"जीते थे अब भी जीतेंगे"
देश के आम नागरिकों से विनम्र अपील है कि, कोरोना जैसे कमजोर वायरस से घबराकर,अपना मानसिक संतुलन ना खोयें , सामाजिक सहयोग और समरसता बनाये रखें। आपने हैजा प्लेग जैसी महामारी से लोहा लेकर जीत हासिल किया है। तब तो आज जैसी शिक्षा, जागरूकता और ना ही बचाव के संसाधन थे,नाम मात्र के सरकारी सहयोग से आपने अपने स्तर के संसाधन और उपायों से उसका डटकर मुकाबला किया था। लिंगभेद जातिभेद, संप्रदायभेद से ऊपर उठकर सिर्फ , "हैजा,प्लेग" को हराना लक्ष्य रहा है। आज भी हमारा लक्ष्य "कोरोना" उन्मूलन हो। ऐसी महामारी से "जीते थे अब भी जीतेंगे। जय सेवा जय जोहार।
(गुलजार सिंह मरकाम राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन)
मध्यप्रदेश के गोन्ड बहुल जिला और मध्य काल के गोन्डवाना राज अधिसत्ता ५२ गढ की राजधानी गढा मन्डला के गोन्ड समुदाय में अपने गोत्र के पेन(देव) सख्या और उस गोत्र को प्राप्त होने वाले टोटेम सम्बन्धी किवदन्तिया आज भी यदा कदा प्रचलित है । लगभग सभी प्रचलित प्रमुख गोत्रो की टोटेम से सम्बन्धित किवदन्ति आज भी बुजुर्गो से सुनी जा सकती है । ऐसे किवदन्तियो का सन्कलन और अध्ययन कर गोन्डवाना सन्सक्रति के गहरे रहस्य को जानने समझने मे जरूर सहायता मिल सकती है । अत् प्रस्तुत है मरकाम गोत्र से सम्बन्धित हमारे बुजुर्गो के माध्यम से सुनी कहानी । चिरान काल (पुरातन समय) की बात है हमारे प्रथम गुरू ने सभी सभी दानव,मानव समूहो को व्यवस्थित करने के लिये अपने तपोभूमि में आमंत्रित किया जिसमें सभी समूह आपस में एक दूसरे के प्रति कैसे प्रतिबद्धता रखे परस्पर सहयोग की भावना कैसे रहे , यह सोचकर पारी(पाडी) और सेरमी(सेडमी/ ्हेडमी) नात और जात या सगा और सोयरा के रूप मे समाज को व्यवस्थित करने के लिये आमन्त्रित किया ,दुनिया के अनेको जगहो से छोटे बडे देव, दानव ,मानव समूह गुरू के स्थान पर पहुचने लगे , कहानी मे यह भी सुनने को मिलत...
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