इसलिये आपसे मेरा व्यक्तिगत अनुरोध है कि राश्टीय आय में जो मेरा हिस्सा बनता है, उस हिस्से का जितना अंशराशि गैरआदिवासी धर्म संस्कृति और भाषा के विकास में जाता है उसे रोक दिया जाय और उस राशि को मेरे खाते में जमा कर दिया जाय, ताकि में अपनी भाषा धर्म संस्कृति की प्रथक से विकास की भूमिका बना सकूं । जय सेवा जय जोहार !
Date 19-10-2016 निवेदक 
गुलजार सिंह मरकाम
बेहंगा पोस्ट मलारा पोस्ट आई टी आई 
तहसील व जिला मण्डला म0प्र0
call -09329004468

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