“बहुत विचार कर
रहा था कि एक छोटा सा प्रहसन या नाटक लिख दूं पर किन्हीं कारणों से या समयाभाव के
कारण ही सही पर लिख नहीं पाया अब उस तरह की चेतना का एहसास सामाजिक पर्यावरण में
देखने को मिलने लगा है, तब यह छोटा सा
प्रहसन शायद इस बात को हवा देने में अपनी भूमिका अदा कर सकता है ।“ प्रस्तुत है (गुलजार सिंह मरकाम)
“टिकिट वितरण समारोह”
प्रदेश में आम
चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही राजनीतिक दलों में अफरा तफरी मची हुई है । टिकिट
की जुगाड में लोग नेताओं से मिल रहे हैं कई छोटे बडे नेताओं की इस समय चटक गई है ।
जत्था का जत्था किसी ना किसी नेता के इर्द गिर्द मडराता नजर आ रहा है ना जाने भैया
किसके डपर हाथ रख दें । अनेक सिफाारिशें हो रहीं हैं पेनल बन रहे हैं ना जाने क्या
क्या हो रहा है अवर्णनीय है ।
(टिकिट वितरण
समारोह के एक पार्ट आरक्षित वर्ग की सीटो पर प्रहसन का दृष्य)
विकासखण्ड का एक
प्रतिष्ठित व्यापारी अपने नौकर से- क्यों रे
बुद्धसिंह चुनाव लडेगा ।
बुद्धसिंह- क्या मालिक
मालिक- अरे
मैं कहता हूं विधान सभा का चुनाव लडेगा ।
बुद्धसिंह-
क्यों मजाक करते हो मालिक मैं और चुनाव मुझे कौन बोट देगा मेरे पास तो फारम
भरने तक के पैसे नहीं मैं तो सपने में भी एैसा
सोच नहीं सकता मालिक मैं आपके यहां नौकरी से ही
बहुत खुस हूं
मालिक- अरे
तुम्हारा तो बहुत बडा परिवार है आसपास गांव में तुम्हारे सारे रिस्तेदार हैं वे ही
बोट दे देंगे तो तुम जीत जाओगे ।
मालिक- एैसा
करते हैं मैं तुम्हारी टिकिट की बात को आगे बढाता हूं तुम अपने रिस्तेदारों के पास
जाओ बात करो बाकी मैं देख लूंगा ।
(विधान सभा क्षेत्र के दूसरे ब्लाक में पार्टी
के ब्लाक कार्यालय का दृश्य अध्यक्ष अपनी कमेटी से कहता है)
अध्यक्ष - अपने अपने
इलाके से प्रत्याशियों की सूचि प्रस्तुत करो जिला प्रमुख ने आदेश किया है ।
एक पदाधिकारी - महोदय टिकिट तो हमारे ब्लाक कमेटी के किसी अच्छे पदाधिकारी को मिलना चाहिये
।
अध्यक्ष - भाई मेरे
लिये तो सभी पदाध्किारी अच्छे हैं आप प्रस्ताव बनायें मैं उन्हें आगे पेनल में
जुडवा दूंगा आखिर हमारे ब्लाक से जनप्रतिनिधि होगा तो हमारे ब्लाक का विकास होगा ।
सदस्य - ब्लाक कमेटी में तो मेरे अलावा कोई आरक्षित
सदस्य नहीं है इसलिये मेरा नाम पेनल में जोड दिया जाय ।
अध्यक्ष - सही
बात है जी पर उपर के निर्देश हैं कि ब्लाक से कोई पढा लिखा दमदार व्यक्ति चाहिये
जो चुनाव जीत सके भाई पार्टी के पास इतने पैसे भी तो नहीं इसलिये कुछ खर्च कर सकने
वाला प्रत्याशी हो तो ज्यादा अच्छा होगा । आप तो कमेटी की जान हैं वैसे भी आपको
सभी बडा सम्मान देते हैं आप विधायक से कम रूतबा नहीं रखते । आखिर आपके समाज का ही
तो व्यक्ति जीतकर आयेगा । हमें देखो आज तक कोई चुनाव नहीं लड पाये और जब तक ये
क्षेत्र आप लोगों के लिये आरक्षित है तब तक कोई संभावना भी नहीं तुम्हारे तो मजे
हैं ।
सदस्य - तो एक काम करते हैं मेरी नजर में एक अधिकारी है
क्या मालूम लडना चाहेगा कि नहीं पर बात करके देखता हूं पैसे भी खर्च करने लायक है
।
अध्यक्ष - अच्छा बात करके
देखो ।
ब्लाक की बैठक खारिज सभी सदस्य अपने अपने इलाको
में प्रत्यशियों की टोह लेने निकल पडते है । पर्दा गिरता है
(दूसरा दृश्य पार्टी के जिला कार्यालय का )
कुछ नवजवान लडके
पार्टी दप्तर के आगे एक नवजवान लडके को कंधे पर लेकर नाराबाजी कर रहे हैं उमेश
भैया जिन्दाबाद युवा मोर्चा जिन्दाबाद । चाहे जो मजबूरी हो युवा प्रत्याशी जरूरी
है । राष्ट्रीय और प्रदेश के नेताओं के पक्ष में जिन्दाबाद के नारे लगाये जा रहे
हैं ।
गेट पर एक
व्यक्ति आता है नौजवानो में से एक को बुलावा मिलता है बाकी सब शांत भाव से आपस में
चर्चा करने लगते हैं ।
एक नौजवान - भाई हमारी बात जिला प्रमुख तक पहुंच गई है और हमारे नेता जी उमेस भैया की
टिकिट पक्का करके ही लौटेंगे । सभी तालियां बजाते हुए उमेस भैया जिन्दाबाद के नारे
लगाते हैं ।
नवजवान - (बाहर
आकर) साथियो जिला प्रमुख ने आश्वासन
दिया है कि इस बार नवजवानों को अधिक महत्व दिया जायेगा ।
तालिया बजती हैं
जिन्दाबाद के नारे लगाते हुए भीड धीरे धीरे छंट जाती है ।
जिले की सभी
विधान सभाओं से क्षेत्रवार पेनल तैयार होकर जिला कमेटी में पहुंचती है । अपने अपने
इलाके के प्रभावी नेता अपने चहेते प्रत्याशियों को लेकर जिला मुख्यालये पहुंच चुके
हैं । सूचि जमा होती है ।
अध्यक्ष - सबसे पहले हम
आरक्षित सीटो के बारे में चर्चा कर लेते हैं ।
बीच में ही उठकर एक सेठ ने
कहा
सेठ - अध्यक्ष
महोदय इस बार हमारे क्षेत्र को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिये
अध्यक्ष - ठीक है सेठ जी आपके प्रत्याशी का नाम पेनल
में जोड लिया गया है ।
इस तरह बारी बारी से सदस्यों ने अपनी संभावित
प्रत्याशियों की सूचि जमा कर बाहर निकल जाते हैं । और अपने द्वारा प्रस्तावित
सदस्य को हिम्मत देते हैं कि अबकी बार आपकी टिकिट पक्की है बुधराम । आदि आदि ।
मीटिंग समाप्त होने पर प्रत्याशी के द्वारा लयी
गई किराये की जीप में सेठ जी और उनके ब्लाक प्रतिनिधि आगे की सीट में बैठकर बुधराम
पिछली सीट पर अन्य लोगों के साथ ठुसा बैठा है ।
आगे चलकर जीप एक
होटल में रूकती है । सभी समथक कार्यकर्ता अपनी इच्छानुशार नास्ता कोकाकोला ठंडा
आदि का आर्डर लेते हैं । खा चुकने के बाद
एक पदाधिकारी - बुधराम अब तो तुम्हारी टिकिट पक्की है बिल पटा देना ये पान की गुमटी वाले
के यहां हमने गुटका पान लिया है दे देना ।
बुधराम - उत्साह से हां जी क्यों नहीं आखिर चुनाव में आप लोग ही तो साथ दोगे ।
इधर जिला कार्यलय
की अंतिम सूचि बनती है आरक्षित विधान सभा
से चार लोगों के नाम जिसे गुप्त रखा गया प्रदेश कार्यालय भेजी जा चुकी है । क्षेत्रों में
सरगर्मी फलां व्यक्ति को को टिकिट मिल रहा है फलां दावेदार है आदि
सभी संभावित
प्रत्याशी अपनी जोडतोड में लग जाते हैं कुछ जनसंपर्क में तो कुछ नेताओं को पकडकर
जिले के मुखिया या मुखिया के रिस्तेदार को पकडने का प्रयास कर रहे हैं संभावित
प्रत्याशी की रोज हजारों में उतारी जाने लगी ।
बाजार का दृश्य
संभवित प्रत्याशी
आसपास गांव वालों से मुलाकात में व्यस्त है इतने में कस्बे के एक धन्ना सेठ ने
बुलाया
सेठ - अरे मंगलूसिंह सुना है तुम्हारे नाम पर टिकिट पक्की हो गई ।
मंगलूसिंह - काहे मजाक करते हो सेठ अभी तो ब्लाक से नाम गया है मिल जाये तो पक्का
समझेंगे ।
सेठ - अरे कुछ खर्चा वर्चा करो तो आपकी
अिकिट पक्की हो सकती है ।
मंगलूसिंह - कैसे सेठ
सेठ- अरे प्रदेश में मेरी अच्ची पहचान है
अध्यक्ष जी के साले के यहां मेरा आना जाना है एक बार उनसे मिलते हैं आपकी टिकिट
पक्की समझाो । कहते हैं ना सारी खुदाई एक तरफ जोरू का भई एक तरफ
मंगलूसिंह - बात
तो ठीक कहते हो सेठ कब चलें ।
बेचारे मंगलू को
पता ही नही कि जिला पेनल से उसका नाम आगे नहीं जा सका है !
मंगलू - कब
चलें सेठ जी
सेठ - एैसा करो परसों चलते हैं गाडी वगैरह का
इंतजाम कर लेना सुबह से ही निकल लेंगे साथ में जिला मुख्यालय से किसी जिला
प्रतिनिधि को ले लेते हैं ।
मंगलू - ठीक
है
तीसरे दिन
मंगलूसिंह किराये की एसी गाडी लेकर सेठ के पास पहुचता है !
मंगलू - सेठ
जी चलें
सेठ - आओ मंगलू बैठो
चाय पी लेते हैं
सेठ की पत्नि - मंगलू भैया सेठ जी को अच्छे से पकडना तुम्हारी टिकिट तो पक्की समझो पिछली
बार किसन भैया को तो इन्हींने टिकिट दिलाया था बेचारे हार गये तो इसमें इनका क्या
दोश
मंगलू - हां
बाई इसलिये तो सेठ जी के साथ प्रदेश
मुख्यालय जा रहे हैं ।
इतने में सेठ जी
तैयार होकर चाय पीते हुए जल्दी करो खाना तो रास्ते में ही खा लेंगे ।
सेठजी एसी कार की
अगली सीट पर बैठ गये बेचारा मंगलू बीच वाली सीट पर बैठ गया मंमलू के दोनो बाजू दो
लोग और बैठ गये । गाडी जिला मुख्यालय पहुंचती है जहां एक और साथी को लेना था समय
पर वे घर पर ही मिल गये । अब जिला प्रति निधि ठहरे कहां बैठें
(गाडी के अंदर से मंगलूसिंह)
मंगलूसिंह - भैया जी इधर आ जाओ ।
जिला प्रतिनिधि - कहां जगह है मंगलू इतनी दूर जाना है कैसे जा पायेंगे ।
मंगलू सिंह - तो
भैया क्या करें एक और गाडी कर लें क्या ?
जिला प्रतिनिधि - ठीक
कह रहे हो अन्यथा पांच सौ किलोमीटर में तो हालत खस्ता हो जायेगी ।
मंगलूसिंह - भैया एक और गाडी बुला लेते हैं यदि जिला समिति का आदमी साथ रहेगा तो और भी
बजनदारी बढती है ।
जिला प्रतिनिधि
अपनी गाडी के ड्रायवर को फोन करके कहता है !
जिला प्रतिनिधि - जल्दी गाडी घर पर ले आओं !
(पुनः एक चमचमाती
चार पहिये वाली एसी गाडी सामने आकर खडी होती है ।)
जिला प्रतिनिधि - ड्रायवर से कितने रूपये प्रति किलोमीटर जायेगी
ड्रायवर - 10 स्पये प्रतिकिलोमीटर का रेट है साब
जिला प्रतिनिधि - कुछ
कम नहीं करोगे
ड्रायवर - डीजल मंहगा हो गया है साहब आप हमेशा ले
जाते हैं इसलिये 9 रू0 तक चल जायेगा ।
जिला प्रतिनिधि - मंगलू की तरफ इशारा करते हुए ठीक है मंगलू
मंगलूसिंह - ठीक है भैया ।
दोनो गाडियों में
भरकर लोग टिकिट पक्की करने प्रदेश मुख्यालय को रवाना होते हैं
बीच बीच में
रूकते हुए होटलों में अपनी मर्जी का नास्ता चाय सिगरेट आदि करते हुए दोपहर के भोजन
में शाकाहारी मांसाहारी भोजन का जायका लेते हुए प्रदेश मुख्यालय पहुंचते हैं सुबह सुबह फ्रेस होने के लिये बकायदा लाज में
दो तीन रूम बुक करते हैं । चाय नास्ते के बाद पार्टी मुख्यालय का रूख करते हुए
पार्टी मुख्यालय पहुंचते हैं ।
सेठ जी और जिला
प्रतिनिधि मंगलसिंह को लेकर पार्टी दप्तर के वेटिं रूम में पहुचते हैं अपनी पर्ची
दरबान को देकर वेटिगं रूम में बैठे थे इतने में संबंधित विधानसभा क्षेत्र का दूसरा
प्रत्याशी भी किसी और नेता को लेकर वहां पहुंचता है वह भी दरबान को पर्चा देकर
दमसरे कोने में बैठ जाता है जिला प्रतिनिधि और दूसरे प्रत्याशी की सिफारिस लेकर
पहुंचा नेता आपस में मिलते हैं साथ में सेठ जी भी उनके साथ गुफतगू करने लग जाते
हैं बेचारा मंगलू अपने क्षेत्र के साथी प्रत्याशी से घृणाभाव से जलभुन जाता है
उससे मिलने की जरूरत नहीं समझता यही हाल दूसरे प्रत्याशी के । इधर पार्टी के
प्रतिनिधियों के साथ सेठ जी ठहाका लगा लगाकर हंस रहे थे ।
(इतने में मंगलू
के साथ आये जिला प्रतिनिधि का अंदर से बुलावा आता है वह अंदर जाने के लिये होता है
तो प्रतिनिधि उसे बाहर ही रहने को कहकर अंदर चला जाता है । )
प्रदेश का
संबंधित जिले का जिला प्रभारी - भई गुप्ता जी मंगल सिह का नाम तो आप
लोगों ने जिला पेनल से नहीं भेजा है फिर कैसे आ
गये ।
जिला प्रतिनिधि गुप्ता जी - प्रभारी महोदय कोई अपनी मर्जी से अपने खर्चे से हमें आपसे मिलने का अवसर दे
रहा है तो एैसे अवसर को क्यों छोडना चाहिये । ये तो मुझे भी पता है कि इनका नाम
जिले से नहीं भेजा गया है । साला खूब धान गेंहू का फसल लेता है इलाके में इससे
ज्यादा मजबूत किसान कोई नहीं सो कुछ खर्चा कराने ले आये हैं बाकी सब ठीक है जो
पेनल जिले से आया है आप उस पर ही विचार करे हमें कोई आपत्ति नहीं ।
(जिला प्रतिनिधि बाहर आता है ओर गंभीर मुद्रा
में मंगल सिह को कहता है)
जिला प्रतिनिधि - भाई मंगल सिह मैंने बडी मिन्नत किया तब कहीं जाकर प्रभारी ने आपके लिये
हामी भरी है पर वे कह रहे थे कि पूरी ग्यारंटी नहीं है फिर भी पूरी कोशिस करने को
कहा है ।
मंगल सिंह - सेठ
जी आप कह रहे थे कि अध्यक्ष जी के साले साहब से बात बन सकती है ।
सेठ - हां भई अभी तो
हमारे पास बहुत से मोहरे बाकी हैं उनको भी अवगत करा देते हैं यदि थोडा बहुत कोर
कसर होगी तो वे पूरा करा ही देंगे ।
(क्षेत्र से आये अन्य प्रत्याशी के भी यही हाल
थे यही उनके साथ भी हुआ जो मंगल सिह के साथ हुआ था । )
दिन भर प्रदेश
कार्यालय में मेहनत करते थके सेठजी और नेता शाम को लांज में पहुच गये शाम हो चली
कबाब और शराब का दौर देर रात तक चला ।
सुबह सेठ जी ने फोन की घंटी बजायी फोन लगातार डिस्कन्क्ट हो रहा था । तब
सेठ बनावटी झुझलाहट के साथ मंगलसिह को इंगित करते हुए कहते हैं
सेठ जी - देखो इनके जीजाजी लगातार सरकार बनाने के लिये मेहनत कर रहे हैं और साले
साहब को देखो बार बार फोन डिस्कनक्ट कर रहे है। क्या जमाना आ गया है । चलो घर पर ही
पकड लेते हैं ।
(चाय नास्ते के बाद सेठजी और जिला प्रतिनिधि अध्यक्ष के साले
साहब की घर को रवाना होते हैं ।)
गेट में दरबान से
पूछते हैं
सेठ जी - बडे भैया घर पर हैं कि नहीं
दरबान - नहीं हैं साब
सेठ - परसों तो बात हुई थी तब तो वे घर पर ही थे अचानक कहां
चले गये
दरबान - साब तो पिछले एक सप्ताह पहले से ही बाहर हैं अब
कबतक आते हैं पता नहीं ।
अपनी कलई खुलता देख सेठजी ने पैतरा बदला और
दरबान से कहते हैं
सेठजी - सेठानी जी हैं ।
दरबान - हां साब
सेठ - उनसे कहो कि मदन मोहन सेठ आये हैं भैया जी नहीं
मिले तो कोई खबर आपको देना चाहते हैं ।
दरबान अंदर जाता
है सेठ जी का नाम बताकर उनके आने की जानकारी देता है
दरबान - मेम साब कोई सेठ जी बाहर से आये हैं उनके साथ तीन चार लोग
भी हैं साब जी के नहीं मिलने पर वे आसे मिलना चाहते हैं ।
सेठानी सोचती है । जरूर ये टिकिट विकिट के
चक्कर में शिपारिस के लिये आये होगे
सेठानी - दरबान उनसे कह दो सेठजी आयेंगे तभी उनसे मुलाकात
कर लेना ।
दरबान बाहर आकर जानकारी देता है
दरबान - मेम साब ने कहा है कि फिर कभी आ जाना जब साब होगे ।
सेठजी - भाई मेरा नाम अच्छे से बताये थे कि नहीं
दरबान - बताया था साब
(सेठ जी माथे पर हाथ रखकर बडबडाते हैं !)
सेठजी- आज
किसका मुह देखकर निकले थे अशुभ हो गया या मंगल सिंह तेरी किस्मत ही खराब है ।
किसी तरह लाज में
आकर इससे उससे मिलने की बात होती रही अंततः शाम को वापस लौटने का प्लान बन
गया जिला प्रतिनिधि और सेठ जी मंगलूसिंह
को टिकिट का पूरा आष्वासन देते रहे लौटते वक्त होटल और ढाबों में मंगलू की खूब जेब
काटी हुई जिला प्रतिनिधि अपने घर पहुचे । ड्रायवर ने मंगलू को रसीद थमा दी बेचारा
मंगलू जेब से पैसे निकालकर देता रहा । शाम होते होते सेठजी का घर आ गया मंगलू गाडी
लेकर अपने घर पहुंचा ड्रायवर ने दूसरी गाडी का बिल बता दिया तब तक मंगलू की जेब
खाली हो चुकी थी घरवाली से पैसे मांगा तो
घरवाली ने झल्लाते हुए कहा कि सब पैसे तो ले गये थे अब कहां हैं बीस हजार किसी तरह
ड्रायवर को सांत्वना देकर कल के दिन किराया अदा करने की बात कहकर बिदा किया दूसरे
दिन ट्रेक्टर में अनाज लेकर मंगलूसिंह बाजार पहुंचा सेठ ने मनमानी भाव से अनाज
खरीद लिया किराये की गाडी का किराया अदा करके मंगलू घर वापस आ गया । लोग मगलूसिंह
के प्रदेश मुख्यालय जाने की खबर सुनकर लोग उन्हें नेता जी नेता जी कहने लगे मंगलू
खुस ।
टिकिट
की सरगर्मी जारी कुछ दिन बाद
अखबार में खबर
छपती है कि जिले से चार लोगों का पेनल जिला पार्टी प्रवक्ता द्वारा प्रकाशित कराई
गई है । जिसमें मंगलू का नाम नहीं था । मंगलू पेपर लेकर सीधे सेठ के पास पहुचता है
तो सेठ कहते हैं मुगलू हमने तो कितना प्रयास किया प्रदेश मुख्यालय तक भी जोर लगाये
पर तुम्हारे किस्मत में नहीं था तो क्या कर सकते हैं । गुस्साये मंगलू ने निर्दलीय
फार्म भरने की सलाह सेठ जी से ले डाली । सेठ जी ने सहर्ष सहयोग देने की बात करके
उसे हिम्मत दे डाली । मंगलूसिंह को सेठ पर भरोशा हो गया कि सेठ ने प्रयास तो किया
अब मैं निर्दलीय लडूं तो भरपूर सहयोग मिलेगा ही । फिर एक झांसे में आ चुका था
मंगलू फिर एक बार सिर मुडने के चक्कर में है सेठ जी ।
यही कहानी
आरक्षित विधान सभा क्षेत्र के हर संभवित प्रत्याशी के साथ गुजरी अंततः टिकिट का
फैसला होना थ प्रदेश कार्यलाय में अंतिम दो लोगों का पेनल तेयार होना था पर
प्रत्येक विधानसभा से चार लोगों को इंटरव्यू के लिये बुलावा आया । चारों प्रत्याशी
अपने अपने आकाओं और समर्थकों के साथ प्रदेश मुख्यालय पहुचे ।
( टिकिट के लिये साक्षत्कार का दृष्य)
पार्टी दप्तर में
चयन कमेटी में पांच पदाधिकारी सोफे पर बैठे हैं । चपरासी बाहर से आवाज लगाता है
अमुक विधान सभा के अमुक व्यक्ति हाजिर हो । एक व्यक्ति अंदर जाता है
खाली
कुर्सी देखकर बैठ जाता है ।
चयन अधिकारी - बताओ नंदकुमार किस जाति से हो वैसे तुम्हारे बायोडाटा में तो तुम काफी पढे
लिखे लगते हो
नंदकुमार - मैं आदिवासी हूं महोदय मैंने प्रथम श्रेणी में डिग्री ली है ।
चयन अधिकारी - कितने पैसे खर्च कर सकोगे
नंदकुमार - थोडा बहुत
कर लूंगा महोदय
चयन अधिकारी - टिकिट मिल जाने पर क्या करोगे
नंदकुमार - समाज और क्षेत्र के विकास के लिये
भरपूर योगदान दूंगा ।
चयन अधिकारी - और कुछ
नंदकुमार - बस इतना ही महोदय ।
चयन अधिकारी - ठीक है जाओ विचार करेंगे ।
चपरासी अन्य प्रत्याशी का नाम पुकारता है
हिम्मत सिह - मैं अंदर आ सकता हूं महोदय
(अंदर से)
चयन अधिकारी - आईये हिम्मतसिंह जी आपका नाम तो
अखबारों में खूब छप रहा है । आपने तो बडी रैली भी की है ।
हिम्मतसिंह - आपकी कृपा है महोदय थोडा बहुत समाज के बीच जाते हैं तो समर्थन मिल जाता है
इसलिये छोटी मोटी भीड इकटठा
कर लेते हैं
चयन अधिकारी - अच्छा बताओ कितना वोट अपने दम पर
हासिल कर सकते हो ।
हिम्मतसिंह - लगभग 10000 तक खींच सकता हूं महोदय बाकी पार्टी के वोट हो
जायेंगे तो जीत पक्की समझें ।
चयन अधिकारी - अच्छा बताओ जीतने के बाद क्या करोगे
हिम्मतसिंह - जीतने के बाद क्षेत्र के विकास और और पार्टी के निर्देशों का पालन करना
अपना धर्म समझूंगा महोदय
चयन अधिकारी - और कुछ
हिम्मतसिंह - और क्या कर सकता हूं महोदय ।
चयन अधिकारी - ओके हिम्मत सिंह
चपरासी अन्य
व्यक्ति को आवाज देता है
ढोला सिंह दरवाजे के पास जाकर
ठिठक कर खडा हो जाता है
चयन अधिकारी - आओ भाई क्यों रूक गये ।
ढोला सिंह - जी साब
चयन अधिकारी - ढोला सिंह तुम्हारा बायोडाटा तो बहुत ही बेहतर है तुमने पार्टी में बहुत
मेहनत किया है भले ही कम पढे लिखे हो सब कुछ ठीक है पर बताओ विधायक बनने के बाद क्या
करोगे ।
पुनः वही सवाल प्रत्साशी के भी लगभग वही जवाब, जीतने के बाद क्षेत्र के विकास और पार्टी के निर्देशों का पालन करना
चपरासी अन्य व्यक्ति को आवाज देता है
चपरासी अन्य व्यक्ति को आवाज देता है
( गीदड सिंह डरते डरते सोफे से उठकर सेठ जी से कहता है)
गीदड सिंह
साथ चलो सेठ जी मैं इन चक्करों में कभी नहीं पडा हूं क्या जवाब दूंगा आप भी
साथ चलो ।
सेठ जी - नहीं गीदडसिंह अकेले ही जाना पडेगा पार्टी का नियम है ।
गीदड सिंह - तब क्या बोलूंगा बता तो दो
सेठ जी-
तुम चुप रहना तुम्हारा बायोडाटा उनके पास है । वे जो कुछ भी कहें हां में
जवाब दे देना बस ।
चयन अधिकारी - आओ
भाई क्यों रूक गये ।
गीदडसिंह - जी साब
चयन अधिकारी - आओ
बैठो गीदडसिंह जी
गीदडसिंह- एैसे ही ठीक
है साहब
चयन अधिकारी - अरे आओ कुर्सी तुम्हारे लिये ही तो बनी है बैठो
डरते डरते गीदडसिंह
कुर्सी पर बैठ जाता है ।
चयन अधिकारी - अच्छा बताओ सेठ भगवानदास साथ आये हैं क्या
गीदडसिंह - हां साब
चयन अधिकारी - टिकिट मिल जायेगी जीत जाओगे तो क्या करोगे
गीदडसिंह - जैसे सेठ जी कहेंगे वैसा करूंगा साब
चयन अधिकारी -
और कुछ
गीदडसिंह-
आप दिन को रात कहो तो रात कहूंगा । साब आखिर जीवन भर सेठ जी का नौकर रहा
हूं बडी ईमादारी से उनकी नौकरी कर रहा हूं इससे बडा सबूत और योग्यता मेरे पास नहीं
है साब ।
“इस तरह चयन
प्रक्रिया पूर्ण होती है गीदड सिंह का टिकिट फायनल हो जाता है पढे लिखे थोडे बहुत
समाज हित की सोच रखने वाले एक अपढ सेठ के नौकर से परास्त हो जाते हैं “
इसी विडम्बना के
चलते आजादी के 68 साल हो गये । ना
जाने कितने पढे लिखे और साधन सम्पन्न प्रत्याशी लाखों खर्च करने के बाद भी टिकिट
पाने से वंचित रह जाते हैं तब कैसे हो समाज का भला कैसे आयेगा हमारे देश में
स्वस्थ प्रजातंत्र । इस एकांकी के माध्यम से यही सीख मिलना चाहिये कि स्वस्थ
प्रजातंत्र चाहिये तो राजनीतिक दल भी पारदर्शी बनने का प्रयास करें अन्यथा इस तरह
आरक्षित वर्ग से केवल गुलाम प्रतिनिधित्व पैदा किया जायेगा तो देश में स्वस्थ
प्रजातंत्र की स्थापना की मात्र कल्पना ही की जा सकती है ।
(प्रस्तुत नाटक के
पात्र और सभी घटनाऐं काल्पनिक हैं इसका किसी व्यक्ति या वास्तविक घटना से कोई
संबंध नहीं है ।
प्रस्तुति और लेखन : गुलजार सिंह मरकाम "संयोजक" गोंडवाना
समग्र क्रांति आन्दोलन ।)
जय सेवा जय
पडापेन जय गोंडवाना ।
नोट : यह मेरे
लेखकीय जीवन का पहला प्रहसन या नाटक है इसमें अनेक त्रुटियां हो सकती हैं, कृपया मार्गदर्शन कर त्रुटि सुधार का अवसर दें ।
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