"संविधान सभा में जयपाल मुण्डा"
संविधान सभा में जयपाल मुण्डाने प्रखरता से उदघोषित किया की देश को और उसके नीति नियंताओं को आदिवासियों से सीखने की जरूरत है । वे दुनिया के प्रथम वासिंदे हैं गणतंत्र के अविष्कारक लोकतंत्र के प्रेक्टिशनर और धरती के संरक्षक । नया भारत रचते हुए उनके नैसर्गिक अधिकारों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाये, आदिवासी बस इतना चाहते हैं । गैर आदिवासी समाजों की तरह उनकी भौतिक अभिलाशाएं नहीं हैं, वे अपने लिये नहीं पीढियों के लिये प्रकृति और समष्टि के लिये इंसानी व्यवस्था से सहजीवितार्पूएा व्यवहार और समर्थन की अपेक्षा करते हैं । वे महज मांगपत्र नहीं हैं धरती उनका प्राथमिक आधार है । मानव संस्कृति और विकास की नींव उन्होंने ही डाली है । अगर आप आदिवासियों को नजरअंदाज कर नये भारत को रचेंगे तो भारत निर्मित होगा, लेकिन आदिवासी नहीं बचेंगे ।
संविधान सभा में जयपाल मुण्डाने प्रखरता से उदघोषित किया की देश को और उसके नीति नियंताओं को आदिवासियों से सीखने की जरूरत है । वे दुनिया के प्रथम वासिंदे हैं गणतंत्र के अविष्कारक लोकतंत्र के प्रेक्टिशनर और धरती के संरक्षक । नया भारत रचते हुए उनके नैसर्गिक अधिकारों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाये, आदिवासी बस इतना चाहते हैं । गैर आदिवासी समाजों की तरह उनकी भौतिक अभिलाशाएं नहीं हैं, वे अपने लिये नहीं पीढियों के लिये प्रकृति और समष्टि के लिये इंसानी व्यवस्था से सहजीवितार्पूएा व्यवहार और समर्थन की अपेक्षा करते हैं । वे महज मांगपत्र नहीं हैं धरती उनका प्राथमिक आधार है । मानव संस्कृति और विकास की नींव उन्होंने ही डाली है । अगर आप आदिवासियों को नजरअंदाज कर नये भारत को रचेंगे तो भारत निर्मित होगा, लेकिन आदिवासी नहीं बचेंगे ।
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