"विजित और विजेता भाव का प्रतीक है रामायण ।"
हर विजेता विजित राष्ट्र पर सत्ता स्थापित करने के बाद उस राष्ट्र की प्रमुख पहचान को मिटाकर अपनी पहचान स्थापित करता है । उसका पहला शिकार स्थापत्य या एैतिहासिक धरोहर होता है । नये निर्माण के साथ व्यवस्था बदलने के लिये अपने अनुकूल भूगोल की सीमाऐं बदलता है । शिक्षा और साहित्य को अपनी व्यवस्था का दर्पाण बनाता है । यह सब कर चुकने के बाद सत्ता के प्रभाव जिसमें भय और सहिष्णुता दोनो के बल पर सांस्कृतिक विजय अभियान की ओर अग्रसर होता है । चूंकि संस्कृति में एकदम से परिवर्तन लाना किसी भी विजेता के लिये संभव नहीं । कारण कि यह समाज की आंतरिक आस्था विश्वास और मान्यता रूपी धरोहर हैं । आदि रावेन पेरियोल को उसी नाम और भाव से विस्मृत नहीं किया जा सकता था ।इसलिये उसे प्रतीक रूप काल्पनिक कहानी रामायण की रचना कर मिलते जुलते नाम के पात्र रावण को बुराई का प्रतीक बनाया गया ताकि जनमानस का ध्यान आदिरावेन को भूलकर रावण को बुराई का प्रतीक के रूप में स्थापित हो सके । विजेता सत्ता के प्रभाव का इसी तरह इस्तेमाल करता है । आप भी अवगत हैं कि भरतीय इतिहास की समीक्षा की कोशिष की जा रही है । इस प्रयास के पीछे भारतीय जनमानस के बीच बढती खोजी प्रवृति भी एक कारण है । मेरा मानना है हमारा ध्यान आदि रावेन की सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक व्यवस्था की अच्छी प्रस्तुति पर केंद्रित करना चाहिये । ना कि रावण का नाम बार बार लाकर उसे एैतिहासिक पात्र बनाने की ।
हर विजेता विजित राष्ट्र पर सत्ता स्थापित करने के बाद उस राष्ट्र की प्रमुख पहचान को मिटाकर अपनी पहचान स्थापित करता है । उसका पहला शिकार स्थापत्य या एैतिहासिक धरोहर होता है । नये निर्माण के साथ व्यवस्था बदलने के लिये अपने अनुकूल भूगोल की सीमाऐं बदलता है । शिक्षा और साहित्य को अपनी व्यवस्था का दर्पाण बनाता है । यह सब कर चुकने के बाद सत्ता के प्रभाव जिसमें भय और सहिष्णुता दोनो के बल पर सांस्कृतिक विजय अभियान की ओर अग्रसर होता है । चूंकि संस्कृति में एकदम से परिवर्तन लाना किसी भी विजेता के लिये संभव नहीं । कारण कि यह समाज की आंतरिक आस्था विश्वास और मान्यता रूपी धरोहर हैं । आदि रावेन पेरियोल को उसी नाम और भाव से विस्मृत नहीं किया जा सकता था ।इसलिये उसे प्रतीक रूप काल्पनिक कहानी रामायण की रचना कर मिलते जुलते नाम के पात्र रावण को बुराई का प्रतीक बनाया गया ताकि जनमानस का ध्यान आदिरावेन को भूलकर रावण को बुराई का प्रतीक के रूप में स्थापित हो सके । विजेता सत्ता के प्रभाव का इसी तरह इस्तेमाल करता है । आप भी अवगत हैं कि भरतीय इतिहास की समीक्षा की कोशिष की जा रही है । इस प्रयास के पीछे भारतीय जनमानस के बीच बढती खोजी प्रवृति भी एक कारण है । मेरा मानना है हमारा ध्यान आदि रावेन की सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक व्यवस्था की अच्छी प्रस्तुति पर केंद्रित करना चाहिये । ना कि रावण का नाम बार बार लाकर उसे एैतिहासिक पात्र बनाने की ।
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